सेहत: वर्तमान में बढ़ती मधुमेह की सुनामी से कैसे निबटा जा सकता है?
– डॉ सतीश के गुप्ता*
भारत में लगभग 8 करोड़ से अधिक लोगों को मधुमेह (शुगर) की बीमारी है। हर वर्ष लगभग 50 लाख नए रोगी इस बीमारी से ग्रसित होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मधुमेह से होने वाली 80 प्रतिशत मृत्यु निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में होती है। न केवल मधुमेह पर इससे होने वाले कोंमपलिकेशन्स, जैसे हृदय रोग और गुर्दे की समस्याएं हैल्थ सिस्टम पर अतिरिक्त बोझ का काम करती है।
ऐसा अनुमान है कि विश्व में मधुमेह से पीड़ित होने वाला हर छठा व्यक्ति भारतीय है।अतर्राष्ट्रीय मधुमेह फ़ैडरेशन के अनुसार भारत में डाईबिटीज़ के लोगों की संख्या 2045 में 13.4 करोड़ क पहुँचने की संभावना है। सरकार द्वारा 2010 में नेशनल प्रोग्राम फ़ॉर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ कैंसर, डायबिटीज,कार्डिओवस्क्युलर डीसीसेस एंड स्ट्रोक प्रारम्भ किया गया। उपरोक्त प्रोग्राम, मधुमेह के लिए स्क्रीनिंग, शीघ्र निदान और त्वरित इलाज पर केन्द्रित रहा। पर सरकारी प्रयासों के बावजूद बीमारी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। एक मोटे अनुमान के अनुसार एक व्यक्ति मधुमेह के इलाज पर लगभग 10000 रुपये खर्च करता है।
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आधुनिक जीवन शैली ने देश के लगभग सभी हिस्सों में दोषपूर्ण एवं दिशाहीन आदतों को जन्म दिया है। उन्नत आर्थिक स्थिति और डिब्बा बंद चीजों की सहज उपलब्धता ने मधुमेह को बड़ी तेजी से फैलाया है। कम लागत, विशेष रूप से पॉलिश किए गए चावल, गेहूं के आटे के अलावा ज्यादा चीनी, स्टार्च, नमक और तेल की बढ़ती खपत शहरी और ग्रामीण दोनों समुदायों में हो रहे आहार परिवर्तन का उदाहरण है।
इस समय आवश्यकता है मधुमेह (डाईबिटीज़) की रोकथाम इलाज एवं नियंत्रण के लिए एक समग्र एवं सक्रिय रणनीति आधारित कार्यक्रम की जो की न केवल बीमारी के लिए लोगों को जागरूक करें अपितु खान पान की हानिकारक वस्तुओं का उत्पादन करने वाली कंपनियों पर दंडात्मक फ़ाइन का भी प्रावधान करता हो। पर सरकारी एजेंसी एफ एस एस आई (फ़ूड सेफ्टी स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) इस विषय में उदासीन रुख अपनाये हुए है। 2012 से इस उपभोक्ता संस्थाओं और विशेषज्ञों की मांग थी कि एफ एस एस आई फ़ास्ट फ़ूड उत्पादक को फ़ूड के पैकेट पर नमक, शुगर और फैट की अत्यधिक मात्रा के बारे चेतावनी लेबल लगाने के लिए बाध्य करें। पर उत्पादन कंपनियां इस पर तीखी आपत्ति करती रही है। उन्हें इससे पैकेट फ़ूड की खपत कम होने का डर है। 10 वर्षों से लंबित इस मामले को एफएसएसआई ने एक बार फिर फ़ूड उत्पादकों का पक्ष लेते हुए नवम्बर 2022 के अपने निर्णय में लेबल की बाध्यता को अगले चार वर्षों के लिए टाल दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर और अन्य गैर संचारी रोगों के नियंत्रण प्रयासों को गहरा धक्का लगेगा।
ऐसे में मधुमेह की सुनामी को रोकने का सारा भार केवल पब्लिक एजुकेशन की डुगडुगी भर रह जाएगा। फिर भी हतोत्साहित न होते हुए हमें अपने प्रयत्न जारी रखने होंगे। समाज से मधुमेह रोग को काफी हद तक खत्म करने के लिए आवश्यक है एक स्वस्थ जीवन शैली, जो पौष्टिक आहार, नियमित व्यायाम और तनाव मुक्त जीवन पर आधारित हो।