बड़े सपने देखने से ही बड़ा बदलाव संभव है। ऐसा ही एक सपना 21 वर्षीया रानी असाटी ने देखा और अपने गाँव में एक बड़े बदलाव की नींव रख दी।
रानी की कहानी एक साधारण महिला के असाधारण बनने की कहानी है। वे अपने माता पिता 3 भाइयों और 3 बहनों के साथ बुंदेलखंड इलाके के छतरपुर जिले के एक छोटे से गाँव कर्री में रहती हैं। उनके पिताजी गाँव में ही किराने की दुकान चलाते हैं।
कर्री में जल संकट बढ़ता जा रहा था। लोग पानी की कमी से जूझ रहे थे और पर्यावरण को लेकर जागरूकता की भी कमी थी। इतनी कम उम्र में ही रानी को आने वाले समय में पानी की कमी की चिंता थी, और उन्हें लगा कि जल संरक्षण के लिए युवा पीढ़ी को आगे आना होगा।
गांव में आयोजित बैठकों और चर्चाओं में हिस्सा लेने के बाद रानी को यह समझ आया कि जल संकट केवल एक समस्या नहीं, बल्कि इसे हल करने का अवसर है। उन्होंने पहले इन समस्याओं को सिर्फ देखा और समझा, लेकिन बाद में उन्होंने इसे चुनौती के रूप में लिया। फिर उन्होंने ऐसी शुरुआत की जो बदलाव लेकर आई।
तीन साल पहले तक रानी को जल संरक्षण, पर्यावरण या समाज सेवा के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। लेकिन उनके मन में कुछ अलग करने और समाज के लिए योगदान देने का सपना जाग गया। जब उन्होंने जल सहेलियों के कार्यों और उनकी जिम्मेदारियों के बारे में सुना, तो उनके मन में प्रेरणा जागी और उन्होंने जल संकट को गंभीरता से महसूस करते हुए इसके समाधान के लिए स्वयं जल सहेली बनने का फैसला किया और ठान लिया कि अपने गांव के पानी और पर्यावरण की स्थिति को बदलकर रहेंगी।
उस एक साधारण सी महिला ने अपने गाँव में असाधारण बदलाव के लिए एक पहल शुरू कर दी थी। शुरुआत में गाँव वालों से उन्हें कोई समर्थन नहीं मिला था। पहले लोग उनकी बात नहीं मानते थे, लेकिन अब समय के साथ, जब लोग रानी के प्रयासों को देखकर प्रभावित हुए, तो समर्थन मिलना शुरू हो गया।
जल सहेली बनने के बाद रानी ने सबसे पहले अपने गांव में लोगों के साथ संवाद किया। उन्होंने जल संरक्षण को केवल जागरूकता तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे जमीनी स्तर पर अमल में लाने का बीड़ा उठाया और उन्होंने न केवल अपने गांव की बल्कि आसपास के कई गांवों की महिलाओं और लड़कियों को प्रेरित करने लगीं। उन्होंने युवाओं को प्रेरित करने का प्रयास किया, ताकि वे जल संकट के समाधान के लिए जागरूक हो सकें।
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रानी ने न केवल अपने गांव में बल्कि आसपास के गांवों में भी जागरूकता फैलाई। वह इस दिशा में काम करके भविष्य में जल संकट से मुक्ति के प्रयास करना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने पानी की पाठशाला का आयोजन शुरू किया, जिसमें लोगों को जल संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक किया जाने लगा। उन्होंने हर मोहल्ले में बैठकें कीं और महिलाओं को जल संरक्षण की महत्ता समझाई। उनकी मेहनत रंग लाई, और धीरे-धीरे गांव की अन्य महिलाएं भी इस मुहिम से जुड़ने लगीं। फिर रानी ने सिरोज, रानीखेड़ा, तनहगा, विनेदा, सूरजपुरा रोड, और बमनिघाट जैसे गांवों में जाकर उन्होंने महिलाओं और लड़कियों को संगठित किया। उन्होंने 1000 लड़कियों को जोड़कर एक मजबूत किशोरी जल सेना बनाने का न केवल संकल्प लिया बल्कि उसे एक अंजाम भी दिया।
रानी ने स्कूलों में जाकर किशोरियों को जल संरक्षण के लिए प्रेरित किया। इसके बाद, गाँव में मोहल्ला बैठकें और किशोरियों की बैठकें आयोजित करके उन्हें जोड़ने का काम किया और फिर किशोरी जल सेना का गठन कर लड़कियों को जल संरक्षण और पर्यावरण सुधार के लिए प्रशिक्षित किया।
उन्होंने अपनी जल सहेलियों और किशोरी जल सेना के साथ गांव के चौपरा, विनेदा के तालाब और बमनिघाट की तलैया में श्रमदान किया। इन प्रयासों ने न केवल जल स्रोतों को पुनर्जीवित किया, बल्कि जानवरों के लिए भी पीने का पानी उपलब्ध कराया, जो गर्मियों में सूख जाया करता था।
ग्रे वॉटर प्रबंधन के क्षेत्र में भी रानी का काम अनुकरणीय है। उन्होंने घरों में बेकार हो रहे पानी का उपयोग किचन गार्डन के लिए करने की पहल शुरू की। इससे न केवल लोगों को ताजी सब्जियां मिलीं, बल्कि उनके स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ।
रानी कहती हैं, “मैंने देखा है कि जब एक महिला जागरूक होती है, तो पूरा परिवार और समुदाय जागरूक हो जाता है। मेरा सपना है कि हर गांव में महिलाएं और लड़कियां जल संरक्षण का नेतृत्व करें और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भविष्य बनाएं।” उन्होंने आगे कहा कि उनका हमेशा से यह मानना है कि जब लड़कियां और महिलाएं जल संरक्षण की जिम्मेदारी लेंगी, तो समाज में बड़ा बदलाव आएगा।
रानी असाटी की कहानी यह बताती है कि बदलाव लाने के लिए साधन और साधनाएं उतने महत्वपूर्ण नहीं होते, जितना कि संकल्प और समर्पण। हालाँकि इन कार्यों से उनकी फिलहाल कोई स्थिर आमदनी नहीं है पर रानी ने यह साबित कर दिया कि एक साधारण महिला भी बड़े बदलाव की शुरुआत कर सकती है। उनकी मेहनत, नेतृत्व और समाज के प्रति समर्पण उन्हें हर महिला और युवा के लिए प्रेरणा बनाता है। आज छतरपुर में रानी केवल एक नाम नहीं, बल्कि जल संरक्षण और समाज सेवा की दिशा में एक आंदोलन बन चुकी हैं और श्रमदान और सामूहिक प्रयासों की एक अनोखी मिसाल हैं।
– ग्लोबल बिहारी ब्यूरो
नोट: भारत के दो बड़े राज्यों – उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में स्थित बुंदेलखंड एक ऐसा प्रान्त है जहां एक पृथक राज्य की मांग दशकों से उठ रही है। देश के अन्य राज्यों से अलग बुंदेलखंड की अपनी एक गाथा है जो सिर्फ वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका एक समृद्ध इतिहास रहा है। चंदेला राजाओं द्वारा बनाये गए तालाब तो प्राचीन भारत में जल संरक्षण के अद्भुत मिसाल हैं। चंदेला मध्य भारत में एक शक्तिशाली राजवंश थे, जिन्होंने 9वीं से 12वीं शताब्दी तक शासन किया। वे यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल खजुराहो के मंदिरों के निर्माण के लिए भी जाने जाते हैं। खनिजों से समृद्ध होने के बावजूद, बुंदेलखंड के लोग बहुत गरीब हैं और यह क्षेत्र अक्सर अकाल पीड़ित रहता है और अविकसित है। राज्य और केंद्र की राजनीति में भी इसका प्रतिनिधित्व कम ही है। ‘फोकस बुंदेलखंड’ सीरीज क्षेत्र की जल की समस्या के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालने के लिए ग्लोबल बिहारी की एक पहल है।
– दीपक पर्वतियार, एडिटर-इन-चीफ