विरासत स्वराज पदयात्रा- एक झलक
उत्तर कश्मीर में जल, जंगल, जमीन, पर्यावरण को जानने, समझने, पहचानने के लिए आओ झेलम को जानें शीर्षक के अंतर्गत एक विरासत स्वराज पदयात्रा का कार्यक्रम 5 से 11 मई, 2022 बना। इसके लिए 4 मई को साथी – सर्वश्री राजेन्द्र सिंह, संजय भावसार, कौशिक जोशी, प्रोफेसर हेमंत शाह, डॉ सुमंत पाण्डे, इन्द्र शेखर सिंह, रमेश चंद शर्मा – बांडी, तहसील उड़ी (उरी), जिला बारामुला, उत्तर कश्मीर पहुंचे।
पदयात्रियों में अपने अपने क्षेत्र की समझ, जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ, जमीन से जुड़े साथी भी मौजूद थे। जिनके अनुभवों, जानकारी का लाभ पदयात्रा को मिला। जल, जंगल, जमीन, कृषि, किसानी, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था, शिक्षण, कौशल, लोक विद्या, तकनीकी ज्ञान के ज्ञाता पदयात्रा में शामिल होने से वस्तु स्थिति को समझने का अच्छा अवसर बना। परस्पर वार्तालाप, संवाद ने कार्यक्रम की उपयोगिता को बढ़ाया।
हमारा पदयात्रा दल कमल कोट, बिजामा, नाम्बला, अमनसेतु, कमान पोस्ट, रुस्तम, जबला, सलामाबाद, चंदनवाड़ी, मोहुरा, बांडी, लगामा, सैदपुर, उड़ी, सुल्तान डाकी, तिलावाडी, चिरौडा, आदि पहुंचा। इनमें अनेक बस्ती हिंद पोक सीमा पर आखिरी गांव है।
देश दुनिया का पारा तापमान दिनों दिन बढ़ोतरी की ओर है। पढ़े लिखे ग्लोबल वार्मिंग की बातें कर रहे हैं तो आम आदमी कह रहा है कि धरती को बुखार चढ़ गया है। बुखार के कई कारण हो सकते हैं। कम होती हरियाली, पानी के स्रोतों का अभाव, कार्बन का बढ़ना/ उत्सर्जन, बदलती जीवनशैली, विकास के नाम पर हो रहे नासमझी के कार्य, बढ़ती गति, आदमी का लालच, उपभोक्तावादी मानसिकता, सुविधाओं की भूख, प्रकृति से खिलवाड़/टूटते रिश्ते/बढ़ती दूरी/ प्रकृति का भंयकर दोहन, शोषण ऐसे अनेक उदाहरण आप जोड़ सकते हैं। सूची लंबी है।
धरती पर कहे जाने वाला स्वर्ग कश्मीर भी इससे अछूता नहीं है। वहां भी इनका प्रभाव साफतौर पर नजर आ रहा है। तेजी से स्थिति बदलती जा रही है। मौसम, जलवायु, स्थिति, वातावरण में अनेक बदलाव देखने में आ रहे हैं। बर्फ का कम गिरना, पानी की मात्रा में कमी, बढ़ता पारा, तापमान में बदलाव, पहाड़ों में खनन, जंगल का कटान, सड़कों का बेतरतीब निर्माण, विकास की अंधी दौड़, प्लास्टिक का फैलाव, पानी का अधिक एवं नासमझी पूर्वक प्रयोग जैसे कदम स्थिति को और अधिक गंभीर, भयानक, चुनौतीपूर्ण बना रहे हैं।
रामबान में धूल भरी आंधी का सामना करना पड़ा, जिसमें प्लास्टिक पतंगों की तरह नीचे से ऊपर तक उड़ते नजर आ रहे थे, धूल मिट्टी कचरे के कणों के साथ।आबादी के दबाव को भी नकारा नहीं जा सकता। बदलती बढ़ती उपभोक्तावादी मानसिकता भी अपना प्रभाव डाल रही है। विकास भी विनाश की राह खोल रहा है।
जिन खोजा तिन पाईया – नदी को जानना है तो उसका परिवार, कुनबा, रिश्ते नाते, वंश, भाईबंद, पड़ोसियों, साथियों, मित्र मंडली को जानना पहचानना समझना होगा तभी हम उसे सही ढंग से गहराई से अध्ययन कर सकते हैं। उसके दादा-दादी, ताऊ-ताई चाचा-चाची, नाना-नानी, बेटा-बेटी, भाई-भतीजा जैसे अनेक रिश्ते नाते जानने समझने जरुरी है।
जैसे हमारे शरीर में छोटी बड़ी नसें है, ढ़ेर सारे अंग प्रत्यंग है उसी तरह नदी के भी है। नदी की सहायक नदियां, झरने, स्रोत, कुण्ड, तालाब आदि उसे समृद्ध, सशक्त, पानीदार बनाते हुए उसका संरक्षण, संवर्द्धन, सदानीरा बनाने में मददगार होते हैं। आसपड़ोस ही नहीं दूर दूर तक की वनस्पतियां, पेड़ पौधे, जीव जंतु, पशु पक्षी, कीड़े मकोड़े, काई, पहाड़, जंगल, खनीज आदि भी नदी के गुण दोष, अच्छाई बुराई को बढ़ाते घटाते हैं। जब यह तत्व कमजोर पड़ने लगते हैं तो नदी रोगग्रस्त होने लगती है। नदी का संकट बढ़ जाता है। नदी मरने लगती है।
नदी का विस्तार, व्यापक स्वरूप समझे बिना नदी को समझना कठिन है। इसलिए उड़ी (उरी) क्षेत्र में आने वाले नदी नाले झरने आदि को जितना संभव हो देखने की योजना बनाई। गहराई से सघन क्षेत्र को देखने समझने जानने के लिए पदयात्रियों ने एक एक दिन में 20-22 कि.मी. उबड़ खाबड़, ऊंचे नीचे, पहाड़ की चढ़ाई उतराई, पथरीली जगह पैदल चलकर भी पदयात्रा का आनंद लिया और अपने लक्ष्य को जानने समझने पहचानने पकड़ने का प्रयास किया।
पदयात्रा के दौरान हमें अखरोट, ओलिव, नाशपाती, बाबू गोसा के उद्यान देखने को मिले। खेती में देशी स्थानीय मक्का, राजमा की उपज है ।
हमें मारखोर संरक्षण क्षेत्र, नया कृषि फार्म, ओलिव फार्म जाने का भी अवसर मिला। मारखोर की संख्या बहुत कम है। उसके संरक्षण संवर्द्धन के लिए प्रयास जारी हैं। प्रयोग की दृष्टि से कृषि फ़ार्म विकसित किया जा रहा है। काम तो अच्छा है मगर सरकारी विभागों के जाल में फंसकर यह क्या स्वरुप लेगा मालूम नहीं। वहां हुए काम की दशा एवं दिशा देखकर तो चिंता ही होती है। कुछ सही अधिकारी करना भी चाहते हैं तो सरकारी विभागों की परस्पर विरोधी नीतियों, चालों, चालाकियों, भ्रष्टाचार की उलझन के कारण कितना कर पाएंगे।
इन सबके बावजूद जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने उन्हें अनेक उपयोगी सार्थक महत्त्वपूर्ण कदम बताए जिन्हें उठाकर इस फार्म की जल, जमीन को सुधारा जा सकता है। जमीन का ढाल किस ओर रखा जाए। खेत की सीमा पर पत्थर को किस प्रकार लगाया जाए, उनकी मेंढ कैसे बनाई जाए। कौन कौन सी वनस्पति लगाकर इसका सुधार संभव है। बाड़ के रुप में औलीव के पौधे लगाए जा सकते हैं। इस प्रकार से अनेक सुझाव सलाह मार्गदर्शन रखा।
ओलिव फार्म में अच्छे पेड़ देखने को मिलें। 250 किलो तेल यहां के पेड़ों से मिल रहा है। अनेक किसान भी ओलिव की खेती करने लगे हैं। इस कार्य का विकास कर आय, आमदनी रोजगार बढ़ाया जा सकता है। यह एक अच्छा कार्य है। फार्म पर ओलिव का तेल निकालने की मशीन भी लगी हुई है, जिससे तेल निकालने का काम किया जाता है।
अखरोट इस क्षेत्र की प्रमुख उपज है। अखरोट के अच्छे स्वस्थ पुराने नए पेड़ देखने को सहज ही मिलते हैं। इस पर व्यवस्थित ध्यान दिया जाए। खरीद फरोख्त की और अच्छी सुविधा उपलब्ध कराई जाए। इस बारे में नए प्रयोग किए जा सकते है।
सरकारी महकमों को अधिक चुस्त दुरुस्त करने की आवश्यकता है। अधिकारियों के पद रिक्त पड़े हैं। उदाहरणार्थ ब्लाक स्तर पर ब्लाक अधिकारी भी सभी ब्लाक में नहीं है। पांच ब्लाक में दो बीडीओ है।
यह सीमा क्षेत्र है। उड़ी के लगभग तीन ओर पोक की सीमाएं हैं। हमें पदयात्रा के दौरान इन पांचों क्षेत्र में यात्रा करने का मौका मिला। हमारे सुरक्षा बल सजग है। जन विश्वास भी उतना ही जरूरी है। जागरुक आत्मविश्वासी, निडर, आत्मशक्ति, स्वाभिमानी जनता एवं सजग मजबूत सुरक्षा बल मिलकर अधिक अच्छी सीमा सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं।
गवर्मेंट डिग्री कालेज, उड़ी, गवर्मेंट कन्या हायर सेकेंडरी स्कूल, उड़ी, मिडिल स्कूल, नाम्बला आदि में यात्रा टोली के कार्यक्रम आयोजित किए गए। शिक्षकों, छात्र छात्राओं से बातचीत, संवाद, संपर्क, अपनी बात रखने का मौका बना। सरकारी अधिकारी, ग्रामीण शहरी जन, किसान, अध्यापक, छात्र छात्रा, युवा, पत्रकार, व्यापारी, दुकानदार, मजदूर, सैनिक, पुलिस, पूर्व सैनिक, राजनेता से संवाद संपर्क बातचीत अलग अलग तरीके से हुई। कहीं व्यक्तिगत रूप से, कहीं समूह में, टोली में, सभा में तो अनेक बार पैदल चलते चलते मिले लोगों आदि से संवाद, बातचीत, गप्प लड़ाते उपयोगी, सार्थक, महत्त्वपूर्ण जानकारी सहज ही प्राप्त हुई।
जल जंगल जमीन, वनस्पति, पशु पक्षी, खेत खलिहान, बाग बगीचे, गांव, कस्बे, घर परिवार, आस पड़ोस को देखना समझना जानना आवश्यक है।
यहां अनेक जलस्रोत हैं – परसी नाला, काजी नाला, हाजीपीर, छम, नाम्बला, नीलसर, गुजर नाला, भीमसार, नहर, बांध, कुण्ड, झरने, नाली, झील, टपकता बहता जल आदि।
इन इलाकों मे जल संरक्षण संवर्द्धन के प्रति जागरूकता की ज़रुरत है ताकि जल का सदुपयोग किया जाए; जल को सुरक्षित रखा जाए; कटाव, क्षरण को रोका जा सके; खेती के उपयोगी सार्थक सही प्रयोग हो।ज़रूरी है कि स्थानीयता, क्षेत्र के ज्ञान को हरदम ध्यान में रखकर कार्यक्रम बने।
यहां साझा विरासत, धरोहर गहराई से लोगों के मन, मानसिकता में विराजमान रही है। उसे जाने अनजाने, स्वार्थवश, लालच, सत्ता, पद के लिए दाव पर लगाकर अपना अपना हित साधने का प्रयास किया गया है। यहां आज भी पुराने धार्मिक स्थल मौजूद हैं। पाण्डु समय का बना मंदिर है इसके पुजारी भद्रक उड़ीसा के रहने वाले है। 8वीं 9वीं शताब्दी का शिव का दाता मंदिर है जिसकी देखभाल, पूजा पाठ बीएसएफ 63 बीएन के लोग करते हैं। यह एएसआई के पुरातत्व स्थल के अंतर्गत है। इसकी बनावट, पत्थर ही इसके पुरातनकाल का होने का सुबूत पेश कर रहे है।
इस क्षेत्र में छठी पातशाही का गुरुद्वारा है। छठे गुरु यहां आए थे। उनके साथ पांच पीर भी थे इस स्थान को पांच पीर के कारण पंचपल्गनी के नाम से भी जाना जाता है। इनकी कथा भी प्रचलित है। तीन छठे गुरु के साथ रहे मगर दो यही रह गए उनकी मजारें भी इस क्षेत्र में है। जिनके बारे में भी किस्से मशहूर है।
बूटी मैया छम पर प्राकृतिक रूप में एक शिवलिंग बना हुआ है। आजकल उसको लेकर कुछ लोग सक्रिय हो रहे है। वहां जाने का रास्ता भी ठीक नहीं है। सुना गया कि वहां इन दिनों एक जत्था जाने की तैयारी कर रहा है। धार्मिक स्थलों को लेकर देशभर में अलग ही माहौल बनाया जा रहा है। यह देश, समाज के लिए अच्छा नहीं है। भक्ति अलग बात, भाव है। भक्ति, भगवान की आड़ में अपना उल्लू सीधा करना अलग बात है। अलगाव कड़वाहट भय दहशत नफरत द्वैष का माहौल बनाकर अपना हित, स्वार्थपूर्ति करना एक दम गलत है।
पदयात्रा में चलते चलते सहज ही इनके दर्शन का लाभ मिला।
पर स्थिति तो यहां काफी चुनौतीपूर्ण है। बर्फबारी कम हो रही है। जल स्रोत कमजोर पड़ रहे हैं। प्लास्टिक कचरा बढ़ रहा है। जंगल घट रहा है। पेड़ कटे है। कटाव, भूक्षरण बढ़ा है। पहाड़ नंगे है। खनन समस्या बन रही है। बेरोजगारी बढ़ रही है। युवा बेरोजगार हैं। खेती सीमित है। मौसम, जलवायु परिवर्तन हो रहा है। तापमान बढ़ रहा है। वाहनों की संख्या बढ़ी है।बाजार हावी हो रहा है। जंगली जानवरों को खतरा बढ़ा है। जंगली क्षेत्र कम हुआ है। जंगली जानवरों की संख्या कम हुई है। मानव, जानवर, जीव जन्तु, प्रकृति का परस्पर हस्तक्षेप बढ़ा है। सरकारी पद रिक्त हैं। अधिकारी स्तर पर तथा शिक्षण संस्थानों में भी। जन सेवाओं का अभाव है। सीमा क्षेत्र होने के कारण आवागमन में कठिनाइयां है।
दहशत, भय, हिंसा, तनाव, दबाव का माहौल मानसिकता बिगाड़ता है। सीजफायर से राहत मिली है।
12 मई को मैं सड़क मार्ग से जम्मू पहुंचा। डॉ सीमा रोहमित्रा ने लॉ स्कूल, जम्मू विश्वविद्यालय में कार्यक्रम आयोजित कर नई पीढ़ी के समक्ष अपनी बात रखने, संवाद, संपर्क, बातचीत करने का सुअवसर प्रदान किया। युवा साथियों ने रुचि से बातचीत में भागीदारी की। जम्मू विश्वविद्यालय में हरियाली, पुराने पेडों का आनंद लिया। अच्छा लगा। जम्मू तवी भी अन्य महानगरों की तरह कंक्रीट के बढ़ाव में शामिल है। पानी, नदी की दशा और दिशा काबू से बाहर है। सड़कों का जाल चारों ओर फैलाया गया है। अन्य शहरों की जो समस्याएं हैं वे यहां भी कमोबेश नजर आती है। जम्मू तवी का फैलाव तेजी से बढ़ रहा है।
– लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।
Well written
पदयात्रा के सफलता की शुभकामनाएं।पर आगे समस्याओं के समाधान पर पहल होनी चाहिए ताकि पदयात्रा की सफलता दिखें
अत्यंत प्रभावशाली रिपोर्टिंग और चित्रावली आदरणीय शर्मा जी को हार्दिक बधाई और साधुवाद