– डॉ राजेंद्र सिंह*
ढाका: 19 दिसंबर 2022 को ढाका विश्व विद्यालय, बांग्लादेश में एक इंटरनेशनल कॉन्क्लेव ऑन मैटेरियल्स, एनर्जी एंड क्लाइमेट कॉन्क्लेव के उद्घाटन सत्र में सुखाड़ – बाढ़ की युक्ति पर 19 देशों से आए प्रतिनिधियों और बांग्लादेश की शिक्षा मंत्री दीपू मोनी, कुलपति प्रो. ए एफ एम अब्दुल मोईन के बीच बोलते हुए मैंने कहा कि यह देश पानी के लिए समृद्ध राष्ट्र है, लेकिन कुप्रबंधन के कारण , आज संकट ग्रस्त बन गया है। बांग्लादेश के इस संकट से मुक्ति के समाधान के लिए हम सभी को मिलकर कार्य करना चाहिए।
बांग्लादेश के लोग, विश्वविद्यालय के शिक्षक, विद्यार्थी यदि प्रकृति और मानवता को अखंडता में देखना शुरू करें, तो बांग्लादेश का 80 प्रतिशत बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र, नुकसान दायक न बनकर, उत्पादक बन सकता है। लेकिन जब हम बाढ़ को तकनीक इंजीनियरिंग से रोकते है तो वह विनाश करती है। इससे बहुत आर्थिक हानि होती है।
यह भी पढ़ें: 7.1 million Bangladeshis displaced by climate change in 2022
हम सभी को प्रकृति से हमें जो भी मिला है, उसको सहेजना पड़ेगा।बांग्लादेश में पानी के साथ पर्यावरण का अनुकूलन करके, अपने फसल चक्र को बांग्लादेश के वर्षा चक्र के साथ जोड़ना शुरू करें, तो दुनिया का पानी से पोषण करने वाला देश बांग्लादेश बन सकता है।
इस भारत भूखंड को बाढ़ – सुखाड़ से मुक्ति के लिए भारतीयता में पुराना ज्ञान तंत्र को आधुनिक गणना वाली शिक्षा में कैसे हम समाधान निकाल सकते है, यह चुनौती है।बांग्लादेश के कुछ दोस्तों को समझना चाहिए कि, भारत ने आज तक किसी भी देश का पानी नहीं लिया। आज तक जो भी समझौते हुए है, उनकी भारत ने बहुत ईमानदारी से पालना की है। भारत ,बांग्लादेश को अपना भाई मानते है और सम्मान करते है। हम लोग चाहते है कि बांग्लादेश को बाढ़ सुखाड़ से मुक्ति मिले।
*सुखाड़ – बाढ़ विश्व जन आयोग के अध्यक्ष एवं जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद।