– डॉ राजेन्द्र सिंह*
भारत की राजधानी सुखाड़ के प्रलय से सबसे पहले फतेहपुर सीकरी से उजड़कर आगरा आयी थी। आगरा में युमना के किनारे लम्बे समय तक हमारी राजधानी रही। फिर आगरा से उजड़कर दिल्ली आयी। दिल्ली में भी यमुना के किनारे ही भारत की राजधानी बसायी गई। यह ऐसा इतिहास है जो प्रलय से बचने के लिए हमें हमेशा सचेत करता रहा है। अब हमारी राजधानी दिल्ली भी समय-समय पर सुखाड़ व बाढ़ के प्रलय झेलती रही है।
उस काल में प्राकृतिक प्रलय थी, अभी दिल्ली में बाढ़ की मानव निर्मित प्रलय है। इस समय जो हिमालय में वर्षा हुई है, वह बहुत अतिवृष्टि नहीं है, सामान्य बारिश जैसी ही है। लेकिन सरकारी अराजकता व अव्यवस्था के कारण दिल्ली में बाढ़ का हाहाकार मच गया है।
यमुना जी राजधानी दिल्ली में 22 किलोमीटर लम्बाई में बहती हैं। इन 22 किलोमीटर के हर 1 किलोमीटर पर, 1 बरसाती नाला था। यहाँ पर यमुना जी की सहायक नदियों में साबी नाम की एक अद्भुत नदी है। यह वज़ीराबाद पुल के पास आकर यमुना में मिलती थी। जब भी यमुना का जल-स्तर ऊपर होता था, तो साबी नदी से यह पानी वापस नजफ़गढ़ झील में चला जाता था। नजफ़गढ़ झील को प्राकृतिक तरीक़े से भरता रहता था। जब बाढ़ उतरती थी तो धीरे-धीरे कुछ पानी वापिस सतह पर यमुना जी में आ जाता था। ज़्यादातर पानी नजफ़गढ़ झील में ही रुक कर अधो भू-जल के भण्डारों को भर देता था। भू-जल के भण्डार भरने के बाद वह पानी धीमी गति से अधो भू-जल से पूरे साल यमुना जी में आता रहता था। इसलिए यमुना भी सदानीरा बनी रहती थी और बाढ़ के समय का जल भी कम हो जाता था।
राजधानी दिल्ली के विकास ने यमुना जी में बहुत विनाश किया है। इस कथित विकास ने साबी नदी को नाला बना कर रख दिया। अब साबी नदी का पानी नजफ़गढ़ झील तक भी नहीं पहुँचता। 22 किलोमीटर में वर्षा-जल के जो 18 नाले थे, वे अब गंदे नाले बन गये हैं। जहाँ वर्षा-जल बहता था, वहाँ अब गंदा जल बहता है। गंदे जल को परिशोधित करने वाले तालाब और कुण्डों पर अवैध क़ब्ज़े हो गये हैं। उस भूमि का उपयोग अब सरकारी भवन निर्माण में किया गया है और बची हुई ज़मीन रियल स्टेट का काम करने वाले भू-माफियाओं के क़ब्ज़े में है। विभिन्न तरह के भवन निर्माण कार्यों ने यमुना के प्राकृतिक प्रवाह एवं स्वरूप को बिगाड़ दिया है। हिमालय में यमुना की अविरलता थी, वर्षा का पानी जगह-जगह रुकता था, तो यमुना का जल धीरे-धीरे बहता था। हमारे नये विकास ने बाढ़ से बचने के अनुकूल तरीक़ों को खत्म कर दिया और यमुना किनारे के जंगल समाप्त कर दिये। इसलिए अब राजधानी में मानव निर्मित बाढ़ का प्रलय बढ़ रहा है।
राजधानी में 2023 की बाढ़ प्राकृतिक प्रलय नहीं है, यह मानव निर्मिती से आमन्त्रित की गई आपदा है। इस आपदा से बचाने के लिए मैंने 2005 में दिल्ली में डेरा डाला था। दो साल तक जब सरकार ने नहीं सुना, तो 2007 में यमुना सत्याग्रह करना पड़ा था। सत्याग्रह का असर तत्कालीन मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार, अर्जुन सिंह, सांसद व वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर, नई दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल तेजेन्द्र खन्ना पर हुआ और इन सभी ने यमुना में हो रहे कुछ अतिक्रमणों को रुकवा दिया था। उन्होंने पवन हंस कम्पनी को हवाई पट्टी बनाने व अन्य बड़ी कम्पनियों को ज़मीन देने पर रोक लगा दी थी। उस समय बड़े-बड़े मीडिया, घराने और बाबाओं ने भी यमुना पर क़ब्ज़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
यमुना सत्याग्रह तीन साल तक चला और आगे होने वाले क़ब्ज़ों को रोका। स्वर्गीय श्री मनोज मिश्र और मैंने मिलकर, सुप्रीम कोर्ट में यमुना जी की ज़मीन को यमुना के लिए ‘‘अक्षर धाम-खेल गाँव कहीं और बनेंगे’’ और मेट्रो को हटवाने के लिए लड़ाई लड़ी थी; लेकिन उसमें माननीय उच्चतम न्यायालय से राहत नहीं मिली थी। यदि उस समय माननीय उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश यमुना को न्याय दे देते, तो आज माननीय उच्चतम न्यायालय के पास पानी नहीं पहुँचता। यमुना की इस बाढ़ आपदा ने भारत की न्यायपालिका और कार्यपालिका को सीखने का अवसर प्रदान किया है।
राजधानी में देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और प्रधान मंत्रियों की समाधियाँ भी यमुना की ज़मीन पर ही बनी हैं। यमुना जी किसी दिन अपना स्थान बनाने के लिए इंतजार कर रही थी और आज इस आपदा को अपनी जगह बनाने के लिए चुन लिया। अब भी सरकार यदि अपनी विरासत को बचाने के लिए जागरूक नहीं होगी, तो यह मानव निर्मित प्रलय आती ही रहेगी और दिल्ली को विस्थापित करेगी। राजधानी फिर कहीं और बनेगी। इसको में विकास का बिगाड़, विस्थापन और विनाश कहता हूँ। इसका परिणाम ही यह प्रलय है। यह प्रलय हमें सिखाने के लिए है, हमें इससे सीख लेना चाहिए। हमारे सत्याग्रह से सरकार ने सीख नहीं ली, लेकिन जब प्रकृति खुद सिखाने आयी है, तो प्रकृति से सीख लेना ही चाहिए।
हमने भारत में जहाँ भी ऐसी आपदाएँ आयी हैं, उन आपदाओं के पहले ही, आपदा से बचने के लिए समय-समय पर सचेत करने की कोशिशें की हैं। मुझे याद है कि 2008-09 में तरुण भारत संघ के उपाध्यक्ष स्वर्गीय प्रोफेसर जी. डी. अग्रवाल जी ने हिमालय में बांध बनाने, टर्मिनल बनाने, ऑल वेदर रोड़ बनाने व हिमालय में खनन को रोकने के लिए बहुत बार आमरण अनशन किया था। मैं भी उनके साथ बहुत सक्रिय रूप से रहा। केरल में आने वाली बाढ़ के खिलाफ, बाढ़ आने से पहले नदियों की यात्राएँ करके, वहाँ हो रहे खनन को रोकने के लिए बहुत सारे लोगों के साथ प्रयास किया था। ऐसे ही कश्मीर में बाढ़ आने से पहले, वहाँ जाकर पद-यात्रा करके कहा था कि, नदी की ज़मीन पर क़ब्ज़ा मत करो। हम छोटे-छोटे काम करके बाढ़-सुखाड़ को जीवन भर रोकते रहे हैं।
बाढ़ व सुखाड़ से मुक्ति की युक्ति हेतु 42 साल से सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबन्धन और जल, जंगल, ज़मीन के संरक्षण का काम प्रत्यक्ष रूप से कर रहे हैं। इससे राज और समाज को सीख लेनी चाहिए। दुनिया याद रखेगी कि जहाँ-जहाँ हमने काम किया है, वहाँ बाढ़ और सुखाड़ दोनों से मुक्ति मिली है। क्योंकि सुखाड़ रोकने के लिए ऊपर की मिट्टी के कटाव रोकने व हरियाली बढ़ाने का काम करते हैं और जब वह पानी नीचे आता है, तो धरती के ऊपर जल संरचना बनाकर, धरती के पेट में नदी बहाते हैं। इस प्रकार बाढ़ और सुखाड़ दोनों से मुक्ति मिलती है। हम जानते हैं कि भ्रष्टाचारी व्यवस्था ऐसे सदाचारी कामों को नहीं अपनाती, फिर भी हम भ्रष्टाचारियों को सदाचारी बनाने का प्रयास करते रहते हैं। प्रकृति के ये सदाचारी काम आस्था, श्रद्धा, निष्ठा और भक्ति का भाव पैदा करते। यह शिक्षा नहीं, विद्या है। इस प्रकृति की विद्या से सीखकर बाढ़-सुखाड़ से मुक्ति के लिए जल-स्वराज्य का काम कर रहे हैं और करते रहेंगे।
दिल्ली की बाढ़ राजधानी के लोगों की देन है। 2007 में मैंने जब राजस्थान छोड़कर, यमुना को बचाने के लिए यमुना सत्याग्रह शुरू किया था, तब कहा था कि यमुना की जमीन-यमुना के लिए रहे और खेल गाँव और कम्पनियों को जो ज़मीन दी गई है, वह कहीं दूसरी जगह देना चाहिए। यमुना की ज़मीन पर बना अक्षर धाम और खेल गाँव दोनों दिल्ली को डुबोएँगे, आज वही हो रहा है। यमुना को एक नए बांध से बांध दिया और यमुना जी को बहने के लिए जगह नहीं मिली, इसलिए आज यमुना जी का जल-स्तर बहुत ऊँचा उठा है। जल स्तर के ऊँचे उठने से जहाँ यमुना पहले बहती थी, उन्हीं जगहों पर फिर से बहने लगी है। यदि दिल्ली की सरकार और लोग हमारी बात 2005 में ही सुन लेते, तो 2007 में सत्याग्रह नहीं करना पड़ता। हमने 2007 से 2009 तक यमुना की ज़मीन बचाने के लिए बराबर लड़ाई लड़ी है। दिल्ली की बाढ़ यमुना की ज़मीन पर दिल्ली में हुए क़ब्ज़ां के कारण भी पनपी है। हमने सत्याग्रह करके यह बात समझाने का प्रयास किया था कि यदि यमुना की ज़मीन पर अतिक्रमण करोगे, तो दिल्ली डूबेगी ही। लेकिन तब किसी को भी समझ नहीं आया। तब तो सरकार खेल गाँव व अक्षर धाम बनाने पर अड़ी रही थी।
उस समय हमारे सत्याग्रह में आकर जॉर्ज फ़र्नान्डिस साहब ने क्षमा माँगी और कहा कि इस अक्षर मन्दिर को बनाने की स्वीकृति उन्होंने ही दी थी। मुझे मालूम नहीं था कि, यह ज़मीन यमुना की है। मुझे डी.डी.ए. के अधिकारियों ने बताया कि, यह जमीन तो किसानों से ली है। तब मैं नहीं समझ पाया था कि इस मन्दिर के बनने से दिल्ली में बाढ़ आयेगी। हमें अब समझ आया है कि यह यमुना नदी की ज़मीन है। नदी के बहाव को सँकरा करने से बाढ़ आयेगी, पर अब क्या कर सकते हैं? फिर हमने कहा था कि अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत। तब वे मंत्री नहीं थे। इसलिए मन्दिर को हटाना और खेल गाँव को रोकना उनके हाथ की बात नहीं थी। उसके बाद भारत सरकार के किसी और दूसरे नेता ने उस विषय पर विचार नहीं किया और न ही कोई विचार कर रहा है।
हम लोगों ने कहा था कि “यमुना की जमीन में तो केवल पेड़ लगेंगे-खेल गाँव व अक्षर धाम, मेट्रो-रेल के डिपो कहीं और बनेंगे।’’ उन दिनों इस सत्याग्रह में श्री नीरज कुमार, भारत सरकार के बहुत सारे बड़े नेताओं को यमुना के चल रहे सत्याग्रह में यमुना पर हो रहे कब्जों को दिखाने के लिए लाये थे और उन जगहों को दिखाया था।
सत्याग्रह से पवन हंस और अन्य कम्पनियों को जो ज़मीन दी गई थी, उन सबकी लीज तो रद्द हुई; लेकिन अक्षर धाम और खेल गाँव तो बन ही गये। इसको बचाने के लिए जो बांध बनाया गया, उसको भी सुप्रीम कोर्ट ने सहमति दे दी और कहा कि यमुना के तटबंध के बाहर की ज़मीन को, यमुना की ज़मीन नहीं कह सकते। बांध बनाने से नदी की ज़मीन का नाम बदल जाता है, ऐसा हम लोगों ने पहली बार सुना था। हमारे केस को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर बन्द कर दिया कि तटबंध बनने से यह ज़मीन यमुना की नहीं रही। माननीय उच्च न्यायालय का यह निर्णय ऐसा नहीं होता, तो सुप्रीम कोर्ट के पास यमुना की बाढ़ का पानी नहीं जाता। अब आगे हमारा सम्मानीय न्यायालय इस बात को समझेगा कि नदियों की जमीन केवल नदियों के लिए होनी चाहिए। नदियों की ज़मीन का स्वरूप व मालिकाना शहरों को बसाने और कम्पनियों को खोलने आदि के लिए नहीं बदलना चाहिए। उस वक्त यह ज़मीन न दी जाती और मेट्रो ने यमुना की खादर ज़मीन पर जो क़ब्ज़ा किया है, वह नहीं होता, तो दिल्ली को ये बाढ़ के दिन नहीं देखने पड़ते। यह बात साफ़ है कि हिमालय की हरियाली खत्म की और यमुना की अविरलता खत्म की है, उसके कारण बाढ़ आई है। चिन्ता की बात है कि दिल्ली ने भी अपनी यमुना की ज़मीन का सम्मान नहीं किया।
आगे यदि दिल्ली को बाढ़ से बचना है, तो यमुना की ज़मीन को यमुना के लिए ही छोड़ देना चाहिए। यमुना के रेड जॉन, ब्लू जॉन और ग्रीन जॉन में किसी भी तरह का कोई अतिक्रमण नहीं होना चाहिए। यदि अतिक्रमण होता है तो आगे का प्रलय इससे भी भयंकर होगा। इसलिए आगे के प्रलय से बचने के लिए यमुना की ज़मीन पर किसी भी तरह के क़ब्ज़े नहीं होने चाहिए। यमुना की खादर की ज़मीन पर जो क़ब्ज़े हुए हैं, उन्हें हटाना चाहिए। क़ब्ज़ों को हटाकर, यमुना को अविरल प्रवाह देना होगा।
यदि हमारी बात उस वक्त भी सरकार मान लेती, तो दिल्ली को ऐसी बाढ़ की प्रलय नहीं देखने पड़ती। दिल्ली का पानी खादर में होता हुआ, बाहर निकल जाता। अभी समय है कि दिल्ली सरकार इस बात को समझे। मुझे याद है कि, उस वक्त यमुना सत्याग्रह में जब अरविन्द केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री नहीं थे, तब सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर बहुत बार मुझसे मिलने आये थे। आप इस बात को मानते थे कि यमुना की ज़मीन, यमुना के लिए ही छोड़ी जानी चाहिए।
केजरीवाल 2007 में दिल्ली में किसानों के साथ, यमुना सत्याग्रह द्वारा आयोजित पद यात्राओं में पद यात्रियों के साथ बहुत बार शामिल हुए थे और बातचीत की थी; लेकिन अभी लग रहा कि दिल्ली के मुख्यमन्त्री बनने के बाद यमुना का दर्द भूल गये। यदि मुख्यमंत्री पहले से सतर्क होकर, दिल्ली को बाढ़ से बचाने की कोशिश करते, तो बाढ़ का इतना भयानक स्वरूप नहीं होता।
दिल्ली में यमुना 22 किलोमीटर लम्बाई में बहती है, फिर भी अतिक्रमण करके इसको सँकरा किया जा रहा है। अब यदि दिल्ली की बाढ़ को भारत सरकार और आपकी सरकार बचाना चाहती हैं, तो दिल्ली में यमुना की ज़मीन को यमुना के लिए छुड़वाना चाहिए। यमुना के पुलों में यमुना का प्रवाह बनाए रखने के लिए यमुना को अविरलता प्रदान करनी चाहिए। अभी यदि तुरन्त यमुना के अतिक्रमण, प्रदूषण और यमुना में हो रहे खनन को नहीं रोका गया, तो यमुना इसी तरह बाढ़ व सुखाड़ की पहचान बन जायेगी।
अभी दिल्ली में यमुना को स्वराज्य चाहिए। यमुना की अविरलता-निर्मलता से यमुना को स्वराज्य मिलेगा। यमुना के स्वराज्य से ही दिल्ली का स्वराज्य और भारत का स्वराज्य सनातन कायम रहेगा।
*जलपुरुष के नाम से विख्यात और मैग्सेसे तथा स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित जल संरक्षक। प्रस्तुत लेख उनके द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को आज लिखे एक पत्र का अंश है।