– रमेश चंद शर्मा*
नई दिल्ली: आज दिल्ली सरकार ने यमुना के जलस्तर में असाधारण बढ़ोत्तरी से निचले इलाकों में आयी बाढ़ की वजह से भारी वाहनों का प्रवेश राजधानी के सिंघु बॉर्डर, बदरपुर बॉर्डर, लोनी बॉर्डर और चिल्ला बॉर्डर पर ही रोक दिया है। सिर्फ उन्हीं ज़रूरी सामानों जैसे दवाइयां, फल तथा सब्ज़ियों और अनाज, दूध, अण्डों और बर्फ ला रही ट्रकों को दिल्ली में प्रवेश की अनुमति मिली है। हरियाणा, हिमाचल, चंडीगढ़, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड से कश्मीरी गेट अंतर्राज्यीय बस अड्डे तक आने वाली बसों को भी सिंघु बॉर्डर पर रोक दिया गया है जिससे यात्रियों को बेहद परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। स्कूल तथा कॉलेज को भी रविवार तक के लिए बंद कर दिया गया है।
पिछले तीन चार दिन से लगातार अलग-अलग क्षेत्र में जा रहा हूँ । बाढ़ की समय से चेतावनी मिलने से सही समय पर सुरक्षित स्थानों पर लोग आ गए। अपने पशुओं, सामान के साथ। सरकारी टैंट देखने में सुंदर लग रहे हैं मगर बौछार से नहीं बचा सकते। बनावट का दोष है। बिजली के बल्ब लगे है मगर रोशनी नहीं दे रहे हैं। पुलिस प्रशासन सहित अनेक विभाग पहुंचे हुए हैं। कर क्या रहे हैं, यह वह ही जानते हैं । दाता भी पहुंच रहे हैं। भोजन साम्रगी बंट रही है। कूड़ा भी क्षेत्र में बढ़ रहा है। सफाई, कूड़ा-करकट के प्रबंधन का शुरू से ही ख्याल रखना चाहिए। प्लेट, दोने, ढोने, छिलके यहां वहां पड़े है। बाढ़ की स्थिति में स्थानीय साथियों में से कुछ स्वयंसेवक निकालने का प्रयास किया जाना चाहिए। किसान, मजदूर प्रभावित हैं। खेती, बागवानी, नर्सरी, दुकानदार के साथ साथ अनेक धंधे वाले भी क्षेत्र में हैं। हरियाली, पेड़ पौधे, खेती-बाड़ी, बागवानी, नर्सरी, पशुपालन के अलावा जो अन्य गतिविधियां कूड़ा कचरा, प्रदूषण, गंदगी फैला रही है उन्हें तत्काल प्रभाव से पूरी तरह रोका जाए।
आज यमुना वहां पहुंच गई जहां कभी बहती थी। लाल किले की सुरक्षा एक ओर सीधे यमुना करती थी तथा शेष ओर पर खाई बनाकर उसे पानी से भरा जाता था।लाल किले के पीछे मुद्रिका मार्ग रिंग रोड की जगह यमुना जल प्रवाहित रहता था। लाल किले को शीतलता, सौंदर्य, भव्यता प्रदान करता था।
पुस्ता बांध बनाकर यमुना की भुजाएं बांध दी गई। यमुना को लाल किले से दूर किया गया। जो लाल किला यमुना के किनारे बसाया गया था, उससे किनारा दूर कर दिया गया। कहते है इतिहास अपने को दोहराता है। आज यमुना अपने पुराने मार्ग को तलाश रही है। कहीं कहीं वहां पर पहुंच गई है, चाहे रौद्र रूप लेकर ही सही।यमुना रौद्र रूप में संदेश दे रही है कि उसका खादर, क्षेत्र लौटाया जाए। खादर क्षेत्र में उत्पादन के साथ साथ कब्जे भी किए जा रहे हैं। जो क्षेत्र में दैत्य खड़े किए गए है उन्हें हटाओ।वे आवश्यकता नहीं, लालच, लोभ, धंधा है। मां को मां ही रहने दो, कचरा पेटी मत बनाओ। नदी क्षेत्र खादर को मुक्त करो। नदी आजादी मांग रही है। नदी बचेगी जीवन बचेगा। संदेश नहीं सुनेंगे तो पश्चाताप करते हुए भुगतना पड़ेगा।
आज बाढ़ की स्थिति में दिल्ली घबराहट में है। विकास के नाम पर जो जो बिना विचारे या प्रकृति के प्रतिकूल कदम उठाए गए हैं उनका हिसाब किताब प्रकृति रखती है और समय पर चुकता करती है। यमुना के साथ किया गया खिलवाड़ भारी पड़ता जा रहा है। अभी भी चेते तो बचाव संभव है, अन्यथा यमुना सबक सिखाएगी।
याद रखना चाहिए कि कालीदेह, कालिया नाग के भय, प्रदूषण, विष को मिटाने, समाप्त करने के लिए उस समय के युगपुरुष कृष्ण को उसमें उतरना पड़ा था। हमने गंगा, यमुना सहित लगभग सभी नदियों की अविरलता निर्मलता पवित्रता को बर्बाद किया है। अब भुगतने को तैयार रहें या तेजी से तत्काल सुधार करें। लालची स्वभाव विकसित नहीं हो। आवश्यकता, जरूरत पूर्ति हो। कचरा पेटी का प्रबंध हो। कूड़ा समय पर उठे। यह शिक्षण-प्रशिक्षण का समय बनाया जा सकता है। लोगों को विभिन्न पहलुओं पर जागरूक किया जा सकता है। परस्पर समन्वय स्थापित करने से काम आसान होंगे।
यमुना आजादी के लिए ललकार रही है। आजादी के लिए तड़प रही है। आजादी के लिए हाथ पैर मार रही है। आजादी के लिए रौद्र रूप धारण कर रही है। गंगा, यमुना का जन्म स्थल हिमालय भी आजादी के लिए अपने विकराल रूप को दर्शा रहा है। बार बार छोटी बड़ी चेतावनी देता रहा है।
आओ मिलकर सोचें और सही दशा और दिशा को अपनाएं।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।