अलवर: राजस्थान में सरिस्का के बाघ अभयारण्य के बीच स्थित भीकमपुरा गाँव में एक अनूठे चित्र दीर्घा का आज दर्शनार्थ शुभारम्भ किया गया। इस चित्रदीर्घा का निर्माण कार्य कोविड काल 22 मार्च 2020 से शुरू हुआ था।
यह कार्य जलपुरुष जल पुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद डॉ राजेन्द्र सिंह की देखरेख में शुरू हुआ था। इसका संचालन और संयोजन भीकमपुरा के ही गोपाल सिंह ने किया है। लक्ष्मीनारायण बलाई ने इन चित्रों में रंग भर कर उन्हें स्वाभाविक स्वरूप दिया है। लेखन आदि कार्यों में धोली मीना का सहयोग रहा है।
आज भी यह कार्य सतत् प्रगति पर है, किन्तु स्थानीय लोगों के आग्रह पर आज 18 जून, 2022 को इसे सार्वजनिक दर्शनार्थ खोल दिया गया है। जहाँ एक तरफ दुनिया की धार्मिक और राजनैतिक सत्ता समुदायों को बाँटने में जुटी है, दुनिया के लोगों के मन में निराशा-हताशा आ गई है। राष्ट्रीय सरकारें और उनके नेता अपने वर्चस्व को बनाये रखने हेतु बहुत ही गहराई से लोभी, लालची बनकर महत्त्वाकांक्षाओं के जाल में फँस गये हैं। ऐसी परिस्थिति में दुनिया भर के प्रेम, सम्मान करने वालों का प्राकृतिक तीर्थ बचाने के लिए जो सचित्र जुड़ाव हुआ है, वह एक स्व-स्फूर्त, सहज और विनम्र जुड़ाव है। यह ‘लाभ’ द्वेष व प्रतियोगिता से मुक्त है।
डॉ सिंह के अनुसार यह तीर्थ पुनर्जीवन हेतु बदलाब का संगीत व साहित्य है। इसमें सबको बराबरी से आगे बढ़ने और काम करने के अवसर हैं। यह प्रकृति और मानवता की समग्रता और उसकी सांस्कृतिक विविधता के अन्तर्सम्बन्धों को समझकर पूरी प्रकृति, जैव विविधता और मानवता को देखने वाला है। यह दीर्घा चित्र बटर फ्लाई जैसा विकास करेगा, क्योंकि यह समता और सादगी से प्राकृतिक रूप में निर्मित हो रहा है। यह सर्किल-पद्धति एवं सर्वसम्मति से एक आवाज बनकर आगे बढे़गा।
“यह दुनिया भर के तीर्थों को बचाने वाले विविध समुदायों के लिए एक विश्व समुदाय के रूप में काम करेगा। यह नीर-नारी-नदी, जल, जीवन, माँ और नदी के प्रवाह की तरह प्रवहमान् होगा। ‘तीर्थ‘ मातृ-प्रेम व पोषण तथा जैविक तरंग की भाँति बिना किसी द्वेष के आगे बढ़ने वाला चित्र जुड़ाव है; जो प्रकृति की एक अनुपम देन की तरह है। यह जुड़ाव वर्तमान राजनैतिक लिंग-भेद को छोड़कर, मानवीय व प्राकृतिक मूल्यों का बराबर सम्मान करने वाला सचित्र जुड़ाव है। यह एक कोसमैटिक (अध्यात्मिक) पृष्ठभूमि का जुड़ाव बनकर हम सबके लिए आगे जाने का सत्य और अहिंसामय रास्ता है,” डॉ सिंह ने कहा।
डॉ सिंह ने कहा जिस तरह से एक ग्रामीण समुदाय अपनी स्वायत्तता के लिए स्वयं अपने दस्तूर, कानून कायदे बनाता है और अपनी स्वायत्तता से स्वराज्य के रास्ते पर आगे जाता है; उसी प्रकार ‘तीर्थ बचाओ सचित्र दीर्घा‘ को भी आगे जाना चाहिए। तीर्थ बचाओ का भगवान् “पंचमहाभूत” हैं, क्योंकि कि इन्हींं पंच महाभूतों से पूरे ब्राह्मांड व प्रकृति का निर्माण हुआ है। अतः इन पंचमहाभूतों को सत्य मानकर अहिंसामय रास्ते पर चलकर जीने से ही इस प्राकृतिक ‘तीर्थ बचाओ चित्र दीर्घा‘ का लक्ष्य पूर्ण होगा।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो