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किशोर उपाध्याय*
डॉ. जितेन्द्रनाथ पांडे के कोरोना से निधन के बाद डॉक्टर बिरादरी में भय का वातावरण व्याप्त हो गया है।
डॉ. पाण्डे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नयी दिल्ली में डायरेक्टर और पल्मोनोलॉजी के प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत होने के बाद दिल्ली में ही एक बड़े ग़ैर सरकारी अस्पताल में कार्य कर रहे थे।वे फेफड़ों से सम्बन्धित रोगों के जाने-माने विशेषज्ञ थे।
आज मैंने मेडिकल फ़्रटर्निटी से फ़ोन पर बातचीत की, जिसमें सूरत, अहमदाबाद, मुम्बई, दिल्ली और देहरादून के साथी सम्मिलित थे। मैं उन सबके जज़्बे को प्रणाम करता हूँ।
अधिकतर ने कहा कि पी पी ई किट, मास्क, दस्ताने नहीं हैं, हैं भी तो गुणवत्ता वाले नहीं हैं।
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फिर भी वे लोग इंसानियत की रक्षा के लिये अपना काम कर रहे हैं। परिवारजनों को लेकर उनकी चिंता ज़्यादा है, उन्होंने कहा कि जब हम पूरी दुनिया को पाठ पढ़ा रहे हैं, लेकिन खुद उसका पालन नहीं कर पा रहे हैं, जबकि होना यह चाहिये था कि हम लोगों की रहने की व्यवस्था अस्पताल या अलग कहीं होटल में होनी चाहिये थी। हम लोगों का भी कोरोना टेस्ट कमसे कम दो हफ़्ते में तो एक बार होना चाहिये।
सबसे बड़ी चिंता परिवारजनों को लेकर है, कईयों के तो छोटे बच्चे हैं। सावधानियों के बाद भी वे संपर्क में आ जाते हैं।शहरों में हर कोई बंगलों नहीं रह सकता, अधिकतर लोग दो कमरों या एक कमरे के फ़्लैट में रह रहे हैं।
दहशत का माहौल यह है कि कोरोना पेशेंट के मरने के बाद उसके अपने उसे हाथ तक नहीं लगाते, क्रिमेशन तक में नहीं जाते और हम तो उनका इलाज कर रहे हैं, पोस्टमार्टम आदि कर रहे हैं।
अब जिस तरह कोरोना के मरीज़ बढ़ रहे हैं। सरकारों ने अगर इन लोगों की सुरक्षा और सरोकारों पर ध्यान नहीं दिया तो भविष्य में बड़ी चुनौती का ख़तरा खड़ा है, अगर इस समुदाय ने हाथ खड़े कर दिये तो स्थिति क्या होगी?
सोचिये!
*लेखक पर्यावरणविद एवं उत्तराखंड के पूर्व मंत्री तथा पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं।यहाँ प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।