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परिप्रेक्ष्य
– डा. रक्षपाल सिंह*
माननीय प्रधानमंत्री ने ट्वीट द्वारा नई शिक्षा नीति -2020 के पांच स्तम्भ यथा एक्सेस (सब तक पहुँच), इक्विटी(भागीदारी), क्वालिटी (गुणवत्ता), अफोर्डेबिलिटी (किफायत) और अकाउंटेबिलिटी (जवाबदेही) बताये हैं और ये स्तम्भ शिक्षा व्यवस्था के लिए आदर्श कहे जा सकते हैं ,लेकिन अफसोस रहा है कि ये स्तम्भ कभी भी व्यवहारिकता के स्तर पर लागू नहीं हो सके।ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि शिक्षा नीतियों को बनाने वाली समितियों ने देश की बड़ी आबादी की आर्थिक-शैक्षिक सामाजिक हालतों की धरातलीय जानकारी करने की कोशिशें न करने अथवा शिक्षा नीति का निर्माण करते समय उनको नज़रंदाज़ करने का काम किया।
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इस नई शिक्षा नीति के उक्त जैसे स्तम्भ या लक्ष्य पूर्व में बनीं शिक्षा नीतियों में भी समाहित थे, लेकिन वे नीतियां इनको क्रियान्वयन कराने व करने वाले नौकरशाहों, शिक्षाधिकारियों, अधिकांश शिक्षण संस्थानों के संचालकों एवं अन्य शिक्षा व्यवस्था से सम्बंधित लोगों की मनमानी एवं उनके भ्रष्टाचार का शिकार बनकर रह गई और अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर सकीं ।
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ये ही हाल नई शिक्षा नीति के लक्ष्यों का होगा क्योंकि नीति को क्रियान्वित कराने व करने वालों की मानसिकता भाजपा सरकार के 6 वर्ष के शासन में नहीं बदली तो अब आसानी से बदलने वाली नहीं ।यदि केंद्र सरकार ये सोचे बैठी है कि इस शिक्षा नीति को लागू कराने व करने वाले लोग प्रधानमंत्री मोदीजी की देश के प्रति प्रतिबद्धता व मानसिकता के ही हैं तो इस शिक्षा नीति के समर्थकों को अपनी गलतफहमी अभी से दूर कर लेनी चाहिये अन्यथा भविष्य में पछताना पड़ेगा।
अपनी स्कूली शिक्षा ग्रामीण अंचल से प्राप्त करने, गत लगभग 50 वर्ष से शिक्षा व्यवस्था से नज़दीकी से जुड़ा होने के अनुभव के आधार पर वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की हकीकत के मद्देनज़र ” समकालीन शिक्षा तंत्र -दशा व दिशा” पुस्तक( जिसके आलेख की सराहना “”नेशनल काउंसिल ऑफ़ टीचर एजूकेशन नई दिल्ली “” की हो ) का लेखन करने के कारण मैं समझता हूँ कि 135 करोड़ आबादी के इस विशाल देश की शिक्षा व्यवस्था को मनमाने ,खर्चीले एवं दुरूह एक खास पैटर्न से संचालित नहीं किया जा सकता जैसी कि स्कूली शिक्षा को सी बी एस ई पैटर्न पर चलाने की नीति से ज़ाहिर हो रहा है क्योंकि अब सरकारी प्राथमिक स्कूलों में भी 6 साल के बजाय 3 साल के बच्चों का प्रवेश होगा। यदि सरकारों की कमजोर आर्थिक और शैक्षिक वर्ग के लगभग 60 प्रतिशत 3 साल के बड़े सभी बच्चों को प्री, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक स्कूलों में पहुंचाने, घर भेजने, उनका होम वर्क कराने तथा स्कूलों में उनकी शत प्रतिशत उपस्थिति का प्रबंध, प्रत्येक कक्षा के विद्यार्थियों की पारदर्शी परीक्षाएं एवं उनका गोपनीय मूल्यांकन कराकर उत्तीर्ण बच्चों का ही आगे की कक्षाओं में प्रमोशन करने तथा मॉडरेशन नीति की समाप्ति आदि व्यवस्थाएं सफलता से लागू हो जायें तो नई शिक्षा नीति 20 निश्चित तौर पर सफल मानी जानी चाहिये,लेकिन ऐसा हो पाना बहुत मुश्किल है ।
सभी अवगत हैं कि आर्थिक शैक्षिक सामाजिक रूप से संपन्न एवं अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति बहुत फिकरमंद समाज के लगभग 20 प्रतिशत लोग तो शिक्षा नीति कैसी भी बने, उनके बच्चे तो गुणवत्तापरक शिक्षा प्राप्त कर ही लेंगे। समाज के लगभग 20 प्रतिशत मध्यम आर्थिक शैक्षिक स्थिति के व अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक अभिभावकगण भी अपने बच्चों को बेहतर नहीं तो सामान्य शिक्षा प्राप्त कराने का प्रबंध कर ही लेंगे। लेकिन आर्थिक तौर पर कमजोर ,अशिक्षित व अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति उदासीन समाज के शेष 60 प्रतिशत परिवारों के अधिकांश बेसिक शिक्षा स्तर के बच्चे प्राथमिक स्तर की हिन्दी की पुस्तक को नहीं पढ़ पाने व गणित की तीन संख्याओं के जोड़,घटाव,गुणा भाग के सवालों को हल नहीं कर सकने वाले बच्चों की समस्याओं के समाधान का हल दृष्टिगोचर नहीं हो रहा। देश के इन गरीब परिवारों के बच्चों की गुणवत्तापरक बेसिक शिक्षा की व्यवस्था का प्रबंध घोषित शिक्षा नीति से नितांत असम्भव प्रतीत हो रहा है ।
जहाँ तक केंद्र सरकार द्वारा घोषित शिक्षा नीति -2020का सम्बंध है तो देश की शिक्षा नीति का यह एक “आदर्श दस्तावेज़” है जो यूरोप के इग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, फिनलैंड, इटलीआदि कम आबादी वाले देशों के लिए तो उपयुक्त है, लेकिन भारत जैसे 135 करोड़ जनसंख्या वाले विशाल देश के लिए उपयोगी नहीं हो सकता । नई शिक्षा नीति 1986 यथा संशोधित 1992 भी एक “आदर्श दस्तावेज” था, लेकिन उसके संचालन में निरंतर पैदा होती रहीं विकृतियों को नज़रंदाज़ किया जाता रहा और अफसोस इस बात का है कि भाजपा सरकार ने भी अपने गत 6 साल के शासन में भी उन पर अंकुश लगाने में रुचि नहीं ली।
जब तक किसी नीति के क्रियान्वयन, सतत निगरानी व मूल्यांकन एवं खामियों मे सुधार हेतु आवश्यक कदम नहीं उठाये जाते रहेंगे, तब तक वह नीति सफल नहीं हो सकती, जैसा कि कांग्रेस सरकार की शिक्षा नीति 1986 यथा सन्शोधीत 1992 के साथ हुआ। जहाँ तक घोषित नई शिक्षा नीति -2020 का प्रश्न है तो यह “एक आदर्श, लेकिन अव्यवहारिक दस्तावेज़” ही कहा जा सकता है।
*लेखक प्रख्यात शिक्षाविद हैं एवं धर्म समाज कालेज, अलीगढ़ के पूर्व विभागाध्यक्ष एवं आगरा विश्व विद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष रहे हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।
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