संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
पानीदार होकर भी विस्थापित होता केन्या
केन्या की जलवायु इसकी अक्षांशीय स्थिति से काफी प्रभावित है। विषुवत रेखा पर स्थित होने के कारण यहाँ विषुवतीय जलवायु पाई जाती है। जिसमें वर्ष भर मौसम बदलता रहता है। इसके अंदरूनी क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा क्रमशः कम होते जाने के कारण यहाँ घास के मैदान और खुले वन का फैलाव है और अधिक शुष्क भागों में कटीली झाड़ियाँ और मरूस्थली वनस्पतियाँ पायी जाती है। लेकिन वर्तमान समय में वनों के तेजी से हो रहे शोषण के कारण बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। केन्या का नवीनकालिक भुगर्भिक परिदृश्य मुख्यतः ज्वालामुखी द्वारा प्रभावित रहा है।
मैं, 21 नवम्बर 2016 से 25 नवम्बर 2016 तक कन्या यात्रा पर गया था। केन्या सरकार ने स्टॉकहोम वाटर वीक की तर्ज पर अपने यहाँ भी केन्या वाटर वीक आयोजित किया था। सुनीला मलिक के बुलावे पर इस बार मैं केन्या गया था। वैसे मैं केन्या की राजधानी नैरोबी बहुत बार जाता रहा हूँ। लेकिन इस बार यहाँ के प्रेसिडेंट द्वारा आयोजित वाटर वीक में जाना बहुत अच्छा रहा। मैं इनके वाटर वीक का उद्घाटन करके फिर केन्या के अतिशुष्क इलाके से जुडे़ हुए इथोपिया और सोमालिया भी जा सका। वहाँ जमीन पर काम करने वाले बहुत सारे कार्यकर्ताओं के बीच सहयोग बन सका। खासकर जल, ज़मीन, जंगल से जुडे़ अफ्रीकन कार्यकर्ताओं से बड़ी संख्या में मिला।
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केन्या में प्रमुख समस्या पर्यावरणीय मुद्दों और चुनौतियों में निर्वनीकरण, जल संसाधन का न्यूनीकरण, मरूस्थलीकरण और औद्योगिक प्रदूषण इत्यादी है। यहाँ के जल की गुणवत्ता में गिरावट एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में उभर रही है। कई झीलों में जल कुम्भी जैसे पौधों का अतिक्रमण, उनके प्राकृतिक पारिस्थतिकी को नष्ट कर रहा है और इन झीलों के मछली उत्पादन तथा जल की सामान्य गुणवत्ता में भी कमी आयी है। नदियों के जल धारण में भी सिकुड़ाव दर्ज किया गया है।
इस मायने में यह यात्रा प्रत्यक्ष कार्यकारी यात्रा रही, जिसमें मैं इथोपिया, सोमालिया, केन्या से उजड़ने के लिए मजबूर लोगों से मिल सका। लोगों के उजड़ने का प्रमुख कारण पानी की कमी है। जिसके कारण खेती, पशुपालन, घरेलू उद्योग व बहुत-सी जगह गरीबों के लिए कुछ करने को नहीं । यह प्रत्यक्ष अहसास और अभास मुझे हो सका, इसलिए मैं इस यात्रा में प्रतिदिन यहाँ के डेजर्ट के गाँवों में जाता था। वहां जाने के लिए मुझे यहाँ के सरकारी संगठनों ने मदद की। यहाँ तीनों देशोंं के वन विभाग व जल-मिट्टी विभाग अधिकारियों ने मिलकर मेरे लिए जरूरी जानकारी हासिल कराई। मैंने इस यात्रा के अंत में डॉ मलिक से लम्बी बात करके आगे का साझा प्लान बनाया। केन्या सरकार और यहाँ की संस्थाओं का मंच दोनों ही हमारे साथ काम करने में बहुत रुचि दिखा रहे थे।
केन्या, सोमालिया में प्रत्यक्ष जमीन पर काम शुरु हुआ है। स्वीडन देश में प्रत्येक वर्ष अगस्त में विश्व जल सप्ताह मनाया जाता है, उसमें भी जाता हूँ। यहाँ पर केन्या विस्थापितों से मिलकर, उनके पुनर्वास और मूल देश में क्या कर रहे है, उसकी कार्य योजना क्रियान्वित करने में सहयोगी होता हूँ। यहाँ मैं अपनी यात्रा के लक्ष्य पूर्ति हेतु साल में तीन-चार बार भी जाता रहता हूँ। मैंने अपनी यात्रा के दौरान स्वीडन की दर्जनों बार यात्रा की है। यहाँ मुझे बहुत सहयोग मिला। इसलिए बार-बार इस देश में जाना हुआ है। यहाँ मैंने गाँवों, विश्वविद्यालयों, नदियों-नालों और झीलों की बहुत व्यापक शिक्षण यात्राएँ आयोजित की है। इस देश के नेताओं की आँखों में अभी पानी दिखता है। इसीलिए ये पानी हेतु अधिक संवेदनशील नज़र आते हैं।
केन्या के मेरे साथी फिलिफ मुनसिया बहुत सारी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इनका केन्या प्रोजेक्ट सामुदायिक संगठन युवाओं के साथ काम करता है। जवानों की बेरोजगारी के संकट एवं सामाजिक बुराइयों से मुक्ति हेतु सोमालिया के लोगों से मिलकर युवाओं को अपने जीवन का रास्ता बताना है। सम्भावनाएँ तलाशना, बायो गैस सिस्टम बनाना, पेड़ लगाना इनका शौक है। पहले यह आंतकवादियों के संगठनों से जुड़े रहे थे, लेकिन अब अहिंसा के रास्ते पर चलने हेतु तैयार हैं। जीवन में करके सीखते और सिखाते हैं। दुनिया के साथ अपने को जोड़ना और खेती करना सिखाते हैं। खेती में इन्हें सफलताएँ मिल रही हैं। वह सभी को, खासकर आदिवासियों को, हक दिलाकर पढ़ना-लिखना सिखाते हैं। इन्होंने अभी तक चार तालाब बनाये है। समुदायों में विश्वास पैदा करना है।इन्होंने मुझसे वर्षा जल संग्रह सीखा और मैंने उन्हें इसका तरीका सिखाते हुए जल के पुन:भरण पर भी जोर दिया है।
यह कहते हैं कि हम स्थायी समुदाय से स्वावलम्बन सिखा सकते हैं। इको विलेज केन्या में सिखा रहे हैं। केन्या में ऐसा काम करने वालों का नेटवर्क बनाना है। पर्माकल्चर से सीख रहे हैं । केन्या को ईस्ट अफ्रिकन देशों के लिए प्रशिक्षण केन्द्र बना रहे हैं।
केन्या में नया शिक्षण परिवर्तन हो रहा है। अपने आपको समझकर काम करना होगा। दूसरों से सीखने-करने का काम शुरू हुआ है। अब कुछ ऊपर के अच्छे काम करने की साझी जिम्मेदारी है। सभी मिलकर ही परिवर्तन कर सकते हैं। स्कूल से ही सब कुछ नहीं होगा। अच्छा व्यावहारिक काम करने वालों को जोड़कर एक मंच निर्माण करके साझे काम में लगना है। साझे प्रयासों की कोशिश कर रहा हूँ।
निजी कम्पनियों सभी लोगों से पानी छीन कर पानी का बाजार बना रही हैं। इसे रोकने के लिए सरकारों को पहल लेनी होगी। इसलिए नई प्रकृति प्रेम की चेतना जगाना ही मेरा काम है। प्रकृति से प्रेम करना-सम्मान करना है।। समग्रता से कैसे सीखें? यही अब फिलिप ने हम सबसे सीखा है। उसने अब हिंसा छोड़कर अहिंसामय जीवन बनाने का अपना संकल्प बताया है।
नदी मरेगी तो हम भी मरेंगे। मानवता ही नहीं बचेगी। अब हमें रसायन से बचाना है। प्रदूषण मुक्त नदी बहे। नदी को जीवन मानकर काम करूँगा। खाद्य सुरक्षा एवं शांति के लिए काम करना है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।