– प्रशांत सिन्हा
धार्मिक स्थानों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल आजकल चर्चा का विषय बना हुआ है लेकिन यह चर्चा राजनैतिक और सांप्रदायिक रंग की जगह ध्वनि प्रदूषण की चिंता के लिए की जाती तो शायद देश और समाज के लिए बेहतर होता।
ध्वनि प्रदूषण स्वास्थ के लिए कितना खतरनाक है इसका अंदाज बहुत कम लोगों को है। सिर्फ धार्मिक स्थानों पर ही लाउडस्पीकर की आवाज का समस्या नहीं है बल्कि वाहनों के हॉर्न , कल कारखानों की आवाजों से भी बहुत ध्वनि प्रदूषण होता है जो सहन शक्ति के बाहर है। शादी ब्याह में डीजे आदि इतनी ऊंची आवाज में बजाई जाती है जिसके शोर से शारीरिक और मानसिक तनाव हो जाता है। अनेक प्रकार के रोग जन्म लेने लगते हैं। काम में बाधा पड़ती है। नींद ठीक से नहीं होने पर शारीरिक और मानसिक कष्ट होता है। रक्तचाप बढ़ जाता है। बहरापन होने की संभावना बढ़ जाती है। इन शोरगुल के प्रभाव को दवाओं से कम नहीं किया जा सकता है। इसके लिए सबसे आवश्यक है कि शोरगुल के उदगम पर ही नियंत्रण लगाया जा सके।
ध्वनि शब्द बहुत मधुर और कर्ण प्रिय लगता है। जब हम किसी संगीतज्ञ की रचना सुनते हैं तो कितना आत्मविभोर हो जाते हैं। किंतु जब यही ध्वनि शोर का रुप धारण कर लेती है तो बहुत कष्ट कारक हो जाता है।। इसका हम सभी को अंदाज है। ट्रक, बस, ट्रेन, मोटर कार, मोटर साइकिल, जुलूस का शोर केवल शहरों में ही नही बल्कि गांव में भी पहुंच गया है। हालांकि ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिए कानून बना हुआ है।
ध्वनि प्रदूषण ( अधिनियम और नियंत्रण ) कानून 2000 जो पर्यावरण ( संरक्षण ) कानून 1986 के तहत आता है कि 5वीं धारा लाउडस्पीकर और सार्वजनिक स्थलों पर बजने वाले यंत्रों पर मनमाने अंदाज में बजने पर अंकुश लगाता है।
* लाउडस्पीकर या सार्वजनिक स्थलों पर यंत्र बजाने के लिए प्रशासन से लिखित में अनुमति लेनी होती है।
* लाउडस्पीकर या सार्वजनिक स्थलों पर यंत्र रात में बजाने पर प्रतिबंध है। इसे रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक बजाने पर रोक है। हालांकि ऑडोटोरियम , कांफ्रेंस रूम, सामुदायिक भवन जैसे बंद कमरे में बजाया जा सकता है।
*राज्य सरकार के पास यह अधिकार होता है कि वह क्षेत्र के हिसाब से किसी भी औधोगिक , व्यवसायिक , आवासीय या शांत क्षेत्र घोषित कर सकता है। अस्पताल , शैक्षणिक संगठन और अदालत के 100 मीटर के दायरे में ऐसे कार्यक्रम नहीं कराए जा सकते क्योंकि सरकार इन क्षेत्रों को शांत क्षेत्र ( साइलेंस जोन ) घोषित कर सकती है।
इसके लिए क्षेत्र और समय के अनुसार सीमा रखी गई है। मानव के कान कम से कम 0 डेसिबल और अधिक से अधिक 180 डेसिबल तक शोर का सामना कर सकते हैं। एक नियम के अनुसार सार्वजनिक और निजी स्थलों पर लाउडस्पीकर की ध्वनि सीमा क्रमशः 10 डेसिबल और 5 डिसिबल से अधिक नही होनी चाहिए। रिहायशी इलाकों में ध्वनि का स्तर सुबह 6 बजे तक 55 डेसिबल तो रात 10 बजे से सुबह तक 45 डेसिबल तक ही रखा जा सकता है। जबकि व्यवसायिक क्षेत्र में सुबह 6 बजे से रात 10 बजे से तक 65 डेसिबल और रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 55 डेसिबल तक का स्तर होना चाहिए। दुसरी ओर औधोगिक क्षेत्रों में इस दौरान ध्वनि स्तर को सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक 75 डेसिबल रख सकते हैं। वहीं शांत क्षेत्र (साइलेंस जोन ) के इस दौरान क्रमशः 50 डेसिबल और 40 डिसीबल ध्वनि का स्तर रखा जाना चाहिए।
लेकिन दुख की बात है जिस प्रकार हवा में प्रदुषण बढ़ाया गया वृक्षों को काटे गए, जल को प्रदुषित किया गया उसी प्रकार नियमों को धज्जी उड़ाते हुए ध्वनि को भी प्रदुषित किया जा रहा है। इन्हें अविलंब रोकना जरूरी है।