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November 22, 2024

6 thoughts on “रविवारीय: मेरे घर का पता

  1. आम आदमी के जीवन का सचित्र वर्णन सा दिख गया । वाकई सुंदर लेख। यूं ही लिखते रहिए।

  2. Bahut achhe se beyan kiya hua apna ghar wahin ka wahi lekin uska pata badalte Jaa Raha hai aur commercial apartment k chalan se to aur muskil badhta Jaa Raha hai Jahan shops nhi chal pata hai wo band ho jati hai phir doosra wahan p aa jata hai well said bro

  3. पहचान का संकट पूर्णतया आंतरिक और मनोवैज्ञानिक होता है । आप बड़ी से बड़ी अट्टालिका बना ले और उसमें बड़ा से बड़ा फौलादी गेट लगा लें आपके सर्किल के एक दर्जन से ज्यादा लोग उसकी नोटिस नहीं लेंगे ।
    कोई 1990 की बात है, मैं पटना में तैनात था । मुझसे तीन साल जूनियर मेरे किराए के घर का पता लेना चाह रहे थे । और उस क्रम में उन्होंने यह टिप्पणी कि आप कैसे इनकम टैक्स इंस्पेक्टर हैं जो आपको मोहल्ले में कोई नहीं जानता है । वे दुनियावी तड़क भड़क में गहरा यकीन रखते थे और कई विद्यायों में निपुण थे । अब दुनिया में नहीं है । कल “8 तुगलक रोड” राहुल गांधी का पता नहीं होगा लेकिन उनकी शख्सियत तो रहेगी । वैसे बड़ी से बड़ी शख्सियत को भी जमाना दो चार सालों में पूरी तरह भुला देता है । Obscurity में जीने का भी अपना आनंद होता है । ए पी जे अब्दुल कलाम से पूछ लीजिए ।

  4. मर्मस्पर्शी एक सामयिक व्यंग्य रचना।

  5. आम आदमी का यथार्थ चित्रण । बेहद मर्मस्पर्शी

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