
दो टूक: कूटनीति सही पर कूटो आतंक
पाकिस्तान की साजिश से कश्मीर फिर लहूलुहान हो गया!
बचपन से हमें बताया जाता रहा है कि कि कश्मीर भारत का स्वर्ग है, कश्मीर भारत का मुकुट है। हां नक्शे में विभाजित भारत का मुकुट जरूर है इसमें कोई दो राय नहीं है। भाई ये भी बताया जाए कि स्वर्ग उस समय था जब महर्षि कश्यप वहां के राजा होते थे। कश्मीर उन्हीं के नाम से है।अब महर्षि कश्यप वहां के राजा नहीं हैं तथा अब सरकारें है जो हमारे तीर्थ यात्रियों को और पर्यटकों को यह चेतावनी भी नहीं देती कि कश्मीर घूमने लायक जगह नहीं है। यदि इतनी सी चेतावनी भी दे देती तो इन 28 पर्यटकों की जान बच सकती थी। पर सवाल यह है कि कश्मीर की खूबसूरती पर लगा आतंक का ग्रहण आखिर कब हटेगा?
कश्मीर यात्रा: सपना या संकट?
हमारे बॉलीवुड में फिल्म निर्माताओं ने आजादी के बाद कश्मीर के प्राकृतिक सौंदर्य को बहुत भुनाया। हर व्यक्ति वहां के सौंदर्य को देखने के लिए जाता है। मां वैष्णो देवी का प्रसिद्ध मंदिर है और बाबा अमरनाथ की गुफा के दर्शन के लिए भी लाखों श्रद्धालु धार्मिक पर्यटन पर वहां जाते हैं। इससे यह तो सिद्ध होता है कि जम्मू और कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग हमेशा से रहा है। इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं। लेकिन 1990 में जब कश्मीर से हिंदू पंडितों को खदेड़ा गया, उसके बाद भी कारगिल, पुलवामा, पठानकोट, जाने कितनी कितनी आतंकी वारदातें होती रही जिनकी गिनती नहीं की जा सकती।
अब पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा घृणित नरसंहार के बाद भी हमेशा की तरह यही कहा जा रहा है कि इन घटनाओं के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। क्या इतनी सी सूचना देने का काम भारत सरकार का है? यह तो सबको पता है कि किसका हाथ है। सरकारों का काम सीमाओं की सुरक्षा, नागरिकों की सुरक्षा और उनके जान माल की रक्षा का भी है केवल सूचना देना ही सरकार का काम नहीं होता और अभी की ताजा घटना में तो सूचना भी नहीं दी गई। पहलगाम की घटना के बाद भी सरकारों ने यह नहीं कहा कि कश्मीर घूमने लायक है या नहीं।
संकट काल में सरकारों पर ऊँगली उठाना उचित नहीं है। ऐसे समय में सरकार को सहयोग देना होता है और भारत सरकार ऐसा भी नहीं है कि अपने स्तर पर कुछ नहीं कर रही।बहुत कुछ कर रही है लेकिन काफी कुछ चीज हैं जो नहीं कर रही। और इसी का परिणाम है कि इन घटनाओं को रोका नहीं जा सका है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि नागरिकों को अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद भी लेनी होगी सब कुछ आप सरकार के भरोसे नहीं छोड़ सकते। हाल ही की ताजा घटनाओं से यही साबित हो रहा है।
कश्मीर पर्यटन: सुंदरता में छिपा खतरा
एक मौजूदा सवाल पर्यटन प्रेमियों से भी है कि अपने आसपास की प्राकृतिक संपदा को लूटते हुए देखकर जंगलों को कटते हुए देखकर, नदियों यों को प्रदूषित होते हुए देखकर, मुंह फेर कर दूसरी जगह जाकर सुकून से कुछ दिन बिताना चाहते हैं तो उन्हें सचेत हो जाना जाए चाहिए कि दूसरी जगह भी वे सुरक्षित नहीं है। सुरक्षा व्यवस्था ही पर्यटन विकास की महत्वपूर्ण गारंटी है जो जम्मू और कश्मीर की सरकार नहीं कर सकी है। हालाँकि भारत सरकार ने कूटनीतिक स्तर पर कई कदम उठाए हैं जैसे सिंधु जल समझौते को निरस्त करना आदि।
मुझे लगता है कि अब कूटनीति की नहीं कूटने की नीति अपनानी पड़ेगी और आतंक को पालने और पोषित करने वाले देश के साथ सभी प्रकार के सामरिक संबंधों को समाप्त करना होगा। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की बस यात्रा के बाद उपहार में कारगिल मिला।लाहौर में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधान मंत्री नवाज़ शरीफ के जन्मदिन में शरीक होने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अचानक हुई यात्रा के बाद पुलवामा का कांड हुआ।
बहुत हो गया। तीन-तीन युद्ध हारने के बाद भी पाकिस्तान भारत के साथ लगातार छद्म युद्ध करता रहता है। और भारत को हमेशा की तरह घाव देता रहता है। सरकार को चाहिए कि पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने के लालच को छोड़कर वास्तविक धरातल पर काम करें।
आतंक की छाया, कश्मीर का सौंदर्य फीका
आतंकवाद से निपटने में भारत सरकार से कहीं न कहीं चूक तो हो रही है। चंद आतंकी बड़ी बड़ी वारदातें करने में सफल रहते हैं। और हमेशा की तरह अधिक बड़ी घटना के इंतजार में इन घटनाओं को भुला दिया जाता है और नागरिकों को बार-बार इस भ्रम में रखा जाता है कि कश्मीर में अब शांति है।
सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर देश को भरोसा है।यह भरोसा डिगना नहीं चाहिए। यह अच्छी बात है कि विपक्ष ने भी सरकार को तमाम मतभेदों के बावजूद खुला समर्थन दिया है। जन आक्रोश चरम पर है जोश में होश भी कायम रखने की जरूरत है। उम्मीद है कि भारत सरकार कोई कारगर कार्रवाई करेगी। नागरिकों को भी सतर्क रहना होगा।
* स्वतंत्र पत्रकार। प्रस्तुत लेख लेखक के निजी विचार हैं।
अच्छे विचारों का अच्छा लेख , आपने लिखा कि कूटनीति तो सही है पर अब कूटने की नीति पर भी विचार किया जाए।
आपने शत-प्रतिशत सत्य कहा आपके विचारों को समर्थन भी है,पर श्री मान कूटने की नीति अपनाने के लिए विश्व का समर्थन भी हासिल करना पड़ता है,जिसके लिए कूटनीति से भरे पूर्ण प्रयास चल रहे हैं। आपका मनोरथ अवश्य पूर्ण होगा पर थोड़ा धैर्य, सब्र के साथ प्रतिक्षा करनी होगी।