– प्रशांत सिन्हा
हिंडन नदी जिसका पुरातन नाम हरनंदी था और जिसका पवित्र ग्रंथों में वर्णन है आज प्रदूषण का ऐसा विकराल दंश झेलने को यहां तक मजबूर हो गई कि नेशनल वाटर क्वालिटी मॉनिटरिंग प्रोग्राम की रिर्पोट में हिंडन नदी को ” ई श्रेणी ” ( सबसे खराब ) में रखा गया है । इसके कारण इसकी गिनती अब उत्तर प्रदेश की सबसे प्रदूषित नदी के रूप में होने लगी है।। यदि सरकार या सरकारी अधिकारियों द्वारा लापरवाही जारी रही तो यह नदी देश की सबसे प्रदूषित नदी बन जाएगी। यही नहीं ये नदी यमुना में मिलकर यमुना को भी जहरीली बना देगी।
हिंडन नदी का उदगम सहारनपुर जिले में निचले हिमालय क्षेत्र के ऊपरी शिवालिक पर्वतमाला में स्थित शाकुंभरी देवी की पहाड़ियों में है। यह पूर्णतः वर्षा आश्रित नदी है। धार्मिक आख्यान कहते हैं हिंडन नदी ( हरनंदी ) पांच हजार साल पुरानी है। मान्यता है कि इस नदी का अस्तित्व द्वापर युग में भी था। हरनंदी के पानी से पांडवों ने खांडव प्रस्थ को इंद्र प्रस्थ बना दिया था। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि रावण का भी हरनंदी के साथ नाता था। रावण का जन्म गौतम बुद्ध नगर ( नोएडा ) के बिसरख गांव में हुआ था। बिसरख के पास से हरनंदी गुजरती थी।
हिंडन नदी में छोटी छोटी अन्य सहायक धाराएं भी आकर मिल जाती है। शाकुंभरी वन क्षेत्र के पास शिवालिक पहाड़ियों पर होने वाली वर्षा का पानी हिंडन की मुख्य धारा में आता है। इसके अतिरिक्त वृक्षों की जड़ों से रिसने वाला पानी भी धीरे धीरे मुख्य धारा में मिलता रहता है। बरसात के समय इन सभी धाराओं में भरपूर पानी आता है। यही पानी बहते हुए नीचे तक जाता है। इन सभी धाराओं के मिलने से हिंडन नदी बनती है। यह नदी सहारनपुर जनपद से प्रारम्भ होकर गंगा और यमुना के बीच दोआब क्षेत्र में मुजफ्फर नगर , शामली, गाज़ियाबाद होते हुए करीब 300 किलोमीटर का सफर तय करके अंत में गौतम बुद्ध नगर ( नोएडा ) जनपद के पास और दिल्ली से कुछ दूर तिलवाड़ा यमुना में समाहित हो जाती है। रास्ते में इसमें कृष्णा, धमोला, नागदेवी, चेचेही और काली नदी मिलती है। ये छोटी नदियां अपने साथ ढेर सी गन्दगी व रसायन लेकर आती हैं और हिंडन को जहरीली बनाती हैं ।
हिंडन नदी प्रदूषण के साथ अतिक्रमण की समस्या को झेल रही है। भू माफिया ने नदी को छोटा कर दिया है। कभी अपने पुरे विस्तार के साथ बहने वाली हिंडन आज सिकुड़कर नाला हो गई है और आसपास की हरियाली भी खत्म हो गई है। पुरे इकोलॉजिकल सिस्टम पर अवैध कब्जों ने ग्रहण लगा दिया है। आबादी बढ़ने के साथ ही नदी के आसपास कंक्रीट के जंगल तैयार होता चला गया। ज़मीन के दाम अधिक होने के कारण मोटी कमाई के लिए प्रशासनिक अधिकारियों ने हिंडन नदी के ज़मीन पर अतिक्रमण करवा दिया। यही वजह है कि सहारनपुर में 300 मीटर चौड़ी नदी गाज़ियाबाद में 30 मीटर रह गई है।
इस नदी को बीमार और जहरीला बनाने में सौ से ज्यादा उद्योग खतरनाक भूमिका निभा रहे हैं। इन छोटे बड़े उद्योगों का उत्प्रवाह प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से नदी में मिलता है और नदी को प्रदुषित करता है। सरकारी रिर्पोट के अनुसार टेक्सटाइल्स, डाइंग, पाइप, साइकिल रिक्शा, रबर, प्रिंटिंग, फैब्रिक्स, कागज़, रसायन आदि के उद्योग शामिल हैं।
इसके अलावा सैकड़ों नालों का गंदा पानी भी हिंडन नदी में गिर रहा है। पानी में ठहराव होने और उसमें लगातार घरेलू और औद्योगिक कचरा प्रवाहित किए जाने के कारण नदी में प्रदूषण बढ़ गया और धुलित ऑक्सिजन शून्य हो गई। घरेलू और औद्योगिक कचरे के कारण नदी में एल्गर ब्लूम उत्पन्न हो गए हैं। इसके कारण नदी में ऑक्सिजन कम हो जाती है जो जीवों के लिए भी खतरनाक है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चीनी मिलों और डिस्टिलरियों का गंदा पानी, चमड़ा उद्योग के रसायनिक पानी ने हिंडन के पानी को विषैला कर दिया है। प्रचुर मात्रा में आर्सेनिक फ्लोराइड, मैग्नीशियम, क्रोमियम, नाइट्रेड, लेड जैसे घातक तत्व की मात्रा लगातार बढ़ने से हिंडन का पानी जहरीला हो गया है। इस वजह से जलीय जीव जंतु खत्म हो गए हैं।
हिंडन का पानी जब विषैला नही था तो इसमें साइबेरियन समेत दूसरे देशों के प्रवासी पक्षी भी प्रवास करते थे। लेकिन आज पक्षी भी हिंडन नदी के पास नही फटकते हैं। हिंडन से मछलियां भी गायब हैं। पहले इस नदी में सोल, सिंघाड़ा मछली समेत मछलियों की कई किस्में पाई जाती थी। लोग मछली पकड़ने का काम करते थे।
मानव ने भौतिकवाद के चक्कर में पड़कर और स्वार्थ लोलुप्तावश नदियों को प्रदूषित कर दिया जिससे शक होने लगता है कि मानव सभ्यता का विकास नदियों के किनारे हुआ है। जिन क्षेत्रों के लोगों को वर्षों से हिंडन अपने जल, जैव विविधता से पोषित करती आ रही थी आज वही लोग हिंडन की बदहाली के ज़िम्मेदार बन गए। यह विडंबना है कि हिंडन के तट पर बसा समाज और प्रशासन इसके प्रति बेहद उपेक्षित रवैया रखता है। आज जरुरत इस बात की है कि लोग हिंडन को नदी के रूप में पहचाने। हिंडन का विलुप्त होना एक नदी की नही बल्कि एक प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और संस्कार का खत्म होना है।