रविवारीय: हर घर की यही है कहानी
अहले सुबह चाहे महानगर हो, छोटा शहर हो या फिर कोई कस्बाई इलाका, अगर किसी घर से रौशनी बाहर आ रही है, तो आप बेहिचक, बेझिझक कह सकते हैं- कोई मां अपने स्कूल जाते हुए बच्चे के लिए सुबह का नाश्ता और उसके लिए टिफिन बॉक्स भर रही है। कोई मां ही ऐसा कर सकती है और सबसे बड़ी बात यह कि वो यह काम बेमन से नहीं बल्कि स्वेच्छा से खुशी- खुशी करती है। निर्विवाद रूप से ऐसा कहा जा सकता है। लगभग हर घर की यही कहानी है।
घर में बच्चे का जन्म एक खुबसूरत अहसास होता है। बच्चे के जन्म से पहले ही मां – बाप के बीच आने वाले बच्चे के लिए नाम चुनने की कवायद। अभी उन्हें कहां मालूम कि बेटा होगा या बेटी । बस आने वाले बच्चे के लिए एक सुखद अहसास और सपनों के साथ जीने की कोशिश।
बच्चे के जन्म के बाद फिर से एक कल्पनाओं के सागर में गोते लगाते हुए मां – बाप। उन्हें ऐसा लगता है बच्चे अब जल्दी से बड़े हो जाएं। उनसे बातें करें।
धीरे धीरे बच्चे बड़े होते हुए, जमीन पर लुढ़कते खेलते हुए बच्चे कब अचानक से बड़े हो जाते हैं पता ही नहीं चलता है। फिर अचानक से एक कवायद शुरू होती है किंडरगार्टन से और फिर खरामा – खरामा बच्चे पहले प्राथमिक विद्यालय से आगे बढ़ कब हाई स्कूल से निकल कॉलेज में आ गए पता ही नहीं चला। जब पता चलता है तब देर हो चुकी होती है। बच्चों ने बाहर का रूख कर लिया अब। नौकरी और उच्च शिक्षा के लिए बच्चे शहर क्या अब अपने देश को छोड़ निकल गए। अब हमारे पास उनकी यादें हैं जिनके सहारे हम अपनी गाड़ी आगे बढ़ा रहे हैं। युवावस्था की बात अलग होती है। कुछ कर गुजरने का माद्दा होता है। देखते ही देखते शादी के पच्चीस साल गुजर गए। आज जब पीछे मुड़कर देखते हैं तब अहसास होता है हम कितने आगे निकल आए हैं। वक्त कितनी तेजी से गुजर गया बिल्कुल ही अहसास नहीं होता है।
शादी के पच्चीस साल – सिल्वर जुबली समारोह। तैयारियां चल रही हैं, पर हम कहां हैं? हम तो कहीं नहीं हैं। हम तो अपनी शादी के वक्त भी कहीं नहीं थे। बस मां पिताजी और बड़े भाई बहनों ने जो भी कहा सर झुका कर स्वीकार कर लिया। हमें तो बस तय समय और स्थान पर पहुंच जाना है। कल मां पिताजी थे, बड़े भाई बहन थे आज उसका स्थान बच्चों ने ले लिया है।
बच्चों ने ही सारी तैयारियां कर रखी हैं। हमारे लिए एक संशय की स्थिति है। केन्द्र बिन्दु में हम हैं, पर हम कहीं नहीं हैं।
एक से बढ़कर एक सरप्राइज़ मिलता हुआ। कहीं से आपको यह नहीं लगता है कि आप अलग हैं। बच्चों ने आपकी पसंद का पूरा पूरा ध्यान रखा है। आपकी हर छोटी से छोटी चीज का ध्यान रखा उन्होंने।
वाकई बच्चे अब बड़े हो गए हैं। उन्होंने मां – बाप के प्रति जो उनकी जिम्मेदारियां थीं उन्हें उसे निभाना आ गया है और वो बखूबी निभाते भी हैं। समय थोड़ा जरूर बदल गया है। पहले जैसी बातें अब नहीं रहीं जहां एक ही शहर में आप और आपके दोस्त और रिश्तेदारों की दुनिया होती थी। अब आप सही मायनों में वैश्विक हो गए हैं। आप भी इस बात को समझ लें, स्वीकार कर लें तब शायद आप जेनरेशन गैप को अच्छी तरह से समझ सकेंगे और बच्चों के साथ सामंजस्य बिठा पाएंगे।
Beautiful description of Ghar ghar ki kahani.
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति है।