– डॉ सतीश के गुप्ता*
जैसे ही किसी मधुमेह के रोगी को इन्सुलिन लेने की सलाह दी जाती है। एक अनचाहा सा भय रोगी को जकड़ लेता है । और उसकी प्रथम प्रतिक्रिया होती है ना। कई तरह के प्रश्न उसके मन को घेरने लगते हैं। जैसे:
-तो क्या ये बीमारी की अंतिम अवस्था है?
-तो क्या जीवन पर्यन्त इन्सुलिन पर ही रहना होगा?
-तो क्या अब प्रतिदिन सुबह शाम इन्जेक्शन का दर्द सहना ही नियति बन जायेगा?
-इसके क्या साइड इफ़ेक्ट होंगे?
-अगर हम बाहर जाएंगे तो इन्सुलिन को कैसे साथ ले जाएंगे?
-क्या हर जगह फ्रिज की आवश्यकता पड़ेगी ?
-इसकी dose हम कैसे बढ़ाएंगे घटाएंगे? आदि आदि
न केवल मरीज के मन में डर उठता है अपितु डॉक्टर के मन में भी ये आशंका होने लगती है कि कही ये रोगी नाराज होकर चला तो नहीं जाएगा?
इन सब भ्रांतियों के समाधान बहुत आसान है। आवश्यकता है जानकारी की, समझने की, समझाने की। अगर डायटीशियन, डॉक्टर और इन्सुलिन एडियूकेटर द्वारा रोगी को ठीक से समझाया जाए तो डायबिटीज के 70% रोगी इन्सुलिन को आसानी से स्वीकार करते है, 20% प्रतिकार करेंगे और 10% किसी अन्य डॉक्टर की सलाह के लिए चले जाएंगे पर बहुत संभव है कि लौट कर आपकी की सलाह मान कर इन्सुलिन लेने लगेंगे।
इन्सुलिन क्या है?
इन्सुलिन शरीर में पैंक्रियास के द्वारा बनाया जाने वाला एक पॉलीपेप्टाइड हॉर्मोन है। जो मांसपेशियों एवम् अन्य अंगों द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए ग्लूकोस को प्रयोग में लाने के लिए आवश्यक है।
जानिए
-इन्सुलिन डायबिटीज के इलाज के लिये खोजी गयी सबसे पुरानी औषधि है।
-इन्सुलिन 100 वर्ष से भी अधिक प्रमाणित दवा है।
-इन्सुलिन सर्वाधिक प्रयुक्त एवम् सिद्ध औषधि है ।
-इन्सुलिन एकमात्र ऐसी औषध है जो मधुमेह के सभी कॉम्प्लीकेशन्स को रोकने और ठीक करने में सक्षम है।
-अगर ठीक से प्रयोग किया जाए तो इन्सुलिन के कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं हैं, क्योंकि ये एक प्राकृतिक हॉर्मोन है।
इन्सुलिन के साथ बस एक ही बड़ी समस्या है कि ये केवल इंजेक्शन द्वारा ही प्रभावी है। क्योंकि मुख द्वारा लेने पर ये आमाश्य पाए जाने वाले एसिड के द्वारा विकृत होकर ये प्रभावहीन हो जाता है।
इन्सुलिन के बारे में मरीज को कैसे समझाए?
*मरीज के साथ थोड़ा समय लगाए।
*उसकी मन स्थिति को समझ कर सहानुभूति पूर्वक उसे ये विश्वास दिलाये की इन्सुलिन का विकल्प ही सर्वोत्तम है।
*उसे न केवल इन्सुलिन के बारे में समझाए अपितु मधुमेह के बारे में भी जागृत करें।
*उन्हें अन्य मरीजों के अनुभव से अवगत कराएं जो काफी से समय से इंसुलिन ले रहे है।
*उन्हें स्वयं इन्सुलिन लगाना सिखाए।
*इन्सुलिन के साइड इफ़ेक्ट के बारे में चर्चा कर उनके भय को दूर करें।
क्या इन्सुलिन से छुटकारा संभव है?
*अवश्य, मधुमेह के मरीजो को ये समझना चाहिए कि जटिलताओं के खत्म होने के कुछ हफ़्तों बाद वे संभवतः इन्सुलिन रोक कर वापिस गोलियों द्वारा इलाज पर लौट सकते है।
*उन्हें ये समझाएं कि आजकल आने वाले इन्सुलिन पहले से ज्यादा सुरक्षित है।
मधुमेह के किन मरीजो के लिए इन्सुलिन के अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं है?
*टाइप -1 मधुमेह के रोगी पर ये रोग बहुत कम रोगियों में होता है और अल्पायु में ही प्रारंभ हो जाता है।
*गर्भावस्था के दौरान मधुमेह (जेस्टेशनल डायबिटीज) से पीड़ित महिलाओं के लिए।
*क्रोनिक पैंक्रिअटिटिस से पीड़ित रोगियों के लिए। पर इस प्रकार के मरीजों के संख्या भी बहुत कम होती है।
*टाइप -2 मधुमेह के वे रोगी जो किसी गम्भीर जटिलता (कम्प्लीकेशन) के शिकार हों।
इन्सुलिन के साइड इफेक्ट्स क्या है?
1• हाइपोग्लाइसीमिया (अल्पशर्करारक्तता) इन्सुलिन की थोड़ी सी अधिक डोस भी अचानक शुगर को बहुत कम कर सकती है। इसके लक्षण को याद रखे – जैसे मरीज को शरीर में कंपन होना, अत्यधिक कमजोरी महसूस होना, तेज भूख लगना आदि। वैसे तो ये एक गंभीर साइड इफ़ेक्ट हैं। पर अगर मरीज इसके कारण को ठीक से समझा जाए तो इसको काफी हद तक रोक जा सकता है। मरीजो को समझना चाहिए कि-
**अगर उन्होंने इन्सुलिन लिया है तो वे समय से भोजन अवश्य करें।
** अगर किसी कारण भोजन कम करना है तो उस समय की इंसुलिन की कम डोस लगाए।
** अगर उपवास किया गया है तो इंसुलिन की डोस न लगाएं।
** अगर किसी कारण अधिक चलना या अन्य श्रम करना पड़ रहा है तो इन्सुलिन की अगली डोस कम करना उचित रहेगा।
डॉक्टरों को चाहिए कि
◆वे अपने मरीजों को हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षणों के बारे में अवगत करवाये और इन्सुलिन की डोस को स्वयं से कम ज्यादा करना सिखाए।
◆मरीजों को इन्सुलिन के ऑनसेट ऑफ एक्शन, पीक टाइम ऑफ एक्शन, और ड्यूरेशन ऑफ एक्शन के बारे में समझाए। ताकि मरीज समझदारी से भोजन और इन्सुलिन के टाइम में समन्वय बैठा सकें।
◆सीजीएम (कंटीन्यूअस ग्लूकोस मॉनिटरिंग) और एसएमबीजी ( सेल्फ-मॉनिटरिंग ऑफ ग्लूकोस) के लिए मरीज़ों को उपकरणों की जानकारी दें। और इन उपकरणों को उपलब्ध कराने और चलाने की जानकारी दे क्योंकि ये मॉनिटरिंग हाइपोग्लाइसीमिया को रोकने और शुगर को सही कंट्रोल करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
◆ डॉक्टर अपने मरीजो को हाइपोग्लाइसीमिया ठीक करने के लिए घर में मिलने वाली साधारण चीनी के बारे में बताए। कभी-कभी मरीज हाइपोग्लाइसीमिया के शुगर को बढ़ाने के लिए जलेबी बर्फी जैसी चीजे ढूंढ़ते रहते है जबकि घर में रखी चीनी शुगर बढ़ाने में सबसे ज्यादा कारगर सिद्ध होती है।
2. इंसुलिन का दूसरा साइड इफ़ेक्ट है वजन बढ़ना । इन्सुलिन एक एनाबोलिक हॉर्मोन है जिसके कारण मांसपेशियों में वृद्धि और फैट कोशिकाओं में वृद्धि होना स्वाभाविक है। युं तो ये पतले दुबले मरीजो में वरदान का काम करता है । पर भारी मरीजो में चिंता का विषय हो सकता है। इंसुलिन लगाने के दौरान द्वारा वजन न बढ़े इसके लिए मरीजों को चाहिए कि वे
— कम वसायुक्त भोजन का सेवन करें
— नियमित रूप से व्यायाम करें
— अपने भोजन में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम रखे
— भोजन में फाइबर की मात्रा बढ़ाये जैसे हरी सब्जियाँ फल इत्यादि
— बहुत से मॉडर्न इंसुलिन वजन को नहीं बढ़ाते। बल्कि इंसुलिन की जगह प्रयोग आने वाले जीएलपी –1 एगोनिस्ट कर इंजेक्शन तो वजन को काफी हद तक कम भी कर देते हैं।
3. इंसुलिन के प्रयोग में तीसरा और सबसे बड़ा अवरोध है प्रतिदिन लगने वाला इंजेक्शन। लेकिन अब डरने की जरूरत नहीं अपितु समझने की जरूरत है
**कि अब अल्ट्राफाइन नीडल्स उपलब्ध है जो केवल एक मच्छर के काटने के बराबर दर्द करती हैं।
**और ताजा शोध के अनुसार वैक्यूम से दिए जाने वाले नीडल-फ्री इंजेक्टर भी शीघ्र उपलब्ध होने की संभावनाएं है।
**मरीजो को समझना चाहिए कि डरने की जरूरत बीमारी के कॉम्प्लीकेशन्स से है ना कि इंजेक्शन से।
** ये भी समझने योग्य तथ्य हो सकता है कि इंसुलिन आपकी रोज की 5-6 गोलियों का एक सस्ता विकल्प ही सकता है
** आजकल हफ्ते में एक बार लगने वाले इंसुलिन भी उपलब्ध है।
4. टूर पर रहने वाले मरीजो के मन में इंजेक्शन आदि को ले हर वक्त साथ जाने की चिंता भी बनी रहती है। उनके लिए हमारे पास इंसुलिन पेन उपलब्ध हैं। जो आसानी साधारण पेन की तरह जेब में रखा जा सकता है। और प्रयोग करने में भी अत्यधिक सहज और सरल है। इसमें न शीशी का झंझट न सिरिंज की परेशानी।
5. मरीजो को आश्वस्त करें कि इंसुलिन को रखने के लिए रेफ्रिजरेटर की आवश्यकता नहीं। बस इसे छाया में रखे। फ्रीजर में तो बिलकुल न रखे। किसी वाहन में यात्रा करते समय अगर गर्मी है तो इन्सुलिन इंजेक्शन को एक छोटे गीले रुमाल में लपेट कर रखना समझदारी होगी।
6. कभी-कभी मरीजो को ये भय रहता है कि इंसुलिन के इंजेक्शन तो पेट में लगाए जाते है। ये धारणा बिलकुल गलत है। इंसुलिन को आप पैर, हाथ, जांघ, कंधा या पेट की त्वचा पर कही भी लगा सकते है। बल्कि इंसुलिन को स्थान बदल-बदल कर लगाना चाहिए ताकि ये पूरी तरह कारगर असर दे सके।
और सबसे जरूरी ये समझिये कि
●इंसुलिन न केवल शुगर को ठीक करता है बल्कि पैंक्रियास में बीटा सेल्स (जो कि इन्सुलिन का उत्पादन करती है) की संख्या और आयु को भी बढ़ा देता है । जबकि बहुत सी कॉमन दवाइयाँ जैसे ग्लीमीपेरिड, ग्लिबेनक्लामिडे आदि पैंक्रियास इन कोशिकाओं को नुकसान भी पहुँचा सकती है।
●इंसुलिन मधुमेह के कॉम्प्लीकेशन्स जैसे किडनी फेलियर, आदि को न केवल डिले कर देता है अपितु बहुत से कम्प्लीकेशन जैसे केटॉइडोसिस, इन्फेक्शन आदि को ठीक करने के लिए एक मात्र उपाय है।
इन्सुलिन से डरे नहीं ये डायबिटीज के मरीजो के जीवन में आशा की नई किरण का सबेरा लेकर आता है । इसका स्वागत करें।