विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
आज दिनांक 3 जनवरी 2022 को मेवात क्षेत्र में पुराने तालाबों को पुनर्जीवित करने और तरुण भारत संघ द्वारा निर्मित नए तालाबों को देखने हेतु नुहू जिले में मावली कई गांवों में भ्रमण किया। नई जलसंरचनाओं के निर्माण हेतु जगहों का चिन्हीकरण किया गया। इसके उपरांत तरुण भारत संघ द्वारा पुरानी साइटों को श्रमदान से मरम्मत करके ठीक करने हेतु किए जा रहे कामों को देखा और इस क्षेत्र में शहद के संरक्षण व संग्रह करने वाले लोगों के साथ बातचीत की। दिन भर में राजस्थान के मेवात क्षेत्र की सीमा पर तिजारा, नीमली में ग्रामीणों और तरुण भारत संघ के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की।
जल संरक्षण से पूरी प्रकृति के संरक्षण की इस मुहिम से एक तरफ जीवन में प्राकृतिक समृद्धि आती है तो दूसरी तरफ प्रकृति के साथ, उसके रक्षण-संरक्षण व्यवहार और संस्कार विकसित होता है। तरुण भारत संघ ने जहां-जहां भी काम किए है, उन क्षेत्रों में प्राकृतिक खेती और पानी के संरक्षण पर हमेशा बल दिया है।
मेवात क्षेत्र आज पानी और पर्यावरण के संकट से जूझ रहा है। 1991 में उच्चतम न्यायालय ने तरुण भारत संघ ने अरावली को बचाने के लिए एक याचिका दायर की थी। उस याचिका के परिणाम स्वरूप जो निर्णय हुआ, उसमें 7 मई 1992 को अरावली प्रोटेक्शन एक्ट बन गया। 7 मई 1992 नोटिफिकेशन में पूरी अरावली को संवेदनशील क्षेत्र घोषित करके, उसमें जो भी विकास के नाम पर विनाश हो रहा है, उसको रोकने के लिए अधिसूचना जारी की थी। लेकिन यह अधिसूचना अरावली को कुछ सीमा तक ही बचा सकी है, इसकी संपूर्ण पालना अभी नहीं हो रही है। अभी भी अरावली में बहुत सारी जगह पर उस कानून के विरुद्ध अवैधानिक खनन का काम चल रहा है। यह खनन का काम हरियाणा के गुड़गांव, फरीदाबाद, गुजरात में हिम्मत नगर, मेहसाना, बनासकांठा, राजस्थान के अलवर, जयपुर, अजमेर, इन सभी जगहों पर कुछ ना कुछ इस अधिसूचना के विरूद्ध काम जारी है। जब हमने 2 अक्टूबर 1993 को अरावली बचाओ यात्रा हिम्मतनगर गुजरात से आरंभ की थी। वह यात्रा 22 नवंबर 1993 को दिल्ली में पहुंचकर, संसद के अध्यक्ष स्वयं उस ज्ञापन को लेने के लिए आए थे। यात्रा के समापन पर स्वयं शिवराज पाटिल ने ज्ञापन स्वीकार किया था।
वह एक समय था जब अरावली को बचाने के लिए राज और समाज दोनों ने सजग होकर बहुत सारी खदानों को बंद करवाया था। अभी धीरे-धीरे फिर से यह खनन खुलने लगा है। हमारे जंगलों के प्रबंधित (नो-गो) क्षेत्र में भी उद्योगों और लालची इंसानों का प्रवेश हो गया है। यह लालची इंसान जब नो-गो क्षेत्र में जाता है, तो वहां भी विनाश करता है।
यह नो- गो क्षेत्र हमारी बहुत गहरी विरासत है। जितना हमें अपने जीवन को बचाना जरूरी है, उतना ही उस जंगल व जमीन के नो-गो क्षेत्र को बचाना जरूरी है। लेकिन अब नो-गो क्षेत्रों में भी कोयले की खदानें और बहुत सारे उद्योग लग गए हैं। यह सारे के सारे उद्योग एक तरफ लोगों को सिलिकोसिस और कई तरह की जानलेवा बीमारियों से तबाह कर रहे हैं। दूसरी तरफ प्रकृति का शोषण, प्रदूषण और अतिक्रमण करके, प्रकृति में विनाश की लीला शुरू कर रहे हैं। मित्रों आप सब सजग होकर भगवान की दी हुई पानी की बूंदों को रक्षण, संरक्षण और उनको प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए प्रदूषण मुक्ति का काम करें। यदि आप प्रकृति के रक्षण, संरक्षण और प्रदूषण मुक्ति का काम करेंगे, तो आप हमेशा आगे बढ़ेंगे।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।