-डा.रक्षपाल सिंह और ज्ञानेन्द्र रावत*
बीते लगभग सात सालों से केन्द्र में व चार सालों से उत्तर प्रदेश में भाजपा सत्तासीन है। इस दौरान भाजपा सरकारों ने देश एवं प्रदेश के लोगों को उनके नजदीक बेहतर व सस्ती चिकित्सा सुविधायें उपलब्ध कराने हेतु देश में कई आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स एवं मेडिकल कालेजों को खोले जाने की घोषणाएं की। लेकिन विडम्बना यह है कि एक ओर जहाँ वर्ष 2012 में घोषित ऋषिकेश ,भोपाल, पटना, भुवनेश्वर, रायपुर व जोधपुर के आयुर्विज्ञान संस्थानों यानी एम्स में केन्द्र सरकार ऋषिकेश एम्स, जो उत्तराखंड में है, के अतिरिक्त शेष एम्स में पांच में पचास फीसदी से अधिक टीचिंग फैकल्टी , महत्वपूर्ण तकनीकी व नान टीचिंग पोजीशंस वाले स्टाफ अर्थात 22,656 में से 10,661 की अभी तक नियुक्तियां तक नहीं कर सकी है, तो वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने भी बीते चार सालों में 30 मेडिकल कालेजों के निर्माण की घोषणाएं तो की लेकिन दुख की बात यह है कि उन घोषणाओं पर अमली जामा पहनाने में अभी तक नाकाम रही है।
गौरतलब है कि बीसवीं सदी में निर्मित एवं संचालित उत्तर प्रदेश के लगभग 10 मेडिकल कालेजों में ही गम्भीर बीमारियों के इलाज की व्यवस्थाएं हैं और सबसे बडी़ बात यह है कि उन पर प्रदेश के लोगों का विश्वास अभी तक भी कायम है । इसके विपरीत इस सच्चाई से मुंह नहीं मोडा़ जा सकता कि इक्कीसवीं सदी में बने बाकी अधिकांश निजी ही नहीं बल्कि सरकारी मेडिकल कालेजों की भी बदहाली किसी से छिपी नहीं है। उनकी बदहाली का आलम यह है कि वहां लोग अपना इलाज मज़बूरी में ही कराने को जाते हैं। कारण इसके सिवाय उनके पास कोई चारा नहीं है।
दरअसल इक्कीसवीं सदी में खोले गए अधिकांश मेडिकल कालेज ऐसे स्थानों पर खोले गए हैं जहाँ नियुक्त अधिकांश डाक्टर्स, प्रोफेसर्स, अन्य फैकल्टी व टेक्नीशियन्स आवास आदि बहुतेरी असुविधाओं के चलते वहां रहना कतई पसंद नहीं करते । फिर दूर दराज स्थित महानगरों से वह वहां आते जाते हैं जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है। परिणामत: गम्भीर रोगों से बीमार मरीजों की उचित देखभाल नहीं हो पाती है। यही नहीं ऐसे मेडिकल कॉलेजों में स्थायी तौर पर विभिन्न बीमारियों के विशेषज्ञों एवं टेक्निकल व नान टेक्निकल स्टाफ की काफी कमी बने रहने के कारण जो उस जिले के लोगों को लाभ मिलना चाहिये था, वह उससे वंचित रह जाते हैं।
इन विषम परिस्थितियों में गम्भीर बीमारियों से ग्रस्त मरीजों के लिये अधिकांश यह नये मेडिकल कालेज सफेद हाथी ही सिद्ध हो रहे हैं । आवश्यकता इस बात की थी कि लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिलनी चाहिये, उसके लिए भले उन्हें मंडल स्तर के बड़े शहर में ही क्यों न जाना पड़े । लोग आज भी उचित और योग्य विशेषज्ञ डाक्टरों से इलाज की चाह में बडे़ शहरों में पुराने मेडीकल कालेजों में ही जा रहे हैं।
निष्कर्ष यह कि भाजपा प्रत्येक जनपद में केवल मेडिकल कालेज खोलकर न तो प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं का भला कर रही है और न ही वहां के लोगों को उचित चिकित्सा सुविधाएं ही मुहैय्या करा पा रही है। सच तो यह है कि वहां के लोगों का भला तो तभी होगा जबकि नये सृजित मेडिकल कालेजों में पूरे क्वालीफायड डाक्टर्स, प्रोफेसर्स सहित टीचिंग एवं नान टीचिंग स्टाफ की तैनाती की जाये,वहां आवश्यक सभी मशीनों की उपलब्धता हो, उसके हॉस्पिटल का सुचारू रूप से संचालन हो एवं आर्थिक रूप से कमजोर बीमार लोगों को सभी दवाएं मुफ्त एवं उनके साथ अच्छा व्यवहार किया जाये।
लेकिन लगता है सरकार की सोच केवल और केवल घोषणायें करके वाहवाही लूटने और अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री करने की ही रही है जो किसी भी मायने में उचित नहीं है।
*डा. रक्षपाल सिंह जाने-माने शिक्षाविद, डा.बी आर अम्बेडकर विश्वविद्यालय,आगरा शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष एवं ज्ञानेन्द्र रावत वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।