अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस पर विशेष
–प्रशांत सिन्हा
भारत में आपदा प्रबंधन अधिनियम 12 दिसंबर, 2005 को लोकसभा द्वारा और 28 नवंबर, 2005 को राज्य सभा द्वारा पारित किया गया था। इसे 23 दिसंबर, 2005 को भारत के राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई थी। अधिनियम में भारत के प्रधान मंत्री के अध्यक्ष के रूप में एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) की स्थापना का आह्वान किया गया है। एनडीएमए में एक उपाध्यक्ष सहित एक बार में नौ से अधिक सदस्य नहीं होते हैं। एनडीएमए के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। एनडीएमए राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों के साथ नीतियों, योजनाओं, दिशानिर्देशों, सर्वोत्तम प्रथाओं और समन्वय के लिए जिम्मेदार है। वहीं (एसडीएमए) आपदा प्रबंधन के लिए और आपदाओं के लिए एक बहुत ही समय पर, प्रभावी और समन्वित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए ज़िम्मेदार है। यह देश की योजनाओं को तैयार करने में राज्य के अधिकारियों द्वारा पालन किए जाने वाले दिशा-निर्देशों को निर्धारित करने के लिए भी जिम्मेदार है। यह एजेंसी गृह मंत्रालय के अंतर्गत आती है। यह आपदाओं से निपटने और संकट प्रतिक्रिया में क्षमता निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित करती है।
आपदा प्रबंधन इस देश के नीतिगत ढांचे में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। शासन और प्रशासन को जानकारियां एवं लोगों को आपदाओं की जोखिम को न्यूनीकरण करने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। आपदा पूर्व की सुनियोजित तैयारी कैसे की जाती है जिससे आपदाओं से होने वाली क्षति कम हो।
सीबीएसई बोर्ड से संबद्ध सभी स्कूलों में आपदा प्रबंधन को एक अनिवार्य विषय बना दिया गया है और युवा और रचनात्मक दिमाग को इस बात से परिचित कराने के लिए किया गया है कि आपदा का क्या मतलब है और इसे कैसे प्रबंधित किया जाए। यह प्राकृतिक आपदाओं के बारे में छात्रों के बीच जागरूकता पैदा करने में मदद करेगा और उसी के प्रति उनकी भेद्यता को कम करेगा और उन्हें मानसिक और भावनात्मक रूप से कठिन भी बनाएगा। स्कूल में बच्चों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाना एक महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि किसी भी आपात स्थिति में वे सबसे अधिक असुरक्षित होते हैं।
अंतराष्ट्रीय आपदा दिवस के अवसर पर लोगों को आगे आना चाहिए और आपदाओं के प्रति अपने को जागरूक बनाना चाहिए और अपनी धरती को सुरक्षित बनाने में सहयोग देना चाहिए।