पर्यटन: बुंदेलखंड का चौरासी गुंबद
बुंदेलखंड का चौरासी गुंबद! पर पहले थोड़ा बुंदेलखंड के बारे में!
हमाई बुंदेलखंड!
हमाओ शान!
बुंदेलखंडी भाषा में लिखा उपरोक्त वाक्य। अपने आप में शायद इतना बताने के लिए काफ़ी है कि उत्तर प्रदेश के जालौन और उसके आसपास का क्षेत्र जो झांसी, ओरछा और मध्यप्रदेश के और भी कई क्षेत्रों को मिलाकर बना बुंदेलखंड क्षेत्र कितना महत्त्व रखता है यहां के लोगों के लिए। हालांकि आधिकारिक तौर पर अभी राज्य की मान्यता मिलना बाकी। पर, इस क्षेत्र के लोगों के लिए बड़ा ही भावपूर्ण शब्द है बुंदेलखंड। स्थानीय लोगों के लिए गर्व, सम्मान और दिल के बेहद करीब।
इसी बुंदेलखंड के कालपी में एक बादशाह लोदी शाह का मजार जिसे “चौरासी गुंबद” के नाम से जाना जाता है। कालपी, जालौन जिले में स्थित जो कानपुर से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर कानपुर – झांसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित।
जी हां! हम बातें कर रहे हैं बादशाह लोदी शाह का मकबरा के बारे में। 84 गुंबदों से बना एक खुबसूरत निर्माण जो लगभग 15 – 16 शताब्दी का है। इसका निर्माण कंकड़ तथा चुने से निर्मित खंडों से किया गया है। अपने आकार के कारण यह विलक्षण है । बेहद खूबसूरत।
हालांकि, पुराना निर्माण और उचित रखरखाव नहीं होने की वजह से आज इसकी स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती है। वहां पहुंचने पर आपकी मुलाकात होती है एक व्यक्ति से जिसे राज्य सरकार के पुरातत्व विभाग ने वहां पदस्थापित कर रखा है जो हर आने वाले व्यक्ति का नाम और मोबाइल नं और वो कहां से आया है इसकी जानकारी पंजीकृत करते हैं। महज़ एक औपचारिकता है। अलबत्ता कोई रोक टोक नहीं। लोग बाग स्वतंत्र हैं वहां आने जाने के लिए।
यह संपूर्ण भवन शतरंज के बोर्ड की भांति स्तंभों के माध्यम से विभाजित है । इसके केंद्र के वर्गाकार भाग के ऊपर विशाल गुंबद निर्मित है जो छत से लगभग 21 मीटर ऊंचा है। संभवत उद्यान मकबरा की श्रेणी का प्राचीनतम उदाहरण है यह मकबरा जिसके चारों ओर निर्मित प्रवेश द्वारा से प्रांगण में प्रवेश किया जा सकता है।
वर्तमान में गुंबद की छत टूटी हुई है। इसके अतिरिक्त चारों कोनों पर चार छोटे आकार के गुंबद निर्मित हैं। मकबरे के चारों ओर चार भव्य प्रवेश द्वार है जिनमें होकर मुख्य कक्ष में प्रवेश किया जा सकता है ।
मुख्य कक्ष में ही मजार का निर्माण किया गया है।
अब थोड़ा कालपी के बारे में भी – अपने आप में इतिहास को समेटे हुए एक छोटा सा शहर। बुंदेलखंड का प्रवेश द्वार कहा जाता है इसे। पुराने समय में इस शहर का नाम “कालप्रिया” था जो कालांतर में संक्षिप्त होकर कालपी बन गया। यमुना नदी के किनारे पर बसा यह शहर महाकाव्य महाभारत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास जी का जन्म स्थान भी है। शहंशाह अकबर के समय का सरकारी मुख्यालय का दर्ज़ा प्राप्त यह शहर अकबर के नवरत्नों में से एक बीरबल का भी जन्म स्थान है। 1858 ईस्वी में जब झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अपने घोड़े बादल पर सवार झांसी के किले से कूद कर बाहर निकल आईं थीं और फिर जब वो कालपी पहुंची तो यहीं पर उनके और अंग्रेज़ी हुकूमत के बीच महत्वपूर्ण युद्ध हुआ था।
Beautiful information about Bundelkhand.
हमारे प्राचीन भारत की अत्यंत हीं अनोखा इतिहास का अनमोल रचना जिसे पढ़ कर काफी प्रसन्नता हुई। आशा है आगे भी अनमोल रचनाएं हमें अवश्य मिलती रहेगी।
धन्यवाद !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति । आभार सर।
तथ्यपरक एवम ज्ञानवर्धक एक सुंदर आलेख