न्यूबर्ग, जर्मनी: कीवा परिवार मूलतः प्रकृति और मानवता दोनों को बराबरी से सम्मान करने वाला है। आज ऐसे परिवारों की दुनिया में बहुत कमी है। आज 13 अगस्त 2023 को कीवा सम्मेलन के समापन अवसर पर मैंने कहा कि यह अद्भुत आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और जीवनीय शक्ति को बढ़ाने वाला परिवार है। कीवा को अपने काम में जीवन के आनंद की दूसरी चीजों को भी भूलना नहीं चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए कि पूरी दुनिया बाढ़-सुखाड़ से संकटग्रस्त होती जा रही है। इस दुनिया में दिन-प्रतिदिन आपदाओं का घोर प्रभाव बढ़ रहा है। इन आपदाओं के घोर प्रभाव से मुक्ति के लिए कीवा परिवार को अपने गीतों, क्रियाओं और प्रक्रियाओं में जलवायु परिवर्तन के संकट के उपायों पर गहराई से बैठकर, समूहों और भू सांस्कृतिक विविधताओं के साथ काम करने की जरूरत है। यदि यह काम कीवा ने जल्दी शुरू नहीं किया तो कीवा की उपयोगिता पर शंकाएं खड़ी होंगी। फिर ऐसे संगठन जल्दी से टूटकर खंडित हो जाते हैं। इस परिवार को सनातन परिवार बनाना है तो हमें आज से ही यह समझ लेना चाहिए कि वह कौन सी विद्या होगी जो कीवा के उद्देश्यों को पूरा कर सके?
कीवा के लोग अपने उद्देश्यों को समझते और जानते हैं, फिर भी टुकड़ों-टुकड़ों में काम कर रहे हैं। टुकड़ों में विखंडित काम सनातन नहीं बन पाता। यह परिवार पुनर्जन्म में विश्वास करता है। इसलिए सनातन तौर-तरीके से आगे बढ़ने की जरूरत होगी। यह सनातन तब आएगा जब हम सनातन पुनर्जनन और पुनर्जन्म की प्रक्रिया को ठीक से मानव मन प्रकृति का अंग मानकर विचार करेगें।
मानव मन जब सर्वोपरि मानकर काम करता है तो फिर सबसे ऊपर हो जाता हैं। तब फिर प्रकृति के साथ हमारे रिश्ते भी खंडित होने लगते हैं। इसलिए अपने व्यवहार और मूल्यों में कीवा के मूल दर्शन व नीति के बारे सोचने की जरूरत है कि हम कैसे इस परिवार को मजबूत और पूरी दुनिया में व्यापक काम में लगाने के योग्य बनाएं? जिससे पूरी दुनिया को जलवायु परिवर्तन, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संकट से मुक्ति दिलाने में कीवा परिवार दुनिया में उच्चतम परिवारों में से एक बन सकता है।
कीवा के समापन सम्मेलन के बाद भी बहुत सारे समूहों से मैंने अलग-अलग बातचीत की। मैंने आज जो अपना वक्तव्य भाषण दिया, उस भाषण को कैसे क्रियान्वित कर किया जा सकता है? यह भाषण पूरी दुनिया में कैसे लागू किया जा सकता है? इस पर अलग-अलग समूह में बैठकर पूरी दुनिया के सभी महाद्वीपों के लोगों के साथ बातचीत हुई। नीतिगत तौर पर बात रखना आसान होता है, लेकिन उसको व्यवहारिक रूप में लाना कठिन होता है। इस कठिन काम के लिए हम सब मिलकर अपनी-अपनी विविधता को पहचान कर आगे बढ़ेंगे तो कीवा और सुखाड़-बाढ़ विश्व जन आयोग दोनों एक दूसरे के करीब होंगे। क्योंकि सुखाड़-बाढ़ विश्व जन आयोग बना ही प्राकृतिक संकट, आपदा और प्रलय से मुक्ति दिलाने के लिए है।
भारतीय मूल ज्ञानतंत्र में से इससे बचने के उपाय इंसानों को बताए गए है। अभी हमारे पास ऐतिहासिक और प्रमाणिकता तौर पर त्रेता काल के उदाहरण है। जब राजा जनक और रानी का जीवन बहुत भौतिक सुख-सुविधाओं से युक्त हो गया था, तब वहां के मूल ज्ञानतंत्र वाले लोगों ने राज दरबार में जाकर बताया कि राजन भौतिक सुख-सुविधाओं को भूल जाओ और पसीने से काम करोगे तो प्रकृति प्रसन्न होगी, जिससे प्रलय के बादल छट जायेंगे। राजा ने आदिवासी मूल ज्ञान यह बात मानकर अपना पसीने से जीवन जीना शुरु किया था।
आज भौतिक सुख-सुविधाओं का उपयोग करने वाले लोगों की अपनी ही एक अलग भौतिक सुख-सुविधाओं वाली विनाशकारी दुनिया में डूब गए हैं। इससे मुक्ति के लिए एकमात्र युक्ति है कि हमारा जीवन इस प्रकृति से जितना लेता है, उसको उतना ही वापस लौटना शुरू करें, तब हमारा जीवन प्रकृतिमय हो जाएगा। इससे पश्चिमी भोगवादी सभ्यता और संस्कृति प्रकृति की तरफ मुड़ेगी। वही हमारा आध्यात्मिक चलन व जीवन के स्थाई आनंद का सूत्र होगा। प्रकृतिमय जीवन से आध्यात्मिक प्रक्रिया शुरू होती है, आध्यात्मिक प्रक्रिया प्रकृति के साथ जुड़ाव से आरंभ करती है। भारत में जो अरण्य संस्कृति थी, वो जंगलों में रहकर आध्यात्म और विज्ञान के रिश्तों को गहराई से जोड़ने वाला ज्ञान था। उस ज्ञान से मानव जीवन पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया की तरफ आगे बढ़ सकता है।
पुनर्जनन और पुनर्जीवन की प्रक्रिया तभी शुरू होगी जब हमारा जीवन श्रमनिष्ठ बनकर प्रकृति से लेने-देने के रिश्ते को बराबरी में आगे बढ़ायेगा। हम अपनी आत्मिकवृत्ति को पहचान कर प्रकृति के साथ जीना शुरू करेंगे, तब हम सनातन पुनर्जन्म की प्रक्रिया में आगे बढ़ेंगे। समूह के साथ चर्चा करते हुए मैंने कहा कि सुखाड़-बाढ़ विश्व जन आयोग दुनिया में प्राकृतिक पुनर्जनन व पुनर्जन्म के काम करने वाले परिवारों व संगठनों के साथ संपर्क बनाए हुए हैं। उन संपर्कों से जहां-जहां के लोग तैयार होते हैं, वहां-वहां विश्व जन आयोग के लोग ज्ञान व श्रम से काम शुरू कराते हैं। विश्व जन आयोग के पास पैसा नहीं है लेकिन अपनी समर्पण और प्रतिबद्धता है जिससे दुनिया में जहां भी लोग इस तरह के काम धरती पर करने लगते हैं, वहां जल का रक्षण-संरक्षण करके भूजल के भंडारों को पुनर्जीवित करने का काम में मदद करता है। जिन लोगों की तैयारी इस प्रकार के कामों के लिए है, विश्व जन आयोग उनके साथ खड़ा है।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात जल विशेषज्ञ।