[the_ad_placement id=”adsense-in-feed”]
टिपण्णी
– कुमार अमिताभ*
बड़े पैमाने पर औद्योगिक व व्यापारिक क्षेत्र को वित्तीय सहायता की जरूरत महसूस की जा रही है। बैंक कर्ज के मामले में सैकड़ों घोटाले, अनियंत्रित भ्रष्टाचार के साथ बैंकों व अधिकारियों के अड़ियल रवैये की वजह से यह बेहद जटिल प्रक्रिया हो चुकी है। इन सबसे निपटने के लिए जितने ज्यादा और सख्त कानून नियम प्रक्रियायें बनी, उतना ही ज्यादा भ्रष्टाचार बढ़ा। सो इन प्रक्रियाओं को सरल, सहज, आपसी भरोसे, परस्पर निगरानी, दुरुपयोग रहित एवं सामुदायिक जिम्मेदारी युक्त प्रावधानों के साथ तय करने से निश्चित बेहतरी आएगी।
इस लिहाज से “स्वयं सहायता समूह”, जिसे अंग्रेजी तर्ज पर सेल्फ हेल्प ग्रुप वाला एसएचजी कहा जाता है, के अनुभव बहुत कारगर पाए गए हैं। ग्रामीण, आदिवासी, अर्द्धशहरी या शहरी क्षेत्र हर जगह ऐसे समूह को किसी भी कार्य हेतु दी गई सहायता राशि लगभग शत-प्रतिशत वापस आई है। हर समूह के सभी सदस्य आपस में ही एक दूसरे का न केवल ख्याल रखते हैं, एक दूसरे पर नजर भी रखते हैं। एक खाते में एक जगह पैसा होने से जरूरत के हिसाब से कुछ कुछ सदस्य उचित समय पर लेन देन करते हैं। चूंकि सब आसपास एक दूसरे को जानने वाले हमेशा सामने रहने वाले होते हैं तो एक तरह का सामाजिक सामुदायिक दबाव, नैतिकता व मूल्यों का ख्याल अपनेआप ज्यादा होता है। आमतौर पर व्यक्ति अपने नजदीकी दायरे कुछ भी अनुचित आपत्तिजनक करने से बचता है ताकि समाज में पूछ बनी रहे, लोग घृणा न करने लगें।
[the_ad_placement id=”content-placement-after-3rd-paragraph”]
बहरहाल, अतिरिक्त विवेचन मात्र इस व्यवस्था की विश्वसनीयता के प्रति आश्वस्त करने हेतु था। सरकार को चाहिए कि सहज सरल आनलाईन ऋण व्यवस्था का ढांचा तैयार करे। इसके तहत कुछ विशेष विधियां हों। पहला कि यह एक स्वयं सहायता समूह को ही मिलेगा। इसमें किसी बैंक कर्मी का सीधे कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। आनलाईन सारी प्रक्रिया होगी। पांच से पच्चीस उद्यमियों का समूह स्वीकृत होगा। सबके पैन कार्ड, डिन, आधार कार्ड, कंपनी पंजीकरण आदि सामान्य कागज जमा हों। रिटर्न, टर्नओवर आदि उपलब्ध हों तो जमा हो, अनिवार्य न हो। उस समूह का एक सामूहिक सरकारी खाता खोल उसमें ऋण की रकम डाल दी जाए। वह समूह आपस में एक दूसरे की जरूरतों के अनुपात में जब जिसको जितनी रकम की जरूरत हो उसका लेनदेन करता रहेगा। हर महीने जितनी रकम निकली, उसके किस्त का आकलन कर सदस्य देनदारी तय कर देंगे।
स्वयं सेवा समूह में इस तरह के ऋण की व्यवस्था काफी कारगर रही है। अपने करीबी लोगों के बीच सबके सामने और सबकी सामूहिक जिम्मेवारी से जो भाव पैदा होता है वह सामाजिक दबाव भी निर्मित करता है। यह उस व्यक्तिगत किसी बैंक से लिए ऋण के मुकाबले ज्यादा प्रभावी होता है और धोखाधड़ी की हरकतों पर काबू रखता है। इससे बैंक पैसा डूबने का खतरा न्यूनतम रह जाता है। क्योंकि पूरा समूह काली सूची में जाना नहीं चाहेगा और सभी मिलकर पैसा वापस ले आएंगे।
इस व्यवस्था में सरकार प्रोत्साहन की व्यवस्था भी रखें। मसलन कोई समूह पहले साल पांच या दस करोड़ का ऋण पाता है। अगर वह समूह उसका बेहतर उपयोग करने के साथ रकम वापसी की प्रक्रिया भी नियमित और पूरी रखता है तो दो साल बाद उनके ऋण खाते में सरकार दुगुनी रकम डाल देगी। जिससे वह ज्यादा बिजनेस कर पाने में सक्षम होंगे। एक तरह से सरकार का पैसा इस्तेमाल होने के साथ सुरक्षित भी रहेगा। ब्याज से जो आ रहा, वह अलग होगा। यह एक सतत उपलब्ध सुरक्षित कोष की तरह होगा, जिसका जरूरत पर बेझिझक उपयोग करने की छूट होगी मगर काम पूरा होने के साथ साथ ब्याज सहित वापस खाते में जमा करना तय होगा। व्यापारियों, उद्यमियों को अनावश्यक सरकारी कार्यालयों के चक्कर नहीं लगाने होंगे और बाबुओं की चम्पी से मुक्ति मिलेगी तो एक नया आत्मविश्वास जगेगा।
इसी के साथ निर्धारित मानदंडों के अनुरूप लेकिन बेहद लचीला परियोजना प्रस्ताव प्रारूप हर तरह के उद्यम, उद्योग, धंधे, व्यापार का एकदम सरल रूप में बनाकर साथ में दो चार भरे हुए फार्म उदाहरण रूप में नत्थी कर वेबसाइट पर रख दें। ताकि कोई भी सहजता से उसे हासिल कर सके, कैसे भरना है, समझ सके और अपनी जरूरत व योजना के हिसाब से भरकर ऋण हेतु जमा कर सके। जटिल अनावश्यक विवरणों और बहुअर्थी किस्म के प्रश्नों कालमों से युक्त फार्म कतई सहायक नहीं होते। उल्टे दलालों की मुफ्त कमाई का रास्ता बन जाता है। वह भी ज्यादातर फर्जी तरीके से औपचारिकताओं को पूरा करने में माहिर होते हैं। सो उन प्रावधानों का उद्देश्य ही खत्म हो जाता है। जब झूठे आंकड़े भरे जाएंगे तो कोई लाभ नहीं। वैसे भी इस तरह के जबरदस्ती के दलाली वाले मुफ्तखोर कामधंधो को खत्म करने की जरूरत है। मेहनत कर कमाने वाले काम धंधों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इस तरह के काम धंधे बेईमानी को तो प्रश्रय देते ही हैं, व्यर्थ का एक रक्तचूसक परजीवी वर्ग खड़ा कर देते हैं। जो मुफ्त का पैसा कमाने की वजह से पैसे के दुरूपयोग, ऐय्याशी, बदमिजाजी में रम जाते हैं। जिसका पूरे समाज पर बुरा असर पड़ता है।
हमें एक सर्वसमर्थ मेहनतकश स्वावलंबी समाज की रचना करनी है जो परस्पर विश्वास के आधार पर टिका हो। व्यर्थ के सरकारी बाबुओं के हस्तक्षेप के बजाय आम नागरिकों के समान रूचि / वर्ग वाले समूहों की रचना कर उन्हें हर तरह की आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध करा स्वतंत्र कार्य करने हेतु इजाजत देनी चाहिए। स्वयं ही परीक्षण-निरीक्षण-सर्वेक्षण का जिम्मा देना चाहिए। चूंकि छोटे-छोटे समूह होंगे और सभी का सामूहिक जिम्मा होगा तो नुकसान का असर सरकार या बैंक तक नहीं पहुंचेगा। चूंकि सबके भविष्य का सवाल होगा तो उनके समूह में एकाध गलत आदमी घुस भी गया तो वह स्वयं निपट लेंगे। या तो वह सुधर जाएगा या बाहर हो जाएगा। इन समूहों के अलग से पंजीकरण, प्रमाणीकरण, ढेरों निजी पैसालूटो संस्थाओं से आदर्श व्यवस्था प्रमाणपत्रण जैसे फिरंगी ढकोसलों से भी दूर रहने की जरूरत है। उन सबका कोई फायदा नहीं होता। अंततः यह सब पैसे पर खेलने लगते हैं। जब हर समूह के हर सदस्य का आधार और पैन का विवरण सरकार को मिल गया तो जरुरत पड़ने पर कार्रवाई के लिए यही काफी हैं, कोई बच नहीं सकता है।
कार्यालय, उद्योग, व्यापार केंद्रों में सफाई, उचित सुविधाएं, सुरक्षा, अच्छा व्यवहार आदि बनाए रखा जाए, इसके लिए व्यापक जागरूकता की जरूरत है। इंस्पेक्टर रखने से वही लूटपाट और फर्जीवाड़ा शुरू हो जाता है। जांचकर्ता ही चोरी के तरीके समझाने लगता है। वैसे भी अब जब हम विश्वास आधारित समाज बनाने की दिशा में बढ़ रहे हैं तो गुलामी के दिनों वाले और फिरंगी तौर तरीकों से दूर सहज परस्पर भरोसे वाली व्यवस्था निर्माण की जरूरत है।
इस प्रकार से सुविधा दिए जाने पर मध्यम, लघु व सूक्ष्म श्रेणी के उद्यमों को पैर जमाने में आसानी होगी। एक सामूहिकता का बोध भी मजबूती प्रदान करेगा। मिलजुल कर काम करने से बेहतर संबंधों का विकास होगा। कई व्यर्थ के खर्च भी कम होंगे। बड़े काम उठाने में भी नहीं हिचकेंगे। उत्पादन बढ़ाने में भी सहूलियत होगी। खासकर पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में मध्यम, लघु व सूक्ष्म उद्योग ही इंजन बन कर लक्ष्य हासिल करने में मदद करेंगे। स्वावलंबी आत्मनिर्भर भारत के रूप में हमें स्थापित होने में भी मदद मिलेगी।
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार है। यहाँ प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।
[the_ad_placement id=”sidebar-feed”]