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-डॉ. राजेंद्र सिंह*
हम सभी जानते है कि, हमारी मां गंगा जी सघन चिकित्सा इकाई (आई. सी. यू.) में भर्ती होने की स्थिति में थी। उनकी बीमारी की चिकित्सा तो हमारी सरकारें कर रही थी, लेकिन वह स्वस्थ नही हो पायी थी। लॉकडाउन होने से उनकी स्वंय ही चिकित्सा हो गई और वो अब स्वस्थ दिखाई देती है। यह लॉकडाउन जैसे ही खुलेगा, वैसे ही वो फिर से बीमार होगी।
गंगा के बेटे – बेटियों का अब यह कर्तव्य है कि मां को बीमार होने से बचायें, मां की बीमारी में जिस चिकित्सा ने लाभ पहुंचाया है, वही जारी रखी जाये। चिकित्सा की विधि गंगा के बेटा – बेटियां स्वंय विचार नही कर सकते क्योंकि उनके विचार से मां को चिकित्सा लाभ नही हुआ है। प्रकृति व मानव निर्मित कोरोना वायरस के डर से लॉकडाउन हुआ और मां की चिकित्सा हो गई। तो अब हमें अपनी मां गंगा जी के लिए वैसा ही लॉकडाउन करने पर विचार करना चाहिए।
इस लॉकडाउन के कारण गंगा जी की चिकित्सा कैसे हुई? इसे समझना बहुत जरुरी है। लॉकडाउन के पहले प्रदूषणकारी उद्योगों का प्रदूषित पानी, मां गंगा जी के पेट में जाता था, वे उद्योग बंद हुए तो वह गंदा जल मां पेट में जाने से रुका। देश भर से लोग मां से बिना पूछे ही उसमें अस्थियां विसर्जन करने, स्नान करने नित्य जाते थे। हमने अपनी मां गंगा जी से कभी नही पूछा कि कब हम अस्थि विसर्जन करें? कब स्नान व पूजा पाठ करें? बस गंगा जी हमारी मां है, उनसे पूछने की जरुरत नही है। इसलिए हम अपनी मन मर्जी से, मां के स्वास्थ्य के विरुद्ध सारे काम करते रहते है और मां जो हमारे बचपन का मैला ढोती थी, वह अब बूढी होकर, मैला ढोनें वाली मालगाड़ी बना दी गयी।
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हम भारतीय अपनी आस्था में मां को अपने परिवार में सबसे बडा निर्णयकर्ता सदस्य मानते थे। परंतु अब हम अपनी मां से पूछना भी जरुरी नही समझते। हमारी मां ने हमें लॉकडाउन के दौरान एक अवसर देकर यह बता दिया है कि तुम्हारी माई हूं – कमाई नही हूं। मेरी चिकित्सा प्रकृति में शक्ति है, उसी से मैं स्वास्थ्य हो सकती हूं। तुम उसका विनाश रोक दो । मैं हमारी गंगा मां को अच्छे से जानता हूं। वह हमारी आस्था और पर्यावरण रक्षा का प्रतीक मात्र नही बल्कि नित्य जीवन के व्यवहार व संस्कार में उसका स्थान है। उस स्थान को एक बार पुनः स्मरण करके जिस प्रकार हम अमावस्या, रविवार आदि की छुट्टीयां हम अपने लिए रखते है, उसी प्रकार हमें मां गंगा जी के लिए भी छुट्टीयां देना अत्यंत आवश्यक है। ये छुट्टीयां यदि हमने अपने अनुशासन में नही दी, तो भी सरकार को लॉकडाउन करके देना चाहिए।
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सरकार तो मां गंगा जी का सबसे बड़ा बेटा है। इसलिए इस सरकार को जल्दी से जल्दी गंगा के स्वरुप पर ध्यान देना चाहिए। गंगा का स्वास्थ्य देश के स्वास्थ्य के साथ जुड़ा हुआ है। यदि हमें इस देश को स्वस्थ रखना है, तो, गंगा जी को स्वस्थ रखना भी उतना ही जरुरी है। इसलिए गंगा के लॉकडाउन का मार्ग सरकार सुने और गंगा जी के लिए लॉकडाउन चालू करे। सरकार गंगा हेतु लॉकडाउन करने से पहले गंगा भक्तों की सलाह जरुर लेवे, उनके साथ विचार-विमर्श करें। गंगा राज और समाज की साझी है, इसलिए इस साझे काम में सरकार को लोकतांत्रिक व साझा निर्णय लेकर जल्दी से जल्दी गंगा लॉकडाउन का स्वरुप निश्चित करना चाहिए।
जब बेटा – बेटियां नालायक हो जाते हैं , तो पड़ोसी और मुख्य लोग इकठ्ठा होकर, फिर मां की सेवा के लिए बच्चे पर दबाब बनाते है। अब वैसा ही समय है। हमारी सरकार को इस लॉकडाउन के चलते गंगा जी के स्वास्थ्य प्रभाव के कारण एक नैतिक दबाब बना है। इस नैतिक दबाब को सरकार व समाज दोनों ही जरुरी समझकर, इस कार्य में जुट जायें।गंगा जी के लिए लॉकडाउन में हम अस्थि विसर्जन का एक दिन तय कर सकते है, दो दिन पूजा पाठ और स्नान आदि के लिए सुनिश्चित कर सकते है और शेष चार दिन हमें गंगा जी को देना चाहिए। जिससे हमारी मां गंगा को स्वस्थ , शु़द्ध, सदानीरा बनाकर , उसकी विलक्षण प्रदूषण नाशनी शक्ति को वापस ला सकते है ताकि वह निरोगी होकर बह सके।
मैं, गंगा जी लॉकडाउन स्वरुप के बारे में सरकार को मदद करने के लिए तैयार हूं। बषर्ते की सरकार गंगा लॉकडाउन को गंभीरता से जरुरी माने और राज-समाज के कामों में जरुरी समाधान ढू़ढे । हम व्यवधान नही, मां गंगा जी के स्वस्थ्य का समाधान चाहते है। उसी के लिए मां की आवाज को सरकार तक पहुंचाने का यह प्रयास है।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात, मैग्सेसे और स्टॉकहोल्म वॉटर प्राइज से सम्मानित, पर्यावरणविद हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।
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