श्रद्धांजलि: सुन्दरलाल बहुगुणा ( 9-1-1927 – 21-5-2021)
– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
भारत में पर्यावरण चेतना अभियान के जनक श्री सुन्दरलाल बहुगुणा जी का आज 21 मई 2021 को, 12 बजकर 30 मिनट पर उनका शरीर आत्मा से अलग हुआ। इन्होंने हिमालय की बहिनों की पर्यावरण चेतना को चिपको आंदोलन के रूप में दुनिया को बताया। पहाड़ की बहिनें अपने मायके के जंगल को बचाने हेतु पेड़ों से चिपक कर डरे बिना जंगल बचाने में सफल हुई। उन्होंने इस प्रेरक आंदोलन को साझे भविष्य को सुधारने की चिंता कहकर दुनिया में प्रचारित-प्रसारित किया था। इसी आंदोलन में लगी बहिनों को मार्गदर्शन देकर संगठित होकर दुनिया को जंगल बचाने का तरीका दिखा दिया था।
1980 के अंत और 1990 के आरंभ में मैंने उनके साथ मिलकर कई काम किये थे। वे विमला जी के साथ सादगी से रहकर सरलता से बड़े-बड़े काम करवा लेते थे। उनके गंगा जी की अविरलता हेतु टिहरी बांध रुकवाने वाले गंगा सत्याग्रह में उनकी हिमालय कुटी में मिलने उस समय के भारत के प्रधानमंत्री श्री वी.पी. सिंह जी स्वयं आये थे। मैं भी उस दिन अपनी गलता-गंगोत्री यात्रियों के साथियों के साथ वहाँ पर उनके साथ ही उपस्थित था। वे बहुत कम बोलते थे। जो बोलते थे, वही करते थे। आज के नेताओं जैसी कथनी-करनी में अंतर नहीं होता था।
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9 जनवरी 1927 को उत्तराखंड़ के मरोड़ गांव में विमला नोटियाल ने सुन्दर लाल बहुगुणा जी को जन्म दिया। इनके पिता श्री अम्बादत बहुगुणा जी ने इन्हें लाहौर में उच्च शिक्षा पाने के लिए भेजा था। 1949 में वहाँ से वापस लौटकर मीरा बहिन और ठक्कर बाप्पा से प्रेरित होकर उत्तराखंड में शराब बंदी सत्याग्रह शुरू किया। 1971 में महात्मा गाँधी और विनोवा भावे से प्रेरित होकर 16 दिन का उपवास किया था।
1980 में टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। 1981-83 तब कश्मीर से कोहिमा तक पद यात्रा करके, प्रकृति को बचाने हेतु भारत में चेतना जगायी थी। श्री बहुगुणा जी और इनकी पत्नी सादगी की जीवित मूर्ति है। आज भी इनसे प्रेरणा लेकर काम करने वालों की बहुत बड़ी सूची शेष है।
मैंने 5 जून 1995 में गलता से गंगोत्री 40 दिन तक उनके साथ यात्रा आयोजित की थी। इस यात्रा के नियम और अनुशासन जब हम दोनों तय कर रहे थे। तब यात्रा में चावल नहीं खाना तय किया था। गलती से एक दिन चावल बन गए, तो देखकर हंसकर बोले, पानी बचाने का काम करने वाले चावल खाऐंगे! मालूम है, 2200 लीटर जल एक किलो चावल उत्पादन पर खर्च होता है। राजस्थान चावल पैदा नहीं करता है और खाना भी नहीं चाहिए।बहुगुणा जी दिखावटी भीड़ को पसंद नहीं करते थे। सच्चा काम करने वालों को अत्यंत प्यार और सम्मान करते थे। उन्होंने जीवन भर प्रकृति के हर अच्छे काम को आगे बढ़ाया है।
28 मार्च 2021 को जब मैंने उनके घर जाकर बताया की हम गंगा की अविरलता हेतु बांध और खनन रूकवाने के काम में जुटे है। उन्हें यह सब पहले से ज्ञात था। प्रो. जी.डी. अग्रवाल स्वामी सानंद ने गंगा हेतु प्राणों का बलिदान किया है। यह भी उनको मालूम था। मैंने बताया इसी गंगा अविरलता हेतु स्वामी निगमानंद जी ने भी बलिदान किया है। स्वामी शिवानंद ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद व साध्वी पद्मावती भी गंगा अविरलता-निर्मलता हेतु बांध और खनन रुकवाने में जुटे हैं। आपका साथ चाहिए। उन्होंने कहा साथ हूँ। बोले सरकार पर भरोसा नहीं है। ये धोखा देती है। हम जो कर सकते है, करते रहे। साथ में बहुगुणा जी ने यह बात कहकर साथ ही गीत गाया ‘पेड़ों और नदियों को बचाने हेतु हम सभी एक हो’ हम उनका गीत सुनकर आनंदित और ऊर्जावान बनकर ही उनके घर से लौटे। तब नही लग रहा था कि वे 100 वर्ष की उम्र पूरी किये बिना ही चले जायेंगे। ये उच्च संत हैं।
कलयुग में प्रकृति और पर्यावरण संरक्षक है। प्राकृतिक मित्र तो अपना आयु का काल पूरा ही करते है। उन्हें कोविड ने आज हमारे से अलग कर दिया है। यह बेहद दुखद है। श्री सुन्दरलाल बहुगुणा जी जैसे प्रेरक ऊर्जा देने वाले अब बहुत कम बचे हैं। उनकी आत्मिक प्रेरणा हमारे देश के युवाओं को प्रेरित करती रहेगी। आज हम उनको श्रद्धांजलि देते हुए संकल्पित होते है कि हम हिमालय की हरियाली और गंगा की पवित्रता, अविरलता-निर्मलता के लिए सतत् लगे रहेंगे, जब तक हम जीवित है। श्री सुन्दरलाल बहुगुणा जी के काम को रूकने नही देंगे।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं।