विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
आज भारत की विरासत पर आधुनिक शिक्षा का संकट है। यह आधुनिक शिक्षा और विकास ने हमें विस्थापन, बिगाड़ और विनाश के रास्ते पर चलना सीखा दिया है। इसी लालच से भारत की विरासत का विनाश बढ़ा है। आधुनिक शिक्षा से प्रकृति पर अतिक्रमण, नियंत्रण, प्रदूषण और शोषण करने का भाव बढ़ रहा है। प्रकृति के साथ सहवरण करना हमसे छूटता जा रहा है। यदि प्रकृति से हमारी दूरी बढ़ेगी, तो प्रकृति का क्रोध हमें भी नष्ट करेगा। यह बाढ़ और सुखाड़ प्रकृति का क्रोध ही है।
प्रकृति पर नियंत्रण करने वाले रावण से राम सरलता और सदगी से लड़कर भी जीत गए थे, क्योंकि वो प्रकृति को अपना निर्माता मानते थे, इसलिए प्रकृति के साथ जीने वाले जंगलवासी और जानवारों को संगठित करके रावण जैसे सत्ता लूलूप, नियंता, तानाशाह को हरा देता है।
आज जब बाढ़ आती है, तो हमारा प्रकृति पर नियंत्रण करने का भाव बढ़ता है, कृष्ण की तरह प्रकृति से साथ जीने का रास्ता नहीं ढूढँते है, इसलिए प्रकृति का क्रोध बढ़ता जाता है। इस क्रोध व मानवीय लालच से ही कोरोना जैसे वायरस का प्रभाव भी समय-समय पर बढ़ेगा। हमें अभी वक्त है, कि हम अपने उस काल के राम और कृष्ण से सीख सकते है, यही भारतीय ज्ञानतंत्र की विशिष्टता थी, उससे आज हमारे किशोर, तरुण और युवा दूर जा रहे है।
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भारत की बड़ी विरासत भारत की किसानी, जवानी और पानी है। आज इन तीनों पर भी संकट है। हमारी खेती विरासत को जहरीले रासायनिक पदार्थ और आधुनिक मशीनीकरण ने नष्ट कर दिया है। इससे युवाओं के खेती में रोजगार नष्ट हो रहे है, इससे हमारे देश की लाचारी, बेकारी, बीमारी और बेरोजगारी बढ़ रही है। अभी वक्त है कि, हम भारतीय ज्ञानतत्र को समझने, सहेजने और समझाने का प्रयास करें।
आव्हाने गांव महाराष्ट्र में कल एक सभा का आयोजन किया गया । यहां पर गिरणा नदी बचाव समिति और गांव के लोगों के साथ संवाद करते हुए मैंने कहा कि गिरणा नदी में अवैध रेत उत्खनन रोकने के लिए पूरे समुदाय को साथ आना होगा और समझना होगा कि हम मां के बेटे है। उसके पेट को भरने वाले बने, न कि खाली करने वाले। यदि समाज को पानीदार बने रहना है, तो इस बाजारीकरण से मुक्ति करके, प्रकृति के अनुकूल काम करने होंगे। सभी लोगों ने गिरना नदी को बचाने का संकल्प लिया।
हमें अपने ग्राम की विरासत को जानकर, पहचानकर, समझकर और समझना होगा, फिर युवाओं को साथ लेकर सहेजने का काम करना होगा। तभी हमारी विरासत बची रहेगी। गांधी की बुनियादी शिक्षा, भारत की शिक्षा विरासत है। यह शिक्षा सिर्फ उत्तर बुनियादी न रहे उत्तम बुनियादी बन जाये ऐसा भाव आपके मन में लाना होगा। बापू हमे मानव की जरूरत पूरी करने वाली प्रकृति के साथ लालच मुक्ति का ही पाठ पढ़ाते है।हमे षड्यंत्रकारियों से निपटने के लिए सृजनात्मकता के साथ आगे बढ़ना होगा।
बापू की विरासत से हमें सादगी का जीवन मूल्य सीखना चाहिए, हम जैसे ही वैभव में पड़ते है तो जीवन में बिगाड़ होने लगता है, बापू ने स्वेच्छिक रूप से गरीबी में जिया है , क्योंकि यह प्रकृति से लेती कम और देती ज्यादा है। यह सही वक्त है, जब बापू की विरासत को बचाने के लिए, हम एकजुट होकर काम करेंगे।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।