विवाद
– कौशल किशोर
शरदोत्सव पर मिथिला के मुख्यालय दरभंगा को पटना, दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे महानगरों से जोड़ने हेतु हवाई यात्रा सेवा शुरु करने से विकास के नए अध्याय की शुरुआत हुई है। इसके साथ ही नौ दशक पहले शहर के बाहर बनाये गये हवाई अड्डे का व्यवसायिक इस्तेमाल भी होने लगा है। स्पाइस जेट और इंडिगो जैसी प्राइवेट सेक्टर की विमानन कंपनी इसके विस्तार से उत्साहित है। उड़े देश का आम नागरिक (उड़ान) योजना के तहत देश के विभिन्न हिस्सों को हवाई यात्रा से जोड़ने का काम व्यापक स्तर पर चल रहा है। दो साल पहले ही 24 दिसंबर को सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तत्कालीन उड्डयन मंत्री सुरेश प्रभु और जयंत सिन्हा के साथ दरभंगा पहुंचे थे। उस दिन केन्द्र सरकार के ही प्रतिनिधि इस हवाई अड्डे का नामकरण महाकवि विद्यापति के नाम पर करने का प्रस्ताव रखते हैं। फिर नीतीश कुमार का समर्थन भी खूब मिला। वस्तुस्थिति के अवलोकन से विमान पत्तन और विमानन सेवा से जुड़े विकास कार्यों की राह में श्रेय और नामकरण की राजनीति हावी दिखती है।
विकास के मानचित्र पर पिछड़े बिहार के पटना, गया और दरभंगा में लंबे अर्से से विमान पत्तन मौजूद है। आजादी से पहले ही दरभंगा में सुव्यवस्थित हवाई अड्डे का इतिहास है। खांडवाला राजवंश के अंतिम शासक ने अपनी फ्लीट में वायुयानों को शामिल करने से पहले ही इसका निर्माण कराया था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कुमारों के यज्ञोपवीत संस्कार में शामिल हुए नेताओं की शान में इसका विस्तार भी किया गया। राज दरभंगा के विमानों का दूसरे विश्व युद्ध में हुए प्रयोग के प्रमाण हैं। आजादी के बाद 1950 में तीन डगलस डीसी3 विमानों से शुरु हुई दरभंगा एविएशन कंपनी का मुख्यालय कोलकाता में बनाया गया। इसकी सेवा लेने वालों में देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद का नाम भी है। हालांकि बारह साल बाद इसे बंद कर दिया गया था। उसी दौर में चीन व भारत के बीच हुए जंग के दौरान यह हवाई अड्डा भारतीय वायु सेना को सौंप दिया गया। बहरहाल वायु सेना और एयरपोर्ट ऑथोरिटी ऑफ इंडिया के बीच हुए सीमित समय के करार के तहत नागरिक सेवा शुरु किया गया है। इस व्यवस्था के तहत नागरिक सुविधा विकसित करने के लिए इकत्तीस एकड़ जमीन चाहिए, जिसके लिए एक सौ इक्कीस करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया था। दो सालों बाद भी यह कार्य पूरा नहीं हो सका है। बिहार विधान सभा के पिछले चुनाव के कारण सरकार ने निजी क्षेत्र की विमानन कंपनियों की मदद से सेवा शुरु करने में सफलता अवश्य प्राप्त किया है। इससे जुड़ी वास्तविक समस्याओं को दूर किये बगैर लंबे समय तक हवाई यात्रा सेवा जारी रखने के दावों की पोल खुल सकती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फ्लैगशिप स्कीम उड़ान के तहत पांच साल पहले इसकी चर्चा शुरु हुई थी। दरभंगा के पूर्व सांसद कीर्ति झा आजाद की अध्यक्षता में बिहार के बाइस सांसदों ने इसके लिए प्रधानमंत्री से मुलाकात किया। महाकवि विद्यापति के नाम पर दरभंगा विमान पत्तन का नामकरण करने की बात तत्कालीन उड्डयन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा रखते हैं। मिथिला के लोगों की भावनाओं का सम्मान करने के लिए सूबे के मुख्यमंत्री खुल कर इसके समर्थन में खड़े हो गए। महाराजा कामेश्वर सिंह की इस कृति को कवि कोकिल को समर्पित करने की इस घोषणा के अपने ही राजनीतिक निहितार्थ हैं। इस मामले में दरभंगा राज के प्रवक्ता कपिलेश्वर सिंह और कल्याणी ट्रस्ट द्वारा सरकार से इसका नामकरण महाराजा कामेश्वर सिंह के नाम पर करने का निवेदन किया गया है। निश्चय ही इस टेक्नॉलजी इंटरप्रेन्यरशिप में उनकी भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। परंतु नामकरण के नाम पर विमान पत्तन के विकास का कार्य महाराजा बनाम महाकवि के द्वंद में उलझे, यह भी उचित नहीं है।
सड़क परिवहन को व्यवस्थित करने के लिए दरभंगा बस अड्डा को शहर के बाहर हवाई अड्डा के निकट ही स्थानांतरित किया गया था। राज्य सरकार इस जमीन को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया को सौंप कर करार की अवधि पूरा होने से पहले शेष कार्य संपन्न करे तो अच्छा होगा। साथ ही बस अड्डा के लिए अन्यत्र उपयुक्त स्थान खोजना चाहिए। इसके अतिरिक्त इस मामले में लोगों की दिलचस्पी इस बात में भी है कि खांडवाला वंश की नई पीढ़ी ने इसी बहाने मिथिला की ओर रुख किया है। इस वंश के ब्राह्मणों ने न केवल चार सौ सालों तक मिथिला पर राज्य किया, बल्कि कई तरह के उद्योगों में भी बराबर योगदान दिया था। इसके आखिरी शासक कामेश्वर सिंह तो जूट मिल से लेकर विमानन सेवा तक एक दर्जन से ज्यादा उद्योगों के लिए जाने जाते हैं। मिथिला उनकी नई पीढ़ी से बेहतर करने की उम्मीदों के साथ इंतजार कर रहा है।
मोनालिसा और दुनिया की सबसे महंगी पेंटिंग साल्वाटोर मुंडी जैसी कलाकृतियों को रचने वाले इटालियन आर्टिस्ट लियोनार्दो दा विंसी के नाम पर रोम का हवाई अड्डा है। यदि ऐसा अब दरभंगा में हो तो अचरज की बात नहीं होगी। महाकवि विद्यापति मिथिला की सभ्यता और संस्कृति के बेहतरीन प्रवक्ता सदियों से हैं। राज दरभंगा के प्रतिनिधि इसके बदले की बात नहीं कह रहे हैं, बल्कि इसके असली इतिहास को याद दिलाने की कोशिश ही कर रहे हैं। इस मामले को कवि कोकिल और मिथिला के एक लोकप्रिय शासक के बीच उलझाने के बदले इनकी स्मृतियों को सिविल और मिलिट्री काम्पलेक्स के बीच म्यूजियम बना कर प्रदर्शित चाहिए। मिथिला पेंटिंग व आधुनिक तकनीक का इसमें बेहतर इस्तेमाल संभव है। सही मायनों में इस मामले में असली चुनौती विकास के आधे-अधूरे कार्यों को पूरा करने और आम लोगों के लिए हवाई यात्रा सेवा निर्बाध जारी रखने की है।