रविवार पर विशेष
दिल्ली का चटोरापन
-रमेश चंद शर्मा*
दिल्ली के लोगों का चटोरापन और सत्ता का छिछोरापन दिल्ली में जन्म जात पड़ा है। आगे इसकी कहानी आपको जरुर पढ़ने को मिलेगी। यमुना दिल्ली के लोगों की जमना के किनारे बसी बस्तियों, शहरों में दिल्ली सबसे बड़ा शहर, महानगर है। लगभग पचास किलोमीटर की परिधि में फैला हुआ। पानीपत, सोनीपत, बागपत, महीपत, तिलपत की कहानी से इन्द्रप्रस्थ, दिल्ली का गहरा संबंध रहा है। इन पांच पतो की बात याद आते ही पूरा महाभारत सामने आकर खड़ा हो जाता है। पांच पत, गाँव ही तो मांगे थे। मगर सत्ता का छिछोरापन, मोह, लोभ, मद, अहंकार, भूख, पागलपन ने नहीं माना। सत्ता महाठगनी हम जानी। दिल्ली ने सत्ता के अनेक तख्तों ताज को आते जाते, लुटते, लूटते, लूटाते, भागते, पछताते, कांपते, मौज मस्ती मनाते देखा है। इन्हीं चक्करों में दिल्ली अनेक बार उजड़ी और बसी। नाम भी बदले, काम भी बदले। उजड़ उजड़ कर बसी दिल्ली। सत्ता, तख्तों ताज बदले मगर दिल्ली ने अपनी पहचान नहीं छोड़ी। गाँव वाली दिल्ली, यमुना के किनारे बसी दिल्ली, तख्तों ताज वाली दिल्ली, अपने ही नाज़ वाली दिल्ली, पुराना किला, क़ुतुब मीनार लालकिला, जंतर मंतर, तुगलकाबाद, लुटियन वाली दिल्ली। गांवों को निगलती दिल्ली। सबका स्वागत करती, अपनाती, सबको गले लगाती दिल्ली। राजधानी दिल्ली। सोनीपत, बागपत, गाज़ियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद, गुडगाँव, गुरुग्राम, बहादुरगढ़ के मध्य बसी दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र बनी दिल्ली। वाह दिल्ली वाह, तेरे नाम अनेक तू एक ही है।
लंबे समय से दिल्ली राजनैतिक हलचल का स्थान, अड्डा, अखाडा, मैदान, क्षेत्र रहा है। दिल्ली का अपना इतिहास रहा है। पुराना किला, सीरी, तुगलकाबाद, जहाँपनाह, फिरोशाबाद, शाहजहांनाबाद, नई दिल्ली इन सात दिल्ली नगरियों की बात तो खूब की जाती है। दिल्ली में गाँव अंतिम सांसे गिन रहे है। विकास के नाम पर इनकी भेंट चढ़ गई। नेता, अधिकारी, प्रापर्टी डीलर, अपराधी के गठजोड़ विकसित हो रहे है। नई नई योजनाएं बनाकर, वैध, अवैध, जायज नाजायज निर्माण का भंयकर गोरख धंधा चल रहा है।
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दिल्ली के अपने जल स्रोत बहुत बढ़िया थे कुएं, बावड़ी, जोहड़, तालाब, झील, हौज़ और यमुना मैया। इन सबको बर्बाद कर दिया गया। कहीं कहीं इनके नामोनिशान, अवशेष, चिन्ह अब भी खोजने पर मिल जाते है। नाम मात्र को कोई कहीं नजर आता है, बचा है तो उसे ढक दिया गया है, बंद कर दिया है, छुपा दिया है, कब्जा कर लिया है। हैंडपम्प, प्याऊ तो पुराने पड गए। नलकूप, बोरिंग, नल, सबमर्सिबल का जमाना है। दबकर, छुपकर धरती माँ के पेट से बेइंतहा पानी खींचो, खाली कर दो जल का प्राकृतिक भंडार। यमुना का सारा पानी और बड़े बड़े पाईपों द्वारा गंगा मैया का पानी दिल्ली के लिए लाया जा रहा है। दिल्ली जैसी राजनैतिक सशक्त नगरी को पानी से कौन वंचित रखने की हिम्मत कर सकता है। दिल्ली के लिए जहाँ से पानी लाया जाता है, उसके किनारे और रास्ते में पड़ने वाले गाँव जाए भाड में। समर्थ को नहीं दोष गौसांई। जिसकी लाठी उसकी भैंस। गरीब की जोरू सबकी भाभी। दबंग की जोरू सबकी दादी।
दिल्ली में आज के राजा, राजघराने, सत्ता, सम्पति, संपदा, धनबल, बड़े आदमी, अधिकारी, नेता, शक्तिशाली, भुजबल, राजनैतिक ताकत वाले बैठे है। लोकतंत्र में भी नागरिक, आम लोग, गाँव में रहने वाला बेचारा ही है। चाहे उसे एक व्यक्ति, एक वोट की ताकत प्राप्त है। इस वोट की ताकत कुछ क्षण ही को दिखती है, जब चुनाव होते है। इसके अलावा आम नागरिक के अधिकार कब, कैसे, कितने, कहां है। भगवान जानें! शक्तिशाली दिल्ली को पानी चाहिए, चाहे कहीं से भी लाया जाएI हिमाचल से भी दिल्ली को पानी मिले।
आज दिल्ली में पानी का बंटवारा, प्रयोग भी बहुत अटपटे ढंग से होता है। पांच सितारा होटल, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, संसद, प्रधानमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक निवास, राजनिवास, प्रदेश निवास, प्रशासनिक अधिकारी, कैबनिट सचिव से नीजे तक, दूतावास, सचिवालय, तरणताल, उद्योग, अव्यवस्था, बदली जीवन शैली, आदि के कारण पानी का खुला, बेझिझक उपयोग, दुरूपयोग करने की छूट प्राप्त है। ऐसे काम बढाए जा रहे है, जिनसे पानी की भारी बर्बादी, उपयोग किया जाता है। दिल्ली में पानी के बंटवारे में भी बड़ी भारी असमानता है। लुटियन की दिल्ली को ज्यादा तथा ग्रामीण दिल्ली को बहुत कम पानी मिलता है। दिल्ली में भी कुछ इलाकों में टैकर से पानी पहुँचाया जाता है। कहीं कहीं पानी के लिए घंटों पक्तिबद्ध रहने को मजबूर है। पानी के जुगाड के लिए तरसते, तडपते, लड़ते, झगड़ते, भागते दौड़ते, चिल्लाते लोगों को देखा जा सकता है। यह है ‘मेरी दिल्ली, मेरी शान, मेरी जान, मेरी पहचान” सरकारी नारें को ठेंगा दिखाती दिल्ली की तस्वीर जनाबे आली।
दिल्ली में जिन्हें आजकल गंदा नाला कहा जाता है, वे ज्यादातर दिल्ली की जीवन रेखा थे। बरसाती पानी के आने जाने की व्यवस्था। दिल्ली को हरा भरा करने, उसे बाढ़ से बचाने के साधन, यमुना को सदा नीरा बनाने के स्रोत, दूर दूर तक जोहड़, तालाब, झीलों को भरने वाले, कितने ही गांवों को पीने का पानी उपलब्ध करने वाले, पानीदार नाले। लुटियन की दिल्ली नहीं, असली दिल्ली जो बहुत बड़ी है, के साथ साथ पसु पक्षी, प्रकृति दुखी है, इन नालों के स्वरूप, रंगरूप बदल जाने सेI यमुना को जिलाने वाले इन नालों को ही यमुना को मारने वालों में शामिल कर दिया गया है। दिल्ली को पानीदार बनाना है तो मर्यादा, मूल्यों का पालन, जीवन शैली बदने की आवश्यकता है। आओ मिलकर लौट चलें।
दिल्ली के चटोरेपन को कभी भुलाया नहीं जा सकता। गली, कुचे, कटरे, छत्ते, मोह्हले, बाजार अलग अलग चीज के लिए मशहूर थे, कहीं कुछ तो कहीं कुछ। एक चीज एक दुकान से लेते, तो दूसरी के लिए किसी दूसरी दुकान, तो तीसरी के लिए किसी रेड्डी, तो चौथी के लिए किसी ठहिये पर जाना होता, यह लम्बा सिलसिला था। जो चीज खानी है वह उपलब्ध तो कई जगह है, मगर चाहिए उसी निश्चित दुकान से जिसका मुकाबला दूसरे नहीं कर सकते।
देशी घी की गर्मागर्म जलेबी, खस्ता बालुशाही, इमरती, तरह तरह के हलवे मूंग की दाल का हलवा, गाजर का हलवा, सोहन हलवा, कराची का हलवा, पिस्ते की लौंज, काजू की कतली, मालपुवा, मावे की बर्फी, नारियल की बर्फी, बेसन की बर्फी, चाकलेट बर्फी, तिरंगी बर्फी, पेडे, पेठा, बूंदी के लड्डू, बेसन के लड्डू, मोतीचूर के लड्डू, तिल के लड्डू, रसगुल्ले, रसभरी, संदेश, रस मलाई, रबड़ी, खुरचन, चमचम, गुल जामुन, कालाजाम, छैना मुरकी, मखाने की खीर, मावा मिश्री, गजक, रेवड़ी, दौलत की चाट, जैसी अनेक मिठाइयां।
हलवा नागोरी, बेडमी, कचोरी, खस्ता कचोरी, मटर कचोरी, दाल कचोरी, समोसे, पूरी सब्जी, बेसन का चीला, मीठा चीला, छोले भटूरे, पनीर भटूरे, मटर कुलचा, तरह तरह के परांठे, सादा परांठा, आलू परांठा, गोभी परांठा, मटर परांठा, पापड़ परांठा, रबड़ी परांठा, खुरचन परांठा, मिक्स परांठा, पनीर परांठा, गुपचुप, लच्छेदार परांठा, परत परांठा, मेवा परांठा आदि, गोल गप्पे, पानी पूरी, गुपचुप, पानी के पतासे, दही भल्ला, दही पापड़ी, दही पकौड़ी, कलमी वडा, आलुकी टिकिया, आलू की चाट, फलों की चाट, बीकानेरी भुजिया, रतलाम की सेव, दाल मोठ, नमक पारे आदि।
इसके साथ कुछ विशेष दुकान होती जिसका सामान विशेष रहता। दरीबे वाले की जलेबी, शाहदरा वाले की बालूशाही, ज्ञानी दी हट्टी का रबड़ी फलूदा, चाईना राम का हलुवा, गोल हट्टी के छोले, पकौड़ी मल की लस्सी, परांठे वाली गली के परांठे, नायर की दुकान एवं मद्रास होटल के डोसे, इडली, सांबर वडा, दही वडा, हौज काजी की मटके की कुल्फी, रेवाड़ी की बर्फी, छबीले के दालमोठ, अंकुरित मूंग, दरियागंज का मीठा पान, नया बांस की कचोरी, गोली वाली सोडा बोतलघंटाघर, चांदनी चौक की चाट, त्यागी की चाय जो रात को ही घंटाघर पर रेहड़ी लगती। दौलत की चाट जो की दूध के झाग से बनती, इसकी अपनी ही नफासत होती, बुढ़िया के बाल, बर्फ की रंग बिरंगी चुस्की, तुली वाली कुल्फी, मटके वाली कुल्फी, कुछ चीजें घूम घूम कर बेचीं जाती और समय विशेष पर ही उपलब्ध होती, जमी हुई कोका कोला की बोतल पच्चीस पैसे में, एक पैसे की छः कचोरी भी खाई।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।