रविवारीय
– मनीश वर्मा’मनु’
वक़्त कितनी जल्दी बीत जाता है और पीछे छोड़ जाता है यादें। 1973 में अमिताभ – जया अभिनीत एक फिल्म आई थी ‘जंजीर ‘। अमिताभ बच्चन के लिए जहां यह फिल्म मील का पत्थर साबित हुई वहीं भारतीय सिनेमा में भी एक एंग्री यंगमैन का उदय हुआ। वाकई इस फिल्म के बाद फ़िल्मों की पटकथा अमिताभ के एंग्री यंगमैन वाली इमेज को ध्यान में रखकर लिखी जाने लगी। इतिहास की शुरुआत हुई। इतिहास गवाह है वहां से शुरू हुई यात्रा आज़ तक अनवरत जारी है।
इस फिल्म का एक गाना जिसे आशा भोंसले ने गाया था और जिसे जया भादुड़ी पर फिल्माया गया था ” चक्कू छुरियां तेज़ करा लो ” । चुलबुली जया का शोख अंदाज़ में इस गाने को पर्दे पर गाना। थोड़ा अपने दिमाग़ पर जोर डालें और याद करें उस गाने को। फ़िल्म थी। फ़िल्मों में कुछ भी चल जाता है। बहुत गहरा प्रभाव डालती हैं फ़िल्में हमारे समाज पर। पर, एक बात चाकू छुरी तेज़ करने वाली मुझे तो कहीं उसके बाद दिखी नहीं।
बहुत वक़्त नहीं गुजरा है। याद है मुझे चाकू, छुरी और कैंची तेज़ करवाने के लिए साइकिल पर एक बन्दा आता था। उसने उसी साइकिल को थोड़ा परिवर्तित कर चाकू छुरी आदि तेज़ कराने की जुगाड़ू मशीन बनाई हुई थी। ख़ैर! अब न वो बन्दा आता हुआ दिखाई देता है और ना ही हमें उसकी जरूरत महसूस होती है। हम लोगों ने अब लोहे की चाकू छुरी और कैंची की जगह स्टील की चाकू छुरी और कैंची खरीदना शुरू कर दिया है। धार कराने की जरूरत ही नहीं। अब तो टिकती भी नहीं है। धार कराने का झंझट ही ख़त्म। बची खुची कसर व्हाट्सएप युनिवर्सिटी ने बताया कि धार कैसे दी जाती है।
कहीं कहीं छोटे शहरों और कस्बों में यह बन्दा आज के वक़्त भी दिख जाता है। एक अलग ही अनुभूति होती है। दिल और दिमाग़ अचानक से बचपने में चला जाता है। पर, आज़ मुझे बैंगलोर में मुझे वो मिल गया। शुरू में तो यकीन ही नहीं हुआ। महानगर में यह विधा आज़ भी क़ायम है। लोगों के जीविकोपार्जन का साधन है। मन को नहीं रोक पाया। पास गया एक तस्वीर खैंची उसकी। सोचा आज़ की पीढ़ी ने तो यह सब नहीं देखा होगा। उन्हें दिखाऊं। कम से कम वो जाने तो।