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रविवार पर विशेष
रमेश चंद शर्मा*
आर्य समाज के प्रचार के नाम पर प्रचारक, भजनी, महाशय, भजन मंडली आती। भजनों को सुनने के लिए खूब लोग एकत्र होते। पाखण्ड खंडनी पताका के गीत, रागनी, भजन के साथ साथ संदेश, बातचीत, प्रसंग भी सुनने को मिलते। कुछ बोल आज भी याद आते है, “यह पोप, पुजारी, पण्डे, यह ढोंग करें मसटनडे, इनको बतायेंगे जरुर, कोई माने या नहीं माने” इस तरह के गीत भी गाए जाते, लोग सुनते, सहमत असहमत होते, अपनी राय प्रकट करते मगर यह प्रक्रिया चलती रहती। असहमति को स्थान मिलता, सहन किया जाता।सहमत असहमत वाले दोनों ही श्रोता सुनते, जिसका मन नहीं करता वह उठकर चला जाता। भजन कीर्तन के समय भी आर्य समाज को मानने वाले महाशय जो गाँव से ही है, केवल आते ही नहीं, भागीदारी भी करते, गीत, भजन सुनाते। साझा काम सबका काम। गीत, रागनी, भजन का कार्यक्रम कभी कभी देर रात तक चलता, लोग चाव से सुनते। गाने वाले कभी कभी गाँव के बाहर से भी होते तो सुनने वालों की संख्या कम ज्यादा गायकों पर भी आधारित रहती कि गायक कौन है।
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गाँव में धार्मिक स्थल में शिव की मढ़ी, चौगानन माता, देवी मढ़ी, बाबा राघोदास की छतरी, गाँव से थोड़ी दूर कालका माता की मढ़ी, जहाँ मेला भी भरता था, बाद में हमारे मोहल्ले में श्री लालमन ने नीमडी वाले कुएं पर एक मंदिर बनवाया जिसमे शिव परिवार और हनुमानजी की मूर्ति है।
मेलों में कालका माता का, गुगापीर का, जहाँ छड़ी लेकर लोग जाते थे, कावीं माता का, दमैंयी माता, गुडगाँव माता का, भैरों बाबा का, शोभा सागर पर नारनौल के पास, बाबा रामेश्वरदास का, निजामपुर के पास टीबा बसई इन मेलों में जाना उत्साह, मौज मस्ती, आनंद खेलकूद का काम होता।
भारत सेवक समाज की ओर से एक बार गाँव में शिविर लगा। गाँव के बाहर से भी लोग आए। श्रमदान जोहड़ पर, गाँव की सफाई, प्रभात फेरी, खेलकूद, चर्चा होतीI प्रभात फेरी में नारे लगाना, गीत गाना। नारों में “नया रूपया आया है, सौ पैसे साथ लाया है, सेर नहीं, अब किलो चलेगा, छंटाक नहीं, अब ग्राम चलेगा, गज नहीं, अब मीटर चलेगा, कोस नहीं, अब किलोमीटर चलेगा।”
नपाई, तुलाई, चलाई, कमाई सबके मापदंड बदल दिए गए। सबमें दशमलव प्रणाली लागु कर दी गई।
एक रूपए में सोलह आने, चार पैसे का एक आना, दो पैसे का अधन्ना, चार आने की चवन्नी, आठ आने की अठन्नी, पाई, पैसा धेला।
सोलह छंटाक का एक सेर, रत्ती, मासा, तोला, छंटाक, सेर, मन। चालीस सेर का एक मन। पांच तोले की एक छटाक। पौंड लीटर में बदल गया। बारह इंच का एक फुट, तीन फुट, छतीस इंच का एक गज। सौ सेंटीमीटर का मीटर बन गया। कोस, मील, फर्लांग की जगह किलोमीटर आ गया।
नई व्यवस्था में सौ पैसे का रुपया हो गया, पच्चीस पैसे की चवन्नी, पचास पैसे की अठन्नी। सिक्कों में एक, दो, तीन, पांच, दस, बीस, पच्चीस, पचास पैसे का, सौ का सिक्का एक रुपया बना। लोग कहने लगे पैसा छोटा क्या हुआ, पैसे की कीमत ही घट, कम हो गई। पहले की बराबरी, तुलना में सिक्का छोटा हो गया था। गज से मीटर बड़ा हुआ, मगर कोस, मील से किलोमीटर छोटा हो गया। रूपया की कीमत वही रही, चाहे पैसे चौसठ से सौ हो गए।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।
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बधाई शुभकामनाएं मुबारक हो आशीर्वाद