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1 thought on “रविवारीय: रिश्तों की बुनियाद

  1. रजनीश ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है की रिश्ते अपने स्वभाव से अस्थिर या विचलनशील होते हैं । इसका मतलब यह हुआ कि ये किंचित सार्वभौमिक या ब्रह्मांडीय शक्तियों के प्रभाव में होती हैं । आधुनिक दौर में रिश्तों के क्षरण का एक सामान्य कारण छुपे छुपे प्रतिस्पर्धा में लिप्त होना है और उपभोक्ता युग में ऐसी स्पर्धा के प्रचुर अवसर आते हैं । यही प्रच्छन्न स्पर्धा आपसे शालीनता, सतुलन और व्यावहारिक सौंदर्य छीन लेती है और हम सभी एक दूसरे से निरंतर आहत होते रहते हैं । सह अस्तित्व के मानकों को अपनाने के लिए ऊंची नैतिकता की जरूरत होती है । स्वार्थ पोषित रिश्तों का ग्राफ अलग होता है ।

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