– रमेश चंद शर्मा
गुवाहाटी: आज भी वशिष्ठ गंगा कल कल बहती हुई पहाड़, जंगल के रास्ते अपनी चाल से निर्भय, निर्विकार, निश्छल अविरल, निर्मल, पवित्र धारा के साथ बिना घबराहट के अठखेलियां करती हुई बह रही है। जब तक गहरे, सघन पेड़ पौधों, झाड़ियों, बेल बूटों, लताओं, हरियाली से आच्छादित स्थल से आती है तो साफ सुथरी, जीव जंतुओं, पशु पक्षियों, पेड़ पौधों की प्यास बुझाती, हंसती मुस्कुराती, नाचती कूदती, गुनगुनाती, गाती बजाती, संगीत का आनंद लेते हुए प्राकृतिक सौंदर्य के साथ वशिष्ठ ऋषि की गुफा को पानीदार बनाने पहुंचती है।
वशिष्ठ गुफा पर सुबह सवेरे, सांझ और रात्रि काल में इसके संगीत का सुख, आनंद आप भी शांति सदभावना से शांत बैठकर, ध्यानमग्न होकर ले सकते है। वशिष्ठ गुफा मंदिर के पास बस्ती के संपर्क में आने के बाद वशिष्ठ गंगा घबराने लगती है। यहां से मनुष्य का अधिक संपर्क होने लगता है। अन्य नदियों की तरह इसमें भी वह सब गिरने लगता है जो इसे मैला, प्रदूषित करता है।
मंदिर से थोड़ी दूरी के बाद यह दो धाराओं में होकर बहती जाती है और आगे चलकर भरालू नदी में मिल जाती है। भरालू आगे चलकर ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है। इसके आसपास गजराज, हाथियों का बसेरा है। बंदर भी खूब है। दोनों समूह, झूंड में रहना, चलना फिरना, घूमना पसंद करते हैं। समूह का नेता, सरदार भी होता है। जो सबसे शक्तिशाली, समझदार, अनुभवी होता है। समूह उसके नेतृत्व को स्वीकार करता है।
वशिष्ठ गुफा मंदिर बहुत पुराना है। वशिष्ठ गंगा एवं जंगल के किनारे स्थित है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग भी इसको स्वीकार करता है। इसका निर्माण पत्थर से तथा ईंट से अलग अलग समय हुआ।
अहोम राजा स्वर्गदेव राजेश्वर सिंह ने सी. 1751-1769 सी.ई. में। इससे पूर्व पत्थर वाला सी. 1000-1100 सी.ई. में। मंदिर के गृभगृह में कुंड है। जहां कहा जाता है कि वशिष्ठ ऋषि के चरण चिन्ह मौजूद हैं। पूजा पाठ के समय कुंड के जल में चढ़ाये जाने वाली सामग्री के जल में पड़े रहने से वह सड़ने लगती है और दुर्गंध आने लगती है। सुबह सवेरे इसकी सफाई के समय मैंने खुद इसका अनुभव किया।
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार निम्नलिखित जानकारी वहां लिखित है – “ईंट से बने इस मंदिर का निर्माण अहोम राजा स्वर्गदेव राजेश्वर सिंह सी. 1751- 1769 सीई के शासनकाल के दौरान किया गया था। वर्ष 1764 ई. पूर्व काल के पाषाण मंदिर के अवशेषों पर। यह एक अष्टकोणीय मंदिर है जिसके ऊपर एक बहुभुज शिखर है। मंदिर में गर्भगृह में एक कुंड है जिसके बारे में माना जाता है कि इसमें ऋषि वशिष्ठ के पैर की छाप है।“
ब्रह्मर्षि वशिष्ठ एवं राजर्षि विश्वामित्र के प्रसंग, कहानी, कथा, किस्से पढ़ने, जानने, समझने, सीखने, सबक, प्रेरणा लेने के लिए बहुत महत्वपूर्ण, उपयोगी, सार्थक है।