अंतराष्ट्रीय पर्वत दिवस पर विशेष
पर्वत से ही कायम है प्राकृतिक संतुलन
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2002 को संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय पर्वत वर्ष घोषित किया और इस अवसर पर 2003 से 11 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस के रूप में नामित किया।
यह दिन वन्यजीव और पौधों के संरक्षण के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ाने एक अवसर देता है, क्योंकि पर्वतों में विभिन्न प्रजातियों का अद्वितीय संसार होता है।
जब हम पर्वत की बात करते हैं, तो यह सिर्फ ऊँचाई हरियाली और सुंदरता के लिए नही होता, बल्कि ये हमारे पारिस्थितिकीय और सांस्कृतिक विविधता का भी प्रतीक है। पर्वतों में हिम नदीयाँ, बर्फ, झीलें, और विभिन्न वन्यजीव पाए जाते हैं। ये पर्वत प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पर्वतों के महत्व को समझते हुए, विश्व पर्वत दिवस का आयोजन हर साल किया जाता है ताकि लोग इन प्राकृतिक समृद्धि के अद्वितीयता को समझ सकें और इन्हें सुरक्षित रखने के लिए सकारात्मक कदम उठा सकें। इस दिन के आयोजनों में पर्वतीय समुदायों, वैज्ञानिकों, और प्राकृतिक संरक्षण संगठनों का सहयोग होता है ताकि वे अपने अनुसंधान और कार्यक्षेत्रों के माध्यम से बेहतर समझ सकें कि पर्वत स्थलों का कैसे संरक्षण किया जा सकता है।
प्रकृति की अद्भुत कृति, पर्वत, न केवल भू-आकृति का एक हिस्सा हैं, बल्कि हमारे पर्यावरण के संतुलन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। पर्वत हमारे पर्यावरण के लिए जीवनदायिनी जैसी कार्य करते हैं। वे नदियों के स्रोत हैं जो जलवायु को नियंत्रित करते हैं, और विविध जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों का घर हैं। वनस्पति और वन्य जीवन की विविधता, प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ पर्वतीय क्षेत्र जैव विविधता का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इस जैव विविधता का संरक्षण न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि हमारे खुद के अस्तित्व के लिए भी जरूरी है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया के 80 प्रतिशत भोजन की आपूर्ति करने वाली 20 पौधों की प्रजातियों में से छह की उत्पत्ति पहाड़ों में हुई जिनमें मक्का, आलू, जौ, ज्वार, टमाटर और सेब शामिल हैं। वहीं दुनिया के आधे से अधिक लोग पहाड़ के मीठे पानी पर निर्भर हैं।
हालांकि, आज पर्वतीय क्षेत्रों का सामना गंभीर चुनौतियों से हो रहा है। अत्यधिक पर्यटन, अनियोजित विकास, और वनों की कटाई इन क्षेत्रों की प्राकृतिक सुंदरता और संतुलन को नष्ट कर रहे हैं। ये क्रियाकलाप न केवल पर्वतीय पारिस्थितिकी को प्रभावित करते हैं, बल्कि निचले मैदानी इलाकों पर भी अपना असर छोड़ते हैं।
इस समस्या का समाधान करने के लिए, हमें सतत विकास की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे। पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटन को नियंत्रित करना, वनों की कटाई को रोकना, और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं। इसके अलावा, पर्वतीय समुदायों के साथ मिलकर काम करना और उनके ज्ञान और परंपराओं का सम्मान करना भी जरूरी है।
पर्वतों का संरक्षण केवल सरकारी नीतियों और प्रयासों का हिस्सा नहीं होना चाहिए, बल्कि प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी भी है। हमें अपने दैनिक जीवन में पर्यावरण के प्रति सजग रहना चाहिए और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर चलना चाहिए।
‘पर्वत है तो पर्यावरण है’ – यह केवल एक कहावत नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व का आधार है। पर्वतों का संरक्षण और प्रकृति के साथ तालमेल बनाए रखना हमारे भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। आइए, हम सब मिलकर इस दिशा में काम करें और अपने पर्यावरण को संरक्षित रखें।