– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
मां गंगा के लिए अब भारत की माताओं ने सत्याग्रह करना शुरू कर दिया है, यह भारत के लिए गौरव की बात नहीं है, यह भारत के लिए लज्जा की बात है, कि हमारी मातृशक्ति अपनी मां की सेहत को ठीक रखने के लिए अपने प्राणों को बलिदान देने के लिए तैयार हुयी है। उनके प्राणों के बलिदान की जरूरत क्यों हुयी यह अत्यन्त सोचनीय है।
इस देश में तो हम अपनी मां की बीमारी की रक्षा के लिए हमारी बहिन के प्राणों का बलिदान करे यह उचित नहीं है। हम पूरे देश के लोग ब्रह्मचारिणी पद्मावती के त्याग एवं समर्पण का सम्मान करते है, कि वो अपने प्राणों का समर्पण अपनी मां के लिए कर रही है लेकिन उनको समर्पण ना करना पडे वह हमारे लिये गौरव होगा। जो भी सरकार ने मां गंगा के लिए वादे किये है उन वादो को सरकार पूरा करे।
ब्रह्मचारिणी पद्मावती का गंगा के लिए प्राण देना उचित नहीं है। हम इसे उचित नहीं मानते पर हम यह मानते है कि हमारी एक साध्वी ब्रह्मचारिणी मां गंगा के लिए बलिदान को तैयार हुयी है लेकिन हम सभी को सरकार पर दबाव बनाना है ताकि उन्हें इसके लिए प्राण ना देने पडे।
हाल ही में उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर हुए जल कार्यकर्ताओं एवम जल वैज्ञानिकों के तीन दिवस के राष्ट्रीय जल सम्मेलन में गंगा की अविरलता के लिए 15 दिसंबर से हरिद्वार के मातृसदन में आमरण अनशन करने वाली ब्रह्मचारिणी पदमावती के समर्थन में प्रस्ताव पारित हुआ है और निर्णय लिया गया है कि उनके समर्थन में उज्जैन में जल सम्मेलन में जुटे देशभर के जल के प्रति जागरूक लोग और गंगा भक्त 5-6 जनवरी को हरिद्वार के मातृ सदन में गंगा सम्मेलन का आयोजन करेंगे।
अभी तक मातृ सदन में 3 संतों ने गंगा मां के लिए बलिदान दिया है। इसमें प्रख्यात नदी वैज्ञानिक प्रोफेसर जी डी अग्रवाल उर्फ सानंद स्वामी भी शामिल हैं जिन्होंने गंगाके अविरलता के लिए 111 दिनों का अनशन कर अपनी आहूति दे दी।
ब्रह्मचारिणी पद्मावती मातृ सदन से चौथी सत्याग्रही है। इन्हें अपना बलिदान ना करना पडे उससे पहले गंगा अविरल बन जाये, गंगा का खनन रूक जाये, गंगा मे प्रदूषण रूक जाये। यह रोकने के लिए हम सबको यह सत्याग्रह करना चाहिए। हम उनके सत्याग्रह के विचार के बहुत पक्षधर नहीं है। उन्होंने जिस मजबूरी में सत्याग्रह शुुरू किया वह अच्छा नहीं है। उन्हें अपने प्राणों का बलिदान ना देना पडे इसके लिए देशभर के लोगों को संवेदनशील बनना ही होगा। इसके लिए मेरा आह्वान है कि सभी जल की चिंता करने वाले लोग 4 जनवरी की शाम को मातृ सदन, कनखल, हरिद्वार में पहुंचे, 5 और 6 तारीख को सुबह ब्रह्मचारिणी पद्मावती जी के गंगा सत्याग्रह में शामिल हो और गंगा से जुडे तमाम विषयों पर विविध सत्रों में चर्चा करे।
यहां में यह भी बताना उचित समझता हूँ की उज्जैन के राष्ट्रीय जल सम्मेेलन में देशभर से आये नदी पुनर्जीवन के विशेषज्ञो के द्वारा क्षिप्रा नदी की अविरल एवं निर्मल प्रवाह बनाये रखने के लिए श्वेत पत्र जारी किया। इसमें कहा गया कि क्षिप्रा नदी के प्रदूषण को कम किया जायेगा और इसके लिए क्षिप्रा जल बिरादरी का गठन किया गया जिसमें क्षिप्रा को पुनर्जीवित करने वाले सभी लोगों को सम्मलित किया जायेगा। यह सभी लोग मिलकर नदी को पुर्नजीवित करने के लिए सामुदायिक स्तर से लेकर प्रशासनिक स्तर तक कार्य करेगेे।
हमारी नदियों की अविरलता एवम जल स्रोतों की सुरक्षा के लिए सामूहिक पहल को बढाना हमारी जिम्मेदारी हैं इसके लिए सरकार के सामने हम कई ऐसे प्रस्ताव बना रहे है जो सरकार के साथ मिलकर जल प्रदूषण को सही कर सकता है। हमारे महाराष्ट्र के साथियों ने पिछले दिनों एक अभिनव प्रयोग किया है। उन्होंने कुम्भ व इस तरह के दूसरे धार्मिक आयोजन जो नदियों के किनारे लगते है उसका बहिष्कार करने की मांग सरकार से की है। उन्होंने सरकार से कहा है कि यदि हम नदियों को साफ नहीं कर सकते है तो हमें कोई हक नहीं है कि हम किसी भी नदी के किनारे किसी कार्यक्रम का आयोजन करे। जब नदियों का पानी न पीने के लायक बचा है ना ही आचमन लायक तो सरकार को चाहिए कि कुम्भ जैसे मेलों का आयोजन बंद कर दे।
असल में इतिहास इस बात का गवाह है कि कुम्भ जैसे आयोजन भलाई-बुराई और नदियों को साफ रखने प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए ही किये गये थे, लेकिन आधुनिक भारत में नदियों को मात्र उपयोग की वस्तु बना दिया गया है जिससे नदिया गंदी होती गयी और सूखती चली गई। आंकड़े बताते हैं कि आज हमारे देश मे 2.65 लाख गांवों में पानी पीने लायक नहीं रहा है। आज देश के 72 प्रतिशत इलाकों में पानी के भयंकर समस्या है।
समय आ गया है कि हमे अब जागना होगा और हमारे जल स्रोतों को बचाने की जंग नहीं लड़नी पर अब एक यज्ञ करना होगा। हमे अपनी नदियों के हक के लिए खड़ा होना ही पड़ेगा। हमें याद रखना होगा कि जल ही जीवन है। जल ही पर्यावरण है। आइये एक प्रण करें कि जल बचाने के इस यज्ञ में हम सब संग हों। तभी हम इस धरती को इस जल संकट से उबार सकते हैं और विनाश से बचा सकते हैं।
*लेखक जल पुरूष के नाम से विख्यात मैग्सेसे एवं स्टॉकहोल्म वॉटर पुरुस्कार विजेता पर्यावरणविद हैं। यह लेख उनके निजी विचार हैं।
गंगा मैया की सुरक्षा के लिए एक और साधक ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी है। मां गंगा की निर्मलता, अविरलता, सफाई, प्रदूषण मुक्ति का आश्वासन सरकार भी बार बार दे रही है मगर उस तरफ कदम बढ़ते नहीं नजर आ रहे हैं। जन थन खूब खर्च करने की बात कही जा रही है। उससे गंगा मैया का भला होता नहीं दिख रहा है, बल्कि गंगा को बांधा जा रहा है। घेरा जा रहा है। घाटों के नाम पर बड़ी बड़ी सीढ़ियों का जाल मां की गोद में किया जा रहा है। उसके शरीर को रौंदा जा रहा है। खनन तक को नहीं रोका जा सका है। मां को घाव पर घाव दिए जा रहे हैं।
नदी में नीर हो, नाद हो, नाच हो, नमन हो, निर्मलता, अविरलता हो।
इसके लिए मातृ स्वरुपा, मातृशक्ति साधिका पद्मावती ने मातृ सदन में मातृ गंगा के लिए मातृत्व बचाने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाने को मजबूर हुई हैं। हम उनकी भावनाओं की कद्र करते हैं। मां गंगा को बचाना जरूरी है। साथ ही हमारी मान्यता है कि गंगा मैया के साधक, साधिका, मां गंगा के लाडले- लाडली बेटे- बिटिया लम्बे समय तक मां की गोद में फले-फूले, आगे बढ़े। मां की सेवा कर पुण्य प्राप्त करते हुए जीवन भर मां गंगा की गोद को हरी भरी रखें। मां गंगा के लिए जीने वाले लोगों की आवश्यकता है जो लम्बे समय तक तप, तपस्या करते हुए मां की सेवा में लगे रहें।
हम नागरिकों से अपील करते हैं कि मां गंगा की सेवा के लिए अपना सर्वस्व समर्पण करने वाले साधकों का साथ दें, उनकी आवाज में आवाज मिलाएं।
सादर जय जगत।
रमेश चंद शर्मा, बा बापू 150