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1 thought on “आज के धर्म संगठन मतवादी बनकर, सत्य को अस्वीकार कर रहे हैं

  1. सहिष्णु, समभावपूर्ण और समन्वयवादी हिन्दू दृष्टिकोण का निश्चय ही कोई अन्य विकल्प नहीं। किंतु एक ऐसे विश्व में जहाँ अन्य धर्मावलम्बी धर्म को एक आध्यत्मिक अनुभव के स्थान पर एक दमनकारी, आक्रांता, राजनैतिक विस्तारवाद के अस्त्र के रूप में सतत प्रयोग करते आ रहे हों वहाँ गाँधी के विचारों की जगह कृष्ण का कर्मयोग और राम का पौरुष सम्भवतः ज्यादा प्रभावकारी जीवन दर्शन प्रतीत होता है। फिर काल, पात्र और स्थान के साथ धर्म की अवधारणा भी तो बदलती है। जिसे कुछ लोग ‘हिंदुत्व’ कह कर तिरस्कृत करने का प्रयास करते हैं वे सम्भवतः यह भूल रहे हैं कि वो ही आज का युगधर्म है। यही कर्मयोग है। हम शायद इसे इस दृष्टिकोण से भी समझने का प्रयास कर सकते है। वैसे आपके विचार बहुत सारगर्भित और प्रेरक हैं। सादर प्रणाम

    प्रोफ़ेसर मिहिर भोले
    अहमदाबाद

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