– अनिल शर्मा*
सरसौखी (जालौन): सरसौखी राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे स्थित गांव है जो कि औधौगिक स्थान से भी सटा हुआ है और दबंगों की गिद्ध दृष्टि इस गांव पर जमी हुई है। इसके मद्देनज़र यहां की जमीनों को बेशकीमती आँका जा रहा है।
यहां हो रहे अवैध कब्जों के प्रति प्रशासन की उदासीनता सोचनीय विषय बन गई है।
गत वर्षों ग्राम समाज की जमीन पर हुए अतिक्रमण को हटवाना वर्तमान राज्य सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल रहा है जिसे लेकर हर दिन विज्ञप्ति जारी करके बड़े बड़े दावे किए जाते रहे हैं लेकिन जब हमारी टीम ने हांडी के चावल का एक दाना नमूने के तौर पर निकालने की तर्ज़ पर जिला प्रशासन की नाक के नीचे स्थिति सरसौखी ग्राम में जाकर इसका जायजा लिया तो जमीनी हकीकत इन दावों कोसों दूर मिली।
इस गांव की जमीन पर नवोदय विद्यालय की बाउंड्री बनाने के दौरान प्रशासन ने आम रास्ते के लिए जो जगह छोड़ी थी अतिक्रमणकारियों ने उसे भी नहीं बक्शा और अपनी दबंगई से उन्होंने उक्त रास्ते के बीच में पड़ने वाले पर बनाए गए पुल को तोड़ दिया है जिसके चलते लोगों के खेतों पर जाने का मार्ग ठप्प हो चुका है।
दबंगों के खौफ के कारण परेशान होने के बावजूद लोग जुबान नहीं खोल पा रहे । उक्त दबंग यहां मिट्टी के अवैध खनन का खेल खेल रहे है जिसकी भेंट एक चार एकड़ का नाला चढ़ चुका है और एक बड़ा एरिया तालाब में परिवर्तित हो चुका है।
अधिकारियों को दिन के उजाले में भी सरसौखी की ये दुर्दशा नजर नहीं आती तो यह स्वाभाविक ही है लेकिन अन्य किसी व्यक्ति को मौके पर खड़े होकर इस पूरे इलाके में मिट्टी के बड़े पैमाने के उठाने के निशान साफ साफ दिखाई दे रहे है।गांव वालों का कहना है कि पेशेवर माफियाओं के पास में मशीनरी की पूरी व्यवस्था है जैसे पावर कटर है जिनसे बड़े बड़े पेड़ों को पलक झपकते ही धाराशाई कर देते हैं । जमीन को तेजी से ड्रिल करने बाली मशीनें भी है जिनसे गढ्ढे बनाकर पिलर खड़े कर दिए जाते है ताकि किसी भी जगह मुद्दत से उनका कब्जा होने का दावा सच लग सके।
अपराध नियंत्रण के नजरिए से देखें तो भी यहां कि स्थिति संगीन नजर आती है। ढाई तीन दशक पहले करीब का औधौगिक स्थान फर्नेस फैक्ट्रियों से गुलजार रहता था जो उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्य मंत्री स्वर्गीय कल्याण सिंह के दूसरी बार के कार्यकाल में विद्युत चोरी रोकने के लिए की गई सख्ती के चलते वीरान होने लगा। विद्युत चोरी पर आश्रित फर्नेस फैक्ट्रियां एक एक करके बंद होती चली गई।यही कारण है कि आज उरई का औधौगिक स्थान फैक्ट्रियों के कब्रिस्तान के रूप ने पहचाने जाने लगा है जो सरसौखी के आपराधिक तत्वों के निशाने पर रहता है। फैक्ट्री एरिया पुलिस चौकी की कथित मदद से बंद पड़ी फैक्ट्रियों से ये तत्व हर महीने लाखों रुपए के स्क्रैप को उठवाकर चोर बाजार में खपाते हैं । इस कारगुजारी से मालामाल हो रहे अपराधी तत्व सहजोर भी बनते जा रहे हैं।
कुछ दिनों पूर्व हाइवे चौकी पर तैनात सिपाही को शहीद किए जाने का मामला भी स्क्रैप चोरी से जुड़ा बताया जा रहा है।अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब इन दबंगों से पुलिस तक सुरक्षित नहीं है तो आम ग्रामीण की बिसात क्या है ।जिला मुख्यालय के करीब सरसौखी की यह अंतर्कथा क्या दिया तले अंधेरे के मुहावरे को चरितार्थ नहीं करता ?
*वरिष्ठ पत्रकार