वाराणसी में गंगा आरती
[the_ad_placement id=”adsense-in-feed”]
गंगा आंदोलन
‘‘गंगत्व‘‘ दुनिया का सबसे बड़ा तीर्थ है।
– डॉ. राजेन्द्र सिंह
[the_ad_placement id=”content-placement-after-3rd-paragraph”]
माँ गंगा जी पूरी दुनिया में सबसे बड़ा तीर्थ है। करोडों लोगों के आस्था का केन्द्र अपने ‘‘गंगत्व‘‘ जल के विशिष्ट गुणों के कारण सदियों से विश्वास, आस्था, निष्ठा, भक्ति भाव बना रहा है। यह विशिष्ट गुण मानवीय 17 तरह रोगाणुओं को नष्ट करने की शक्ति रखता है। इसलिए भारतीयों की अंतिम इच्छा गंगा जल की दो बूंद को अपने कंठ में पाने की रहती है। इसी गुण को गंगत्व ‘‘ बायोफॉज‘‘ भी कहते है, यही ब्रह्मसत्व है।
भारत इस गंगत्व को बचाने में असफल क्यों हो रहा है? इसमें बांधाएं क्या-क्या है? यह जानने और समझना प्रत्येक भारतीय की इच्छा है। गंगत्व, गंगा की अविरलता से निर्मित होता है। अविरला के विरुद्ध उद्योगपतियों, ठेकेदारों, नेताओं अधिकारियों ने वातावरण निर्माण कर दिया है।
Also read: Full independence of India will remain a distant dream without free-flowing Ganga
यह भी पढ़ें: मां को हृदयरोग की बीमारी है, दांतों के डॉक्टर से इलाज मत करवाओ
गंगत्व गंगा जल का वह विशिष्ट गुण है, जो मानव आरोग्य के संरक्षक जीवाणुओं को बचाता है। यह रोगाणुओं को नष्ट करने की विशिष्ट विलक्षण शक्ति रखता है; जिसे अंग्रेजी में ‘बायोफाज’ तथा संस्कृत में ‘ब्रह्मसत्व’ कहते हैं। इसका निर्माण हिमालय की वनस्पतियों एवं खनिजों से होता है। बाँधों से गंगत्व नष्ट होता है। गंगत्व हिमालय की खनिज सफेद भवभूति से होता है। यह सिल्ट के रूप में जल में घुलकर गंगाजल के साथ हिमालय से समुद्र तक जाता था। उस समय पूरी गंगा जी का जल अविरल-निर्मल था। बाँध बनने पर यह सिल्ट नीचे बैठ जाती है। बँधे जल के ऊपर हरी नीली रंग की काई (अल्गी) बन जाती है, जिससे गंगाजल दूषित होकर अपने विशिष्ट गुणों को खो देता है। गंगाजल के विशिष्ट गुण के कारण ही भारतीय अपने अन्तिम साँस के समय इसकी दो बून्द कष्ट में चाहता था।गंगा आस्था अन्धविश्वास नहीं, विज्ञान था। यही आज अन्धविश्वास बन गया है। जब तक गंगाजल में विशिष्ट गुण प्रवाहित होता था, तब तक गंगाजल का सभी कर्मकांड लोक विज्ञानी समझ से होता था। बाँधों से ऊपर बने गंगाजल से जो होता है, वह तो आज भी सत्य है; लेकिन बाँधों के नीचे जो करोड़ों-लाखों की भीड़ सिर्फ़ स्नान कर रही है, वह आज गंगा स्नान नहीं, कर्मकाण्ड और अन्धविश्वास है। इसे सच में बदलना है। पुराने बाँध हटाओ, बन रहे बाँधों को रोको, नये बाँध मत बनाओ। ऐसा जो करने के लिए तैयार है, उसी नेता को संसद् में भेजो। कह कर भी जो नेता वैसा नहीं करता है, तो उसे पकड़ा जा सकता है, उसके विरुद्ध आवाज उठाई जा सकती है। इससे गंगा सत्य बचाने का रास्ता खुलेगा, अन्धविश्वास मिटेगा, विज्ञान और सत्य स्थापित होगा। अब गंगा जी के सत्य स्थापित करने का अवसर है।
गंगा को अविरल-निर्मल बनाने हेतु स्वामी निगमानन्द, स्वामी नागनाथ, स्वामी ज्ञानस्वरूप सानन्द (प्रोफेसर जी.डी. अग्रवाल) ने गंगा सत्याग्रह करके अपने प्राणों का बलिदान दिया है। स्वामी गोपाल दास परिपूर्णानन्द, गोकुल दास का अपहरण करके हत्या कर दी गई, क्योंकि ये गंगा जी के लिए सत्याग्रह (अनशन) कार्य में संघर्षरत थे और इनके संघर्ष से जिन को हानि होनी थी, उन्होंने इनका अपहरण कर दिया। गंगा जी की अविरलता की लड़ाई में स्वामी शिवानन्द सरस्वती, स्वामी दयानन्द मातृ-सदन के सभी स्वामियों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस संघर्ष में रवि चौपड़ा, राशिद हयात सिद्दीक़ी, भरत-मधु झुनझुनवाला, हेमन्त ध्यानी, विमल भाई, पूर्णिमा, समर्पिता, माँ आनन्दमयी आदि ने भी साथ दिया। सभी नामों का विवरण देना सम्भव नहीं। गंगा लड़ाई में हजारों लाखों लोगों का साथ मिला है। अब तो मेधा बहन व सन्दीप पाण्डे ने भी गंगा जी के लिए कुछ अच्छा काम आरम्भ कर दिया है।
गंगा के लिए लाखों-करोड़ों लोग हैं, ये सभी संगठित हो जाएँ तो गंगा जी को पुनर्जीवित करने का काम सम्भव है। अभी तक गंगा नवीनीकरण काम हुआ है, नवीन तो पूर्ण होने से पहले ही पुराना हो जाता है। गंगा जी के साथ अभी तक ऐसा ही हुआ। माँ गंगा जी को पुनर्जीवन चाहिए, यह अविरलता से ही सम्भव है। सरकार अविरलता की बात नहीं करना चाहती, जबकि अविरलता से निर्मलता आएगी। यह बात बहुत बार बोली गई है, फिर भी सरकार कम्पनियों के दबाव में आकर गंगा जी की अविरलता का काम करने को तैयार नहीं है। वैसे लोगों को हम भी सरकार बनाने लायक ना बनाएं अब लोक शक्ति को जगने और खड़ा होने का समय है। गंगा जी के लिए खड़े हों। ‘गंगा जी की जंग में, हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सब संग में’ इस नारे से हमें गंगा जी के स्वास्थ्य और हमारे स्वास्थ्य सम्बन्धों को जोड़ कर देखने का अवसर मिलता है। इस अवसर को मत चूको।
गंगा, आयुर्वेद और आरोग्य विज्ञान से हमारे आरोग्य और अर्थ रक्षण करने वाली सभी सभ्यताओं और संस्कृतियों से जोड़ने वाला प्रवाह है। यह प्रवाह जब तक आजादी से प्रवाहित हुआ, तब तक इसने सभी धर्मों का सम्मान करके शान्ति सद्भावना कायम रखी। इस प्रवाह से सभी को प्यार, ज्ञान, अध्यात्म सभी कुछ मिलता रहा है। जब से इसे बाँधा है, तभी से इसे धर्मों में भी जकड़ना आरम्भ किया; लेकिन माँ तो माँ होती है। वह सबको बराबर प्यार करके जिन्दा रखती है। गंगा जी को बाँध कर बेटे ने ही माँ को मारा है। अब माँ ने माँ को बाँधने वाला बेटा बुला लिया है। इसलिए माँ बँध कर मर रही है। जो जिन्दा रखने के लिए तैयार होते हैं, उन्हें बड़ा बेटा मरवा रहा है। हम अहिंसक, सत्य निष्ठ, भयमुक्त होकर गंगा जी को अविरलता के लिए बलिदान देते रहे हैं। जीवित रहकर गंगा के लिए काम करना ही सबसे बड़ा बलिदान है।
मई के अन्त और जून के शुभारम्भ पर हमें हिमालय के पंच प्रयागों को बचाने वाली यात्रा भी करनी है। गंगा जी को अब लोक राजनीति से ही बचा सकते हैं। यह लोक राजनीति के लिए सर्वश्रेष्ठ समय है। इस हेतु सभी अपनी निजी पहचान भूलकर एकाकर संगठित होकर लोक राजनीति में जुटें। गंगत्व बचाने का काम लोकतन्त्र में लोक राजनीति से ही सम्भव है। राजतन्त्र में राजा भगीरथ भी गंगा को लोक कल्याण हेतु लाए थे। अब लोक को ही गंगा जी को नीचे लाने का काम करना होगा। गंगा जी को पूर्व काल में हिमालय के जंगलों-पहाड़ों से निकाल कर लाए थे, अब तो केवल बाँधों का काम रोककर और पुराने से रास्ता बना कर नीचे हरिद्वार, बिजनौर, हस्तिनापुर, गढ़मुक्तेश्वर, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, साहबगंज व कोलकाता की जनता को गंगा जल देने के लिए नीचे लाना है। अभी गंगाजल नहीं, गन्दा जल ही आता है। लोक राजनीति गंगाजल को नीचे लेकर आए, ऐसी रचना करनी होगी। शुरुआत अच्छी है, सफलता मिलेगी। भेदभाव भूलकर एक हो कर काम करें। हम जितना भी कर सकते हैं, उतना तो करें; आगे जो होगा, अच्छा होगा।
गंगा स्वस्थ भारत का स्वास्थ्य है, दोनों का बचना जरूरी है। दोनों को बचाने में धर्म, जाति कोई भी आड़े नहीं आता। आड़े लाने वाले रोड़े हैं, वे पहिए के दबाव से अपने आप छिटक जाएँगे। हम उन्हें भी पीसना नहीं चाहते, वे भी बचे रहें तो उन्हें भी गंगत्व समझ में आएगा। वे भी लोक राजनीति के साथ जुड़ जाएँगे। यही गंगा लोग राजनीति है, इसी से काम करें। प्राकृतिक पुनर्जीवन हेतु परिवर्तन जरूरी है। परिवर्तन ही पुनर्जीवन का आधार होता है। विकास तो विस्थापन करता है, यही विनाश है। इस विनाश को रोकने हेतु परिवर्तन करके पुनर्जीवन कर सकते हैं। भौतिक विज्ञान व तकनीक समाधान नहीं है, ये शोषण करते हैं।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।
[the_ad_placement id=”sidebar-feed”]