रविवार पर विशेष
एक अलग दुनिया
-रमेश चंद शर्मा*
दिल्ली आकर एक अलग ढंग का समाज, दुनिया देखने, जानने, समझने को मिली। गावं में जो कुछ था, उससे यहाँ बहुत कुछ अलग। हर कदम पर विभिन्नता के दर्शन होते। मकान, दुकान, गली, कुचा, छत्ता, मौहल्ला, बाज़ार, मूत्रालय, शौचालय, बाग़ बगीचे, पार्क, कम्पनी बाग, पहनावा, भेष भूषा, खाना पीना, रहना सहना, उठना बैठना, बोल चाल, पढना लिखना, चलना फिरना, रिक्शा, तांगा, स्कूटर, मोटर साईकिल, तीन पहिया स्कूटर, फॉर व्हीलर जिसे फट फट भी कहते थे, कार, जीप, ट्राम, मिनी बस, बस, रेल, डीजल रेल, हवाई जहाज जिसे गाँव में चील गाड़ी कहते थे, स्कूल, क्लब, सभागार, द्फ्त्तर, वाचनालय, पुस्तकालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, डाकघर, तारघर, अस्पताल, बिजली घर, रामलीला मैदान, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च, घंटाघर, टाउन हॉल, किले, मीनार, गेट, सिनेमा घर, पुराना सचिवालय, संसद राष्ट्रपति भवन, सचिवालय, मंत्रालय, दूतावास, रेडियो स्टेशन, हवाई अड्डा, प्रदर्शनी मैदान, रेलवे स्टेशन, राजघाट समाधि, जमना पर लोहे वाला पुल, अजीत गढ़, नल का पानी, जमना नदी जिसे यमुना भी कहते, कई बड़े बड़े बरसाती नाले जो बाद में गंदे नाले बन गए, जंगल, पहाड़ियां सब कुछ अलग अलग सा लगता था।
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इतनी बड़ी जगमगाती बस्ती देखकर आँखे ही चौंधिया जाती। लट्टू ही लट्टू, बल्ब ही बल्ब, एक रोशन दुनिया। उस समय तरह तरह के बल्ब ही थे, अलग अलग वाल्ट के, सादा, दुधिया, चांदी की चमक वाला जो दुकानों पर ही नजर आता था।
जब पहली बार दिल्ली के राजपथ पर ट्यूब लाईट जलते देखकर, एक साथी ने स्कूल में आकर बताया कि रात को राजपथ पर बिजली के लंबे लंबे डंडे, लाठी जल रहे थे। किसी को विश्वास ही नहीं हुआ और सबने मिलकर उसकी ठुकाई करते हुए कहा कि हम ही बेवकूफ बनाने को मिले। बाद में मालूम हुआ, इन्हें ट्यूब लाईट कहते है। इसकी तेज रोशनी सबको लुभाती थी। बाद में तो इससे भी तेज चमकने वाले अनेक साधन आने लगे। उस साथी की पिटाई का कारण यह भी था कि वह किसी ना किसी बात पर सबको बेवकूफ बनाने का प्रयास बार बार करता रहता था। एक बार उसने कक्षा में आकर बताया कि आज जुबली हॉल में आग लग गई, वहां बहुत भीड़ भाड हो रही है। आधी छुट्टी में बहुत से छात्र आग देखने के लिए गए और विलम्ब से वापसी पर उनको सजा मिली। बाद में मालूम हुआ की आग सिनेमा लगा है। जलने वाली आग नहीं लगी थी।
दिल्ली की चहल पहल
दिल्ली शहर की अपनी ही चहल पहल थी। कविता पाठ, कवि गोष्ठी, कवि सम्मेलन, गजल, शेरो शायरी, मुशायरा, कव्वाली, किस्सा गोई, कहानी, नाटक, नृत्य, गीत संगीत, अंताक्षरी, भजन, कीर्त्तन, कृष्ण लीला, सुंदर कांड का पाठ, साहित्य गोष्ठी, सभा सम्मेलन, धर्म चर्चा जैसे अनेक छोटे बड़े कार्यक्रम होते रहते। कुछ कार्यक्रम तो रात भर चलते थे। कार्यक्रम अलग अलग भाषा हिंदी, उर्दू, पंजाबी में ज्यादा आयोजित होते थे। रामलीला, फूल वालों की सैर, जमना, गंगा स्नान, गुरु पर्व, होली, दीपावली, जन्माष्टमी, ईद, क्रिसमिस, रक्षाबंधन की अपनी ही रौनक रहती, महामूर्ख सम्मेलन होली से अगले दिन रंग खेलने के बाद, हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा गणतंत्र के अवसर पर आयोजित 23 जनवरी को होने वाला लालकिले का कवि सम्मेलन, 2 अक्तूबर को गाँधी जयंती पर कम्पनी बाग में लगने वाला गाँधी मेला, कभी कभी लगने वाले सर्कस, प्रदर्शनी, मेले, कुश्ती के दंगल, मुर्गो की लडाई, तांगा दौड़, महायग्य, जलसे जुलुस आदि।
बड़ी एवं पुरानी रामलीला तो रामलीला मैदान में रामलीला कमेटी द्वारा आयोजित ही कहलाती है। समय के साथ साथ इसमें से निकलकर कई रामलीला अलग अलग नाम से बन गई। धार्मिक लीला कमेटी, नव श्री धार्मिक लीला कमेटी, लव कुश लीला कमेटी। ज्यों ज्यों दिल्ली का विस्तार होता गया स्थानीय स्तर पर अपने अपने क्षेत्र में अनेक जगह राम लीला का आयोजन होता है। डीसीएम दिल्ली क्लाथ मील की रामलीला का भी अपना नाम था। दशहरा के समय दिल्ली में जोरदार चहल पहल रहती। साईकिल मार्केट, चांदनी चौक से रामलीला मैदान तक हर रोज रामलीला की सवारियां दोपहर में जाती और रात को उसी मार्ग से वापसी होतीI इसे देखने के लिए सडक के दोनों ओर और छतों पर खड़े होकर लोग बाग आनंद लेतेI रावण, कुम्भकर्ण, मेघनाथ के पुतले दहन के अगले दिन राम भरत मिलन का घंटाघर चांदनी चौक पर होताI एक ओर से राम आते दूसरी ओर से भरतI जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग इक्कठा होते। यह दृश्य बहुत ही मार्मिक, भावुक होताI आँखों से झर झर आंसू बहते। लोग सियाराम, सीताराम की जय जय कार करते। बच्चों के लिए छोटे छोटे रंग बिरंगे धनुष, गदा, चक्कर, चक्क्रियाँ, तरह तरह के चश्में, सीटियाँ, खिलोनें खरीदते। चाट पकौड़ी, गोल गप्पे, आलू की टिकिया, दही भल्ले, दौलत की चाट, फलों की चाट, कुल्फी, आईसक्रीम, बर्फ के गोले आदि का आनंद उठाते हुए राम भरत मिलन की चर्चा भी चलती रहती। उत्सव तो उत्सव ही होता है।
*लेखक प्रख्यात गाँधी साधक हैं।