कविता
कश्मीरियत जिसकी पहचान
दुनिया में जिसका मान, साधु, संत, सूफी, पीर, फकीरों का स्थान,
कश्मीरियत है जिसकी जान,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
जहां रहते हैं इंसान, इंसानियत जिनकी पहचान,
जन्नत जैसी जिसकी शान,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
भारत मां का मुकुट, जिसमें रहता मिल कुटुम्ब,
जहां गांधी को दिखाई दी उम्मीद की किरण,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
बाबा संत विनोबा भावे, आकर देते रहे दुआएं,
भूदान से होगा शांत जहान,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
कोई नहीं गरीब अमीर, हृदय में धर के धीर,
सबका सही सच्चा रहे जमीर,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
जहां सजा प्रेम का द्वार, खिदमत को जो तैयार,
जहां दिलों में भरा रहे हरदम प्यार,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
लद्दाख जम्मू-कश्मीर, सबकी दूर करे जो पीर,
जिसमें बहे चश्मे शाही का नीर,
मैं उसको ढूंढ़ रहा हूँ।
जहां सुंदर डल झील, लोगों के बड़े दिल,
जहां डल लेक में डोले शिकारा प्यारा,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन पारसी बौद्ध बहाई,
मिलकर रहते सारे बहन भाई,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
जहां रहे प्यार के डेरे, सेव अखरोट केसर महक के घेरे,
सब कहते यह है तेरे मेरे,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
जहां ढेरों जड़ी-बूटी, जिंदगी कभी न टूटी,
जिसे कहते धरती पर जन्नत,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
जहां रहते हैं इंसान, खुले सबके घर मकान,
अतिथि देवो भव को माने शान,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
हजरत बल, चरार-ए-शरीफ, छठी पातशाही, खीर भवानी,
जन जन जाने जिसकी कहानी,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
जम्मू की अपनी पहचान, लद्दाख की अपनी शान,
कश्मीर में आएं देश दुनिया से मेहमान,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
सूफी संतों के मीठे हिस्से, कश्यप शंकर हनुमान के किस्से,
ईसा, मोहम्मद के संवाद,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
कश्मीरियत को जो पहचाने, रुठों को मना ले,
शांति के लिए अच्छी नहीं है पुलिस फौज,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
आओ गलती सुधारें, प्रेम की बांहों में पधारें,
कश्मीरियत को अपनाएं, इसी में है प्राण,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।
गांधी, विनोबा, जयप्रकाश, जगाई मन में जिन्होंने आस,
दिलो-दिमाग को जोड़ेंगे इनके विचार,
मैं उसको ढूंढ रहा हूँ।