
कोटा: सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के सम्मान और संरक्षण के लिए हर साल 18 अप्रैल को विश्व विरासत दिवस मनाया जाता है। आज जब भारत में भी यह दिवस मनाया जा रहा है तो विश्व स्तर पर मनाए जाने वाले इस ‘अंतर्राष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल दिवस’ के अवसर पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आज पूरे भारत में एएसआई स्मारकों को देखने पर कोई शुल्क नहीं लेगा। इस पहल का उद्देश्य आगंतुकों को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को देखने के लिए प्रोत्साहित करना है। अपने संरक्षण में 3,698 स्मारकों और स्थलों के साथ, एएसआई देश की ऐतिहासिक विरासत और वास्तुशिल्प चमत्कारों से फिर से जुड़ने का अवसर प्रदान कर रहा है।
इस दिवस की शुरुआत 1982 में आईसीओएमओएस (इंटरनेशनल कौंसिल ऑन मोनुमेंट्स एंड साइट्स – स्मारक और स्थलों पर अंतर्राष्ट्रीय परिषद) द्वारा की गई थी। बाद में, 1983 में यूनेस्को ने इसे आधिकारिक रूप से अपना लिया।इस वर्ष इस दिवस का विषय है “आपदाओं और संघर्षों से खतरे में पड़ी विरासत: आईसीओएमओएस की 60 वर्षों की कार्रवाइयों से तैयारी और सीख।” इसके तहत प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं, खतरों या संघर्षों से धरोहर स्थलों की सुरक्षा के बारे में जागरूकता फैलाई जा रही है।
विश्व धरोहर स्थल पृथ्वी पर विशेष स्थान हैं जिनका मानवता के लिए बहुत महत्व है। ये सांस्कृतिक, प्राकृतिक या दोनों का मिश्रण हो सकते हैं। यूनेस्को के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत उन्हें संरक्षित किया जाता है। यूनेस्को उन स्थानों को विश्व धरोहर का खिताब देता है जो सांस्कृतिक, ऐतिहासिक या वैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण हैं।

पिछले कुछ वर्षों में भारत ने विश्व धरोहर सूची में अपनी उपस्थिति लगातार बढ़ायी है पर यहां इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि विरासत सिर्फ भवन, महल, गढ़, चित्रकला, शिल्प ही नहीं है अपितु जंगल, नदियां, पर्वत, तालाब पेड़ सब प्राकृतिक धरोहर है। यूनेस्को ने भी प्रकृति को धरोहर में समाहित किया है। भारत में धरोहर संरक्षण के लिए भारतीय कला एवं सांस्कृतिक निधि (इंटेक) जैसी संस्थाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और लगातार यह परंपरा जारी है।
हमारी धरोहरों के समक्ष त्रुटि पूर्ण विकास नीति के कारण गंभीर संकट खड़ा हो गया है इस पर सरकारों को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। विकास की संपूर्ण अवधारणा हमारी प्राकृतिक संपदा और पुरातत्व महत्व की संपदा को संरक्षण प्रदान करने की होनी चाहिए। राजस्थान तो विरासत को सहेजने के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। हमारे राजस्थान में पर्यटक जैसलमेर की हवेलियां जयपुर, उदयपुर ,चित्तौड़, बूंदी ,कोटा के किले एवं वन अभ्यारण को देखने के लिए आते हैं। पिछले कुछ सालों में राजस्थान सरकार ने हाडोती संभाग के मुकुंदरा एवं रामगढ़ को बाग रिजर्व घोषित करके यहां बाघ भी स्थानांतरित किए हैं। राज्य के नाहरगढ़ और सज्जनगढ़ के बाद कोटा में भी अभेडा बायोलॉजिकल पार्क बना है जहां आने वाली पीढ़ी दुर्लभ वन्य जीवों का साक्षात दर्शन कर सकती है। वन एवं वन्य जीव का महत्व समझ सकते हैं। कहने को हम चंबल नदी पर बने रिवर फ्रंट को भी विरासत कह सकते हैं लेकिन जो प्राकृतिक विरासत चंबल है उसको रिवर फ्रंट से कोई फायदा नहीं हुआ। किशोर सागर तालाब में स्थित जगमिंदर भी कोटा के लिए शुभंकर है लेकिन उसकी दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है।चंबल में आज भी सैकड़ो प्रदूषित नाले पहले की तरह ही मिल रहे हैं।
हमारा रणथंभौर नेशनल पार्क भारत की ही नहीं अपितु विश्व की धरोहर है। केवल विदेशी पर्यटक ही नहीं देशी पर्यटकों के लिए भी राजस्थान प्रमुख स्थान रखता है। पर्यटन का विकास धरोहरों के संरक्षण में ही है प्रदेश सरकारों को समझना चाहिए कि वन एवं वन्य जीवों को संरक्षण की जरूरत है। दुर्भाग्य से पिछले दिनों राजस्थान की शाहाबाद एवं जैसलमेर में विकास परियोजनाओं के नाम पर जंगलों को काटने की योजनाएं बनी चिन्ह पर हाई कोर्ट ने प्रसंज्ञान लेकर रोकने का एक श्रेष्ठ कार्य किया है। जनमानस प्राकृतिक धरोहरों को बचाने के लिए आंदोलित है। राजस्थान के बाहर भी नजर डालें तो हाल ही में हैदराबाद में कांचा गचीबोवली का जंगल हटा किती आईटी पार्क के नाम पर उजाड़ डाला और वन्यजीवों को अपने प्राकृतिक आवास से बेदखल कर दिया। अब यह वन्य जीव हिंसक हो कर इधर-उधर भटक रहे हैं। क्या हमारी सरकारों का दायित्व नहीं बनता कि इस प्रकार की बेहूदी योजनाओं को त्याग दिया जाए। हैदराबाद भी ही नहीं पूर्व में छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में भी जंगलों की भारी बर्बादी हुई है। प्राकृतिक धरोहर से छेड़छाड़ का परिणाम भी हमने भुगत रहे है। जलवायु परिवर्तन क्योंकि विभिषिका सामने खड़ी है। बाढ़ सुखाड़ हमारे स्थाई मेहमान बन चुकें हैं। जब मौसम ही अनुकूल नहीं रहेगा तो पर्यटन विकास की सारी इबारतें मिटानी पड़ेगी। जहां का समाज अपनी धरोहर को सहेज कर रखता है वहां का पर्यटन विकास स्वत: ही हो जाता है।
हम नव निर्माण की चकाचौंध में प्रकृतिक धरोहरों को सहेजने की बात को न भूलें तभी विरासत दिवस मनाना सार्थक है। नहीं तो हो यह रहा है कि हम हमारे आसपास के जंगल, पहाड़ों, नदियों को नष्ट-भ्रष्ट होते देखते रहें और कुल्लू मनाली, नैनीताल, शिमला में सुकून तलाशने के लिए भटक रहे हैं। हमें विकास संतुलित चाहिए न कि प्रकृति का भक्षण करने वाला।
*स्वतंत्र पत्रकार एवं पर्यावरणविद्