50 साल पहले तरुण भारत संघ जयपुर विश्वविद्यालय, राजस्थान के परिसर में लगी आग से आहत अग्नि पीड़ितों को राहत देने के काम के लिए बना था। इस दौरान युवाओं की टीम ने सामग्री एकत्रित करके 44 अग्नि पीड़ित परिवारों को राहत पहुंचाई थी। उसके बाद यह संगठन युवाओं में सामाजिक काम करने का संस्कार और व्यवहार विकसित करने का काम करने लगा।
1980 में आते-आते यह बात उठी कि गांवों से उजड़ कर लोग शहरों में आ रहे हैं। शहरों में उनकी जिंदगी संकट में गुजरती है। गांव के खुले वातावरण से निकलकर, शहरों की मलिन बस्तियों में रहकर बीमार होते हैं। शहर की हवा और पानी की मालीनता लाचार, बेकार बीमार बनाती है। इसलिए सबसे पहले उस समय की दौसा तहसील के रामपुरा गांव की ‘बंजारो की ढाडी’ में एक युवा शिविर लगाकर तालाब बनाया था।
उस जमाने में हम दौसा, जमुआ रामगढ़ के गांव में रहे। इन दो तहसीलों के गांव-गांव जाकर युवाओं को सामाजिक कार्य करने के लिए तैयार किया और स्वावलंबी विश्वास पैदा हुआ। फिर तरूणों की एक टीम अलवर जिले की थानागाजी तहसील में किशोरी-भीकमपुरा गांव में नवम्बर 1985 में पहुंची।
तरुण भारत संघ ने सबसे पहले गोपालपुरा गांव जो उस जमाने में लाचार, बेकार, बीमार होकर उजड़ रहा था। इस गांव में बहुत लोगों ऐसे थे, जिनको शाम के वक्त दिखता नहीं था। उनकी चिकित्सा, दवाई और छोटे बच्चे-बच्चों की पढ़ाई का काम शुरू किया। दवाई और पढ़ाई के काम ने लोगों को बीमारी से मुक्ति दिलाई। यही तरुण भारत संघ के लिए टर्निंग प्वाइंट बन गया था।
तरुण भारत संघ तब अपनी सेवा और राहत के काम को भूलकर गांव में पानी के प्रेम से प्राकृतिक समृद्धि लाने के रास्ते पर लग गया। गोपालपुरा गांव में चबूतरे वाला जोहड़ बनाया और उसके बाद मेवालों का बांध; इन दोनों ने पूरे क्षेत्र में जल क्रांति के बीज बो दिए। तालाब का जलसा( जल पूजा ) हुई। इस जलसे में गोपालपुर गांव के लोगों ने अपने सभी रिश्तेदारों को बुलाया और मिलकर यह फैसला किया कि गोपालपुर जैसा पानी का काम सभी क्षेत्रों में करना चाहिए। यह बात 1986-87 में गोपालपुर से निकलकर पूरे क्षेत्र में फैलने लगी थी।
इस काम और विचार को विस्तार देने के लिए तरुण भारत संघ में एक समस्थानिक कार्यक्रम ही बना दिया था। देवउठनी ग्यारस पर ‘जल बचाओ-जोहड़ बनाओ’ पदयात्रा शुरू हुई। नवम्बर 1986 में यह पहली पदयात्रा थी। दूसरी पदयात्रा अप्रैल माह में जब गांव के लोग खाली होते हैं और दोपहरी में सभी एक जगह एकत्रित रहते है, तब ‘ग्राम स्वराज’ की यात्राएँ शुरू की। इन यात्राओं में ग्राम स्वावलंबन के लिए ‘हर घर में गोबर की खाद बने, हर घर बीज रखें और हर अमावस्या के दिन गांव के लोग इकट्ठे होकर, गांव विचार करके, स्वावलंबन अपने स्वदेशीपन से करे; यह बात गांव के लोगों को जमने लगी और रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा मिला। ‘गांव का पानी गांव में-हर घर में बने गोबर की खाद’, ‘हर घर रखे अपना बीज’, गांव की माटी गांव में-गांव की चोटी गांव में अर्थात् ग्राम सभा ही सारे निर्णय करे।
उसके बाद रक्षाबंधन के दिन पेड़ों को राखी बांधकर गांव-गांव में ‘पेड़ लगाओ -पेड़ बचाओ’ यात्रा आरंभ की। यह यात्रा 40 दिन चलती थी। यह तीनों यात्राएं ऐसे समय में शुरू की गई थी; जब लोगों के पास समय था और वैसे काम करने की जरूरत का गांव को अहसास था। 1987-88 में ग्राम स्वाबलंबन, स्वराज और रचना के काम से ‘‘गांव का पानी गांव में और खेत का पानी खेत में’’इस विचार से गांव को पानीदार बनाने लगे। जब गांव पानीदार बने तो लोगों में अपने गांव में रहकर ही काम करने का स्वावलंबी विश्वास पैदा हुआ। इस स्वाबलंबन ने तरुण भारत संघ को स्वराज की राह, पकड़ा दी थी।
गांव के अपने स्वावलंबी विश्वास ने ही क्षेत्र में जो खनन हो रहा था, उस खनन के खिलाफ आवाज उठनी शुरू हुई। क्योंकि खनन के कारण, उनकी पूरी धरती वीरान बन रही थी। यह पूरा इलाका बेपानी हो गया था। इस इलाके में बहुत सारी गड़बड़ियां पैदा होने लगी थी। खदानों में काम करने वाले मजदूर और खदानों में काम करने के लिए बाहर से आने वाले लोग इन गांवों में कई तरह की दिक्कत पैदा कर रहे थे। इनसे गांव के बुजुर्ग लोग त्रस्त थे। इसलिए जब गांव के लोगों को अपनी जमीन को ठीक करके, खेती करने के आसार दिखने लगे, तब लोगों ने इस खनन को बंद करने की आवाज को बुलंद किया।
लोगों की आवाज पर तरुण भारत संघ ने खनन के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दर्ज की। इस पूरी लड़ाई में वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने बिना पैसे लिए, इस मुकदमे को लड़ा और जीत गए। जस्टिस वेंकट चलैया ने बहुत ही बहादुरी से सरकार को लताड़ा और कहा कि यह सरकार एक तरफ जंगल बचाने के लिए पैसे खर्च करवा रही है और दूसरी तरफ अपने चहेतों को खदानों के द्वारा बंदर-बांट कर रही है। यह भारत के संविधान के विपरीत है, इसलिए भारत सरकार को लताड़ लगाते हुए सब खदाने बंद करने का आदेश दिया।
यह खदाने आदेश के बाद बंद हो जानी चाहिए थी लेकिन भैरो सिंह शेखावत खदानें चलाना चाहते थे, इसलिए खदान मालिकों पर आदेश का दवाब नहीं बना रहे थे। खदान मालिकों के दबाव ने खदाने जारी रखी। फिर तरुण भारत संघ ने पूरी अरावली पर्वत श्रृंखला में गुजरात हिम्मतनगर से लेकर दिल्ली तक जगह-जगह जन चेतना जगाने के लिए सभाएं आयोजित की। सभाओं में लोगों का उत्साह दिखा और तभी 7 मई 1992 को अरावली पर्वत श्रंखला की खदानें बंद करने का कानून बना।
7 मई 1992 को भारत सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करके इन खदानों को रुकवाने का बहुत अच्छा कानून बनावाया। फिर भी खदाने बंद नहीं हुई; तब तरुण भारत संघ ने गांधी जयंती के दिन खनन बंद कराने हेतु सत्य का आग्रह ‘सत्याग्रह’ किया था कि, अरावली का खनन अरावली को निगल जाएगा और इस क्षेत्र में लोगों कर जीवन दूभर हो जाएगा। अरावली बचेगी तब ही पानी भी मिलेगा।
बड़ी संख्या में लोगों के दल-बल को साथ अरावली बचाओ यात्रा हिम्मत नगर गुजरात से आरंभ होकर खनन क्षेत्र में प्रत्यक्ष रूप मौन होकर सत्याग्रह किया। खनन बंद कराने वाले सैकड़ों लोगों की मौजूदगी खनन क्षेत्र में देखकर, खनन बन्द होने लगा। दिल्ली से लेकर हिम्मत नगर तक की अरावली का खनन; यात्रा के साथ साथ ही बन्द हुआ। यात्रा पर माफिया ने बहुत हमले किये लेकिन यात्रा अड़िग सत्याग्रह की राह पर चलकर सफल हुई। खनन बंद होने के बाद लाखों लोग जो बेरोजगार हुए उन सबको जल संरक्षण के कार्यों में लगाने का प्रयास आरंभ किया।
खनन के बदले जल, खनन का विकल्प गांव में रहकर, गांव को हरा-भरा बनाने का संकल्प जोर पकड़ने लगा। खनन से बेरोजगार हो चुके लोग जो पहले मजदूर थे। वह वापस आकर अपनी जमीन पर फसल उगाकर खुद मालिक बनने लगे। इस हवा ने सबको अच्छे कार्य में लगा दिया।
1995 में आते आते अरवरी नदी जो सूखी-मरी हुई थी, उस नदी में वर्षभर पानी बहने लगा है। अब नदी पानीदार बनकर बह रही हैं। अरवरी नदी में राजस्थान सरकार के मत्स्य विभाग ने मछलियों के 1996 में पहली बार ठेके देने शुरू किए। तब गांव के लोगों ने कहा कि , यह नदी तो हमारी है, इसको हमने पुनर्जीवित किया है। सरकार को मछली पकड़ने का ठेका हम नही देंगे। पूरी नदी के लोग इकट्ठे होकर मछली के ठेकों को बंद कराने में एकजुट हो गये ओर एकजुट होने का परिणाम हुआ कि, गांव के लोग मछलियों के ठेके रद्द कराने में सफल हुई। इस सफलता के काम को जलचर सत्याग्रह कहा गया।
तरुण भारत संघ ने जन चेतना से युक्त लोगों का संगठन और आहिंसा प्रिय लोगों के काम कराने के लिए जगह-जगह जल संरक्षण द्वारा प्राकृतिक प्रेम करने का संस्कार इस पूरे क्षेत्र में लोगों पर डाल रहा था। गहराई से अगर इस काम का प्रभाव चारों तरफ फैलने लगा। चम्बल क्षेत्र के बहुत से लोगों ने आकर इस कार्य को देखा। चम्बल नदी क्षेत्र जो बीहडों और बंदूकों के कारण प्रसिद्धि पा रहा था। उन लोगों का मन भी इस काम को देखकर काम के लिए उत्साहित होने लगा। उनकी आँखों में भी पानी आने लगा और फिर क्षेत्र को पानीदार बनाने की प्यास जगने लगी तो उन्होंने बंदूके छोड़कर, पानी का काम करने की पहल शुरू की। इस पानी की पहल को अलवर से करौली, धौलपुर, इलाके में विस्तार मिला और बंदूकधारियों को बंदूक छुड़ाकर खेती के काम में लगा दिया।
अब चम्बल के 3000 से ज्यादा बागी बन्दूक छोड़कर खेती का काम कर रहे है। ये चम्बल की खेती विश्वशांति का संदेश देती है। 22 मार्च 2024 को तरुण भारत संघ ने विश्व शान्ति जल दिवस पर यह जल से शांति लाने का प्रत्यक्ष प्रभाव देखकर महावीर जी में बड़ा सम्मेलन आयोजित किया। इसमें ऐसे लोग जो अभी तक बंदूके चलाते थे, उन्हें खेती में लगा देखकर विश्व जल शांतिदूत की उपाधियों से सम्मानित किया।
तरुण भारत संघ का ये 50 साल के सफरनामे में गोपालपुरा गांव से पानी का काम शुरू किया और यह काम वर्ष 1999 और 2000 तक पूरे देश में फैलने लगा था। कार्यो को विस्तार देने के लिए जल बिरादरी संगठन बना, जो अब पूरे देश के हर राज्य में जल का प्रबंधन और संवर्द्धन करने हेतु तरुण भारत संघ की तर्ज पर नदी पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया है। जहां तहां जिन लोगों की आँखों में पानी था, वो अपनी नदियों को पानीदार बनाने के लिए जुटने लगे।
वर्ष 2022 तक जल बिरादरी के काम ने तरूण भारत संघ के काम को पूरी दुनिया में स्थापित किया। दुनिया के लोगों ने मिलकर ‘विश्व सुखाड़-बाढ़ जन आयोग’ का गठन किया। तरुण भारत संघ को इस संगठन की अध्य्क्षता करने का अवसर मिला। अब तरुण भारत संघ अपने काम को एक गांव से शुरू करके पूरी दुनिया में सुखाड़ बाढ़ मुक्ति के काम के लिए सक्रिय है। इस काम के लिए कभी आर्थिक साधन जुटाने की जरूरत नहीं हुई। जहां भी दुनिया में लोग, जब तैयार हुए और उनके संगठन या उन्होंने तरुण भारत संघ की टीम के लिए जाने-आने के खर्चे की व्यवस्था कर दी। तरुण भारत संघ की टीम जरूरत मंद लोगों की व्यवस्था से वहाँ पहुंची और वहाँ के लोगों को शिक्षित – प्रशिक्षित करके इस जल संरक्षण के सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबंधन द्वारा समाज और नदी को पुनर्जीवित करने में जुट गई। तरुण भारत संघ का मानना है कि, जहां की नदियां सूखती है, वहां की सभ्यता व संस्कृति भी मरने लगती है। जब समाज खड़ा होता है तो वो अपनी नदियों को पुनर्जीवित करता है, इससे वह आर्थिक, सामाजिक और प्राकृतिक रूप से भी मजबूत होता है। नदियां शुद्ध सदानीरा बनकर बहने लगती है, तब वहां की सभ्यता और संस्कृति भी पुनर्जीवित हो जाती है।
वर्ष 2024 स्वर्णिम वर्ष में तरुण भारत संघ अपने पुराने काम का दस्तावेजीकरण करके, भारत और दुनिया में सुखाड़-बाढ़ मुक्ति की युक्ति हेतु काम करेगा, नदियों को पुनर्जीवित करने में जुटा रहेगा, देश दुनिया में पाणी पंचायत आयोजित करेगा, विश्व पर्यावरण दिवस से 51 नदियों की पुनर्जीवन चेतना यात्रा आरंभ करेगा। 2 अक्टूबर 2024 को दिल्ली में राष्ट्रीय पाणी पंचायत आयोजित करेगा, जिसमें 51 से अधिक नदियों के लोग शामिल होंगे।
*लेखक तरुण भारत संघ के चेयरमैन और जल पुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक हैं।