पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा की प्रथम पुण्यतिथि पर विशेष कविता
– रमेश चंद शर्मा
कविता: मेरा सुंदरु बनेगा बड़ा
पिता अंबादत्त, मां पूर्णाबाई,
सुंदरु के दो बहन, दो भाई।
मां का था विश्वास बहुत कड़ा,
मेरा सुंदरु बनेगा राजा से भी बड़ा।
बचपन में ही बाप का संग छूटा,
मां का विश्वास कभी नहीं टूटा।
मां ने पाल पोस कर किया बड़ा,
सुंदरु भी अपनी बात पर रहा अड़ा।
मां ने जी तोड़ मेहनत कर कमाया,
सुंदरू ने जीवन भर इसे अपनाया।
मां की कड़ी मेहनत काम आई,
सुंदरु ने वही जीवन रीत अपनाई।
जीवन में सेनानी देवी सुमन का प्रवेश,
सुंदरु का बदला चिंतन मनन भूषा भेष।
गांधीजी की लगी हवा,
बन गई जीवन ही सेवा।
चरखा देखा सिर चकराया,
मन को लेकिन खूब लुभाया।
रचना करने की मन में ठानी,
सत्य अहिंसा की समझी वाणी।
सेवा साधना सादगी अपनाई,
निर्भयता आजादी की पढ़ी पढ़ाई।
युवकों के दिल में जोत जलाई,
आजादी की शुरू हुई लड़ाई।
जनता के बढ़ते दुःख दर्द देख,
अखबार में लिखने लगे लेख।
पुलिस प्रशासन का शुरू खेल,
सुंदरलाल को पांच माह की जेल।
जेल छूटी फिर शुरू पढ़ाई,
अब लाहौर की राह अपनाई।
वहां भी पुलिस से हुआ झमेला,
भागदौड़ कर पहुंचे शिमला।
सरदार मानसिंह बनकर भाई,
लायलपुर में करुंगा कमाई।
राजनीति कुछ रास नहीं आई,
रचना, संघर्ष की राह बनाई।
बिमला बहन का पकड़ा हाथ,
दो गुणा बढ़ा जीवन का साथ।
खादी, ग्रामोद्योग, नशाबंदी,
ग्राम निर्माण, प्रकृति की संधि।
गौरा देवी चिपको की नारी,
महिला वर्ग की पूरी तैयारी।
ठेकेदारों पर पड़ गई भारी,
नहीं चलने दी पेड़ों पर आरी।
विकास की मति गई मारी,
सरकार हरदम जनता से हारी।
मिट्टी पानी और बयार,
यह है जीवन के आधार।
पेड़ की खेती करो, खूब पेड़ लगाओ,
पानी, वायु, खाद, चारा, फल, ईधन पाओ।
अनशनकारी का अनशन हथियार,
सुंदरलाल बहुगुणा हरदम तैयार।
टिहरी बांध या गंगा की बात,
प्रशासन सरकार करती घात।
झूठे विकास का चौपट धंधा,
हर हाल में लड़ा यह बंदा।
सच्ची श्रद्धांजलि देना ही चाहो,
हिमालय बचाओ, प्रकृति बढ़ाओ।।