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रविवार पर विशेष
मां का दूध अमृत, सर्व गुण संपन्न
रमेश चंद शर्मा*
माँ का दूध सर्वोत्तम, सबसे बढ़िया, अमृत के समान माना जाता हैI मेरा सौभाग्य, अहोभाग्य रहा, मुझे लम्बे समय तक माँ का दूध पीने का सुअवसर मिला या यह कहें कि मेरी माँ का दूध पीने की आदत अन्य कारण से भी नहीं छूट पाई। बड़े होने पर माँ ने बताया था कि आस पडौस में कई बार ऐसे मौके बने जिसके रहते माँ के अलावा कुछ समय के लिए अन्य माँ का दूध भी मुझे पीना पड़ा। वजह बच्चा मर जाना थीI उस समय वह माँ का दूध नहीं निकलने की वजह से, उस माँ को कुछ दिन भयंकर दर्द, कष्ट झेलना पड़ रहा था।छाती से दूध निकालने का साधंन नहीं होने की वजह से ही मुझ को दूध पीना पड़ा। माँ बताती कि मेरी शर्त रहती अपना दूध पिलाएगी तो ही उसका भी दूध पिऊंगा। इस प्रकार मुझे अधिक दूध मिला, इससे मेरी छोटी बहन माया के हिस्से में से मैंने चोरी की। यह बात अब समझ में आती है।उस समय तो छोटी बहन को खूब चिढाता था।
उस समय कुछ माताएं गलतफहमी, अनजाने में बड़ा गलत काम करती थी। अमल के नाम पर बच्चों को अफीम देती थीI इससे बच्चा सो जाता, जिससे माँ अपने काम काज आसानी से निपटा लेतीI उसे नहीं मालूम होता कि अमल के नाम पर नशा, गलत आदत डाल रही हैI कभी कभी अमल की मात्रा ज्यदा हो जाने पर बच्चा सोता ही रह जाता। गाँव में कुछ बच्चे तो इसके शिकार बने ही। बहुत समय बाद इसकी पोल खुली। यह कब, कैसे, किसने शुरू किया, इसकी जानकारी तो नहीं हो पाई मगर इस आदत का फैलाव जरुर रुक गया।
गाय, गऊ का दूध, बकरी का दूध, भेड़ का दूध, ऊंटनी का दूध का अलग अलग असर है। ऊंटनी का दूध बहुत ही मजबूत होता है, मगर सबको हजम नहीं हो सकता, और अगर हजम हो जाए तो बड़ा गुणकारी माना जाता है। जिन बच्चों का हाजमा खराब हो तो उन्हें भेड़ का दूध देना उपयोगी माना जाता है। उसके बाद बकरी का, फिर गाय का। बचपन में हमारे और आसपास के गांवों में भैंस बहुत ही कम होती थी। गाय घर घर में, बैल जोड़ी किसान के यहाँ। कुछ लोग बैल जोड़ी रखते और बटाई पर खेती करते या बैल जोड़ी के साथ रोज़गार पाते। जो गाय दूध नहीं देती, तब भी ठान में रखना अच्छा माना जाता था। उसका गोबर जलाने एवं खाद बनाने के काम आता। खाद की बिक्री भी हो जाती।
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बाबा श्री महाराम ने एक काली गाय पाल रखी थी। उसकी विशेषता थी कि कुनबे के बाहर का कोई भी व्यक्ति उसके ठान के पास से भी नहीं जा सकता था। वह उसे मारने दौड़ती थी। मगर कुनबे के किसी सदस्य को वह कुछ नहीं कहती थी। छोटे बच्चें भी उसके पास, साथ खेलते रहते। कुछ लोग कभी हारी बीमारी में उसका दूध मांगने आते थे।
हमारे पास भी एक सफेद गाय थी। जिसका शरीर, शक्ल सूरत, काठी इतनी सुंदर थी कि उसे लोग देखते ही रह जाते। बहुत आग्रह पर भी पिताजी ने उसे गांव से बाहर की प्रतियोगिता में भेजने की स्वीकृति नहीं दी। बहुत लोगों का मानना था कि यह गांव का नाम रोशन कर सकती हैं, पुरस्कार विजेता रहेगी।
मुझे धारोष्ण दूध पीने में बड़ा मज़ा आता। इसका अपना ही आनंद है।
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गाय नट गई, मतलब दूध देना बंद कर दिया। अब दूध के प्रबंध के लिए एक बकरी का अस्थाईतौर पर प्रबंध किया गया। किसी ने ऐसा सोचा ही नहीं था फिर भी, भाग्य से यह बकरी ऐसी आई जो परिवार का हिस्सा ही बनकर रह गई। दूध की मात्रा इतनी कि गाय का नट जाना खला नहीं। दूध की आवश्यकता यह पूरी करती। बकरी के दूध की खीर बनने लगी। बकरी का दूध भी लाभदायक होता है। जल्दी हजम होता है।
अपनी छोटी बहन मायावती की शादी में गाय उसको दे दी। इसे गांव माछरौली, छज्जर भेजने के लिए जिसको तय किया उसने कई प्रयास किए मगर हर बार दूसरे दिन गाय अपने ठान पर पहुंच जाती। कोई रास्ता नहीं पाकर अपन ने तय किया कि इसे बहन के पास पहुंचाऊंगा। मेरे साथ यह अपने आप चलने लगी। पिताजी भी कुछ समय मेरे साथ रहे। और पैदल-पैदल चलते चलते माछरौली पहुंच गया। दिल्ली रहने के बावजूद अपना गांव का स्वभाव, संस्कार नहीं छूटा था। वहां कुछ दिन मेहमाननवाजी करके अपन लौटे।
अब आश्चर्य लगता है, मगर उस समय सर्दी के मौसम में पानी से कपड़ा गीला करके उसमें घी बांधकर दूर दूर तक ले जाते थे। यह इसलिए करना पड़ता था क्योंकि गाँव में आसानी से मिट्टी के अलावा बर्तन उपलब्ध नहीं होता था। मिट्टी के बर्तन में ले जाने पर टूटने का डर, वजनी होना था।
घर में थोडा ज्यादा कुछ भी आए, उसे भी बाँटकर खाना है, वह भी परिवार में ही नहीं बल्कि आस पडौस में भी। घर में एक दर्जन केले आए तो तीन चार केले तो बंटने ही हैI एक एक केले के चार चार टुकड़े किए जाते। इस प्रकार इन टुकड़ों को आस पडौस में बांटते। देखने में यह छोटे छोटे टुकड़े होते मगर इनमें छुपा प्यार, स्नेह, अपनापन, बाँटकर खाने का संस्कार। आज तो इसकी कल्पना करना ही कठिन है।ऐसा सोचने पर भी शर्म, लज्जा आती है। आज समाज की सरलता, सहजता, सादगी को ग्रहण लग गया है। परिवार में भी खुलापन, पारदर्शिता गायब हो गई है।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।
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संस्मरण बहुत अच्छा लगा।साझा करने के लिए धन्यवाद।