पर्यावरणीय चिंतन: पर्यावरण और विकास का संतुलन ज़रूरी
पर्यावरण और विकास एक दूसरे से परस्पर जुड़े हुए हैं। एक देश की आर्थिक तरक्की भी पर्यावरण को प्रभावित करती है। संपन्नता और विकास एक देश के उन्नति के लिए बहुत आवश्यक हैं किंतु इस विकास का आनंद लेने के लिए यह ज़रूरी है कि हम पर्यावरण संसाधनों के संरक्षण को विशेष महत्व दें। पर्यावरण और विकास का संतुलन बना कर के ही हम तरक्की का आनंद ले पाएंगे और आने वाली पीढ़ियों को लाभान्वित कर पाएंगे।
आज पर्यावरण विनाश का सबसे बड़ा कारण तथाकथित विकास है जिसके पीछे इंसान अंधाधुंध भागे चला जा रहा है। प्रकृति ने मानव को अन्य जीवों की अपेक्षा एक विलक्षण वस्तु “मस्तिष्क ” प्रदान किया जिसका इसने दुरुपयोग किया। उसने भौतिकवाद के चक्कर में पड़कर सम्पूर्ण प्रकृति और पर्यावरण संकलन को क्षत विक्षप्त कर दिया। अबाध रुप से बढ़ती जनसंख्या और उसी गति से समाप्त होती प्राकृतिक संपदाएं और संसाधन हमारे विनाश के सूचक हैं। मानव का भौतिकवाद प्राकृतिक संकलनों, संसाधनों को तीव्रता से नष्ट करता जा रहा है। किंतु जानते हुए भी इस पर हम सोच नहीं रहे हैं। हम दावे जितनी कर लें लेकिन असल में पर्यावरण की सूची में दुनिया के 180 देशों में भारत की स्थिति बहुत खराब है। पर्यावरण को लेकर वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिर्पोट ने इसका खुलासा करते हुए कहा है कि देश में पर्यावरण सुधार के दावों के बावजूद हालत बेहद खराब है। विडंबना है कि डेनमार्क और ब्रिटेन जैसे देश 2050 तक ग्रीन हाउस गैसों में कमी लाने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहे हैं लेकिन अमेरिका, चीन, भारत और रूस जैसे देश बड़ी मात्रा में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कर रहे हैं।
यह सच है कि पृथ्वी तभी बचेगी जब पर्यावरण विकास का आधार बनेगा। जहां तक हरित संपदा का सवाल है उसके बारे में सरकार लगातार बढ़ोतरी का दावा करते नहीं थकती जबकि असलियत में इंसान और पेड़ों के अनुपात की वैश्विक सूची में भारत सबसे निचले पायदान पर है। हमारे देश में प्रति व्यक्ति पेड़ों की तादाद 28 ही है। 2020 में बीस फीसदी से ज्यादा पेड़ पौधों का दायरा सिमट गया। इंडिया स्टेट ऑफ़ फॉरेस्ट रिपोर्ट (आईएसएफआर) के अनुसार हर साल देश में 22 लाख पेड़ काट दिए जाते हैं। जबकि कोरोना ने ऑक्सिजन और पेडों के महत्व का आभास सबको बखूबी करा दिया है। फिर भी सरकार विकास के नाम पर पेड़ों को निर्बाध कटाव पर आमादा है। उस स्थिति में जबकि देश में हरित संपदा की दृष्टि से केवल 3, 518 करोड़ ही पेड़ बचे हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से प्रति वर्ग किलोमीटर देश में कुल 11,109 पेड़ हैं । ग्लोबल रैंकिंग की दृष्टि से पेड़ों के लिहाज से भारत का स्थान दुनिया में 17वां, क्षेत्रफल के हिसाब से 125वां है। जबकि दुनिया के परिपेक्ष में देखें तो 69, 834 करोड़ पेड़ों के साथ रूस पहले, 36,120 करोड़ पेड़ों के साथ कनाडा दूसरे, 33,316 करोड़ पेड़ों के साथ ब्राजील तीसरे, 22,286 करोड़ पेड़ों के साथ अमेरिका चौथे और 17,753 करोड़ पेड़ों के साथ चीन पांचवें पायदान पर है। समाज और सरकार को मिलकर वृक्षारोपण संस्कृति का विकास करना होगा, जिसके फायदे कई स्तरों पर समाज को मिलेंगे। इससे रोज़गार के नए अवसर सृजित होंगे। वहीं जंगलों का विस्तार प्राणवायु के साथ साथ आर्थिक समृद्धि का भी संबल बनेगा।
अगर उत्तराखंड को लें तो वहां देवदार के पेड़ों का कटान जारी है। बीते वर्षो में वहां विकास के नाम पर पर्यावरण की अनदेखी कर हरित संपदा, पानी और मिट्टी की अंधाधुंध बर्बादी की जा रही है। ‘ऑल वेदर रोड’ के नाम पर वहां देवदार के सवा लाख पेड़ काट दिए गए हैं और कई पेड़ों के कटने की संभावना है। हालाँकि सरकार ने भरोसा दिलाया है कि जितने पेड़ काटे जायेंगे उससे ज्यादा पेड़ लगाए जाएंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। वह केवल रिकॉर्ड तक सीमित रहता है हकीकत में नहीं होता। यह सारा क्षेत्र राई, कैल, देवदार, धुनेर आदि शंकुधारी दुर्लभ वन प्रजातियों से भरपूर है। ग्लेशियरों के टूटने पर उसके दुष्परिणाम से बचाने में यही प्रजातियां प्रमुख भूमिका निभाती हैं। देवदार के पेड़ हिमालय और गंगा के सशक्त पट्टी हैं। ग्लेशियरों के तापमान नियंत्रित करने में इसका अहम योगदान है।
विकास से, जिसका लक्षय बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन को बढ़ाना है, पर्यावरण पर बहुत दवाब पड़ता है। विकास की प्रारंभिक अवस्थाओं में पर्यावरण संसाधनों की मांग पूर्ति से कम थी। अब विश्व के समक्ष पर्यावरण संसाधनों की बढ़ती मांग है लेकिन उनकी पूर्ति अत्यधिक उपयोग व दुरुपयोग की वजह से सीमित है। विकास का लक्षय उस प्रकार के विकास का संवर्धन है, जोकि पर्यावरण समस्याओं को कम करे और भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता से समझौता किए बिना, वर्तमान पीढ़ी की जरूरतों को पूरा करे।