विश्व आदिवासी दिवस: 9 अगस्त
विश्व आदिवासी दिवस दुनिया की ज्ञान की विरासत को संजोए हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसी दिन आदिवासी विश्व दिवस के रूप में मनाने का तय किया था। विश्व आदिवासी दिवस आदिवासियों के ज्ञानतंत्र को आगे बढ़ाने, समृद्ध करने और चेतना जगाने का दिन है, लेकिन हम आधुनिक लालची विकास के दौर में उनके ज्ञान तंत्र और अस्मिता का मजाक उड़ा रहे है।
हमें अभी भी वक्त है यह जानने का कि दुनिया में आदिवासी ज्ञान तंत्र के कारण अभी भी मानवीय और प्रकृति के रिश्तो में समता, सहजता और समरसता दिखती है। इसलिए अभी दुनिया जलवायु परिवर्तन के भयानक संकट से गुजरने के बावजूद भी बची हुई है। इस दुनिया को बचाने में आदिवासियों का ज्ञान तंत्र, जीवन व्यवहार और उनकी जीवन पद्धति बहुत ही कारगर, सफल और उपयोगी है।
आदि और अनंत (चरैवेति – चरैवेति) जो हमारे जीवन की प्रक्रिया है, उस प्रक्रिया में आदिवासियों ने जिस तरह का जीवन जिया था , उस जीवन पद्धति से भारत में बहुत ही सम्मान सहित उपनिषदों में श्लोक का स्मरण किया जाता है –
“समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव।।”
आदिवासियों का ही मूल ज्ञान है जिसमें यह कहा जाता है कि, यह ब्रह्मांड जल से निर्मित हुआ है। इसीलिए आज भी आदिवासी जल को भगवान मानकर सम्मान करते हैं, जबकि दूसरे लोग जल को बाजार की वस्तु मान के व्यवसाय खरीद-फरोख्त कर रहे है। तो प्रकृति में जिसे हम भगवान कहते हैं उस भगवान को सृष्टि का सृजनकर्ता मानकर, उसके सम्मान में आदिवासी सदैव प्यार, विश्वास, आस्था, श्रद्धा, निष्ठा और भक्ति भाव से प्रकृति को पूजते हैं।
आदिवासियों के ज्ञान, जीवन व्यवहार और पद्धति को दुनिया की जीवंत विरासत अभी भी हमें जलवायु परिवर्तन जैसे भयानक संकट से बचाने के रास्ते हमारे लिए खोलती है । उस विद्या का रक्षण, संरक्षण और पोषण आदिवासियों से हुआ है। हम आज संकल्पित होते हैं कि दुनिया के आदिवासियों से इस 21 वी शताब्दी के संकट के समाधान का ज्ञान अर्जित करके, उस दिशा में अपने जीवन में वैसा व्यवहार प्रकृति के साथ करते रहेंगे।
आदिवासियों का ज्ञान तंत्र मूल ज्ञानतंत्र माना है। आदिवासियों का ज्ञानतंत्र ही विद्या है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं।