विरासत स्वराज यात्रा
– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
पालीताना: जैन धर्म के प्रतीक ऋषभदेव आदिनाथ महावीर स्वामी भारत की विरासत के उच्च स्तंभ हैं जिन्होंने प्रकृति और मानवता का सम्मान समाज को सिखाया है। इन्होंने प्रकृति के रिश्ते भी संतुलित और मर्यादित किए हैं । यह अलग बात है कि आज उन्हीं को मानने वाले कुछ लोग सबसे ज्यादा खनन कर रहे हैं , पहाड़ों को काट रहे हैं, नदियों को नाला बना रहे हैं । लेकिन इसका मतलब यह कदाचित नहीं है कि महावीर स्वामी दुनिया की विरासत नहीं है। उनके वचन लोगों को, समुदायों को, धर्मों को, जाति को बाँटते नहीं थे, वो तो लोगों को जोड़ने का कार्य करते थे, क्योंकि वो प्रकृति के पंचमहाभूत को मानते थे और उनके रक्षण, संरक्षण, पोषण करना सिखाते थे।
पालीताना को पर्यावरण का बड़ा तीर्थ कहा जा सकता है। यह अभी भी अपनी परम्परा के अनुकूल संरक्षित है। यहाँ तीर्थ क्षेत्र पर ऊपर जाने के लिए सड़के नहीं बनाई गई, बिजली के खंबे, तार नहीं लगाए गए, ऊपर का रास्ता वैसा ही है, जैसा प्रचीन समय में था। इसलिए इनसे हम सीख सकते हैं कि प्रकृति के प्रति प्रेम कैसे करते हैं।
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पालीताना का यह स्थान हमें सिखाता है कि प्रकृति का जितना सम्मान आप करते हैं वो आपके स्वयं के शरीर से ज्यादा करने की जरुरत है। जिस प्रकृति ने हमें बनाया है, उसका रक्षण, संरक्षण, पोषण करने के लिए हमारे मन में व्यवहार और संस्कार जितने ज्यादा गहरे बनते जायेंगे, उतने ही हम इस 21वीं शताब्दी के जलवायु परिवर्तन संकट से मुक्त होते चलेंगे।
आप जानते है कि, इस साल पिछले 6 महिनों में पाँच से ज्यादा तूफान हमारी धरती पर आये है। चाहे वो बाढ़ हो, समुद्र का उफान, सुखाड़ या कोरोना वायरस आदि हो। ये सब तूफान, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों में जन्में प्रकृति के क्रोध हैं।
महावीर इस प्रकृति के क्रोध से मानवता को बचाने के लिए संदेश दे रहे है कि इस प्रकृति के साथ मान-सम्मान, प्यार से जीयो। प्रकृति के साथ जियो और जीने देने का अवसर देते हैं। इसलिए आज महावीर जी के विरासत स्थल से हमें प्रकृति के रक्षण, संरक्षण, पोषण का संदेश लेकर, पूरी दुनिया में जो विरासत है, उसको बचाने का संदेश देना चाहिए। आज यहाँ के गाँव राजस्थली के लोगों ने अपने एक तालाब पर 1008 नए पीपल के पेड़ लगाये हैं और हमेशा हरा-भरा बना रहे, कभी न सूखे इसके लिए धरती के पुनर्भरण के विज्ञान को समझा है। धरती का पुनर्भरण करके मीठे जल से उस धरती को मीठा बनायें रखनें का विज्ञान यहाँ के लोगों ने समझकर, आगे उसे ऐसा बनाकर रखने का संकल्प लिया है।
कल मैं साबरमती आश्रम में था जिसके सामने साबरमती नदी पर विकास के नाम पर किए जा रहे कामों से नदी की आजादी को खत्म किया जा रहा है। उस नदी की आजादी के खात्में पर मुझे मीराबाई की आजादी याद आयी। वो मीराबाई जो महाराणा परिवार की बहु थी, वो कैसे अपनी आजादी से, बिना किसी से डरे, पूरी दुनिया को अपने भगवान के आत्मीक प्रेम संदेश और आध्यात्मक प्रेम से सिखाया। इसलिए वह किसी से भी नहीं डरती थी। किसी भी प्रकार का डर उनके पास नहीं था। जब सच्चा प्रेम होता है, तो उसमें डर नहीं होता। उसमें सिर्फ अनुशासन होता है। तब जीवन में निर्भीकता आती है। जब समाज-व्यक्ति अनुशासित होकर जीता है, तो वो समाज व दुनिया को सिखाने के लायक बन जाता है।
भारत की विरासत , चाहे वो राजनैतिक हो, आध्यात्मिक या सामाजिक विरासत हो, उन सभी विरासतों को 21वीं सदी में एक बार फिर से जानना और समझना है। विरासत को समझना, सहेजना, फिर सहेज कर दूसरों को समझाना और विरासत को बिगाड़ने वालों के खिलाफ सत्याग्रह करना। यह चार कदम भारत की विरासत को पुनर्जीवित करने के हैं ।
* लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद हैं। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।