रविवारीय मुद्दा
– प्रशांत सिन्हा
भारत की आर्थिक प्रगति के लिए कामकाजी महिलाओं की दरकार है
एक सर्वे के अनुसार भारत में बहुत कम महिलाएं मैनेजमेंट में उच्च पद पर हैं। सिर्फ 17 फ़ीसदी महिलाएं उच्च पद पर हैं जिसमें सीनियर मैनेजमेंट की भुमिका जैसे सी ई ओ और मैनेजिंग डायरेक्टर जैसे पद पर तो सिर्फ 7 फ़ीसदी हैं। हर भारतीय नागरिक को गम्भीरता से इस पर चिंतन करना चाहिए।
महिलाओं को घर – आंगन और पति बच्चों की दुनिया से बाहर लाना होगा। उनकी काबिलियत को आर्थिक प्रगति का हिस्सा बनाना होगा। अब घर और देश दोनों को कामकाजी महिला की दरकार है। कोवीड और लॉकडाउन के कारण देश की वित्तीय स्थिति संकट में है। महामारी के बाद देश भर में बेरोजगारी के आंकड़ों में व्यापक वृद्धि देखी गईं है।
वैसे भी दुनिया के सारे सम्पन्न देशों में महिलाएं उन देशों की आर्थिक प्रगति का हिस्सा हैं। आर्थिक प्रगति में दुनिया को पछाड़ना है तो देश में महिलाओं के प्रति सोच और उनकी छवि बदलनी होगी। 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका और इससे जुड़ी चुनौतियों की समीक्षा कर अपेक्षित नीतिगत सुधारों का अपनाना बहुत आवश्यक है।
भारत के आर्थिक विकास पर विश्व बैंक की रिपोर्ट देश में महिलाओं की छवि बदलने और ज्यादा से ज्यादा महिलाओं के कामकाजी होने पर जोर देती है। वर्ष 2019 में ” विश्व आर्थिक मंच ” की वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट से महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और उसके लिए उपलब्ध अवसरों के सन्दर्भ में भारत को 153 देशों की सूची में 149 वें स्थान पर रखा गया है । अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार यदि भारत में कार्यक्षेत्र में व्याप्त लैंगिक समानता को 25 फ़ीसदी कम कर लिया जाता है तो इससे देश की जीडीपी में एक ट्रिलियन तक की वृद्धि हो सकती है।
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सरकार को कामकाजी महिलाओं के महत्व को बखान करने के साथ यह बताना होगा कि घर में बच्चे पालना अकेले महिला की नहीं बल्कि सबकी जिम्मेदारी है। उसी तरह के प्रभावी प्रचार चले जैसे साक्षरता, स्वास्थ्य सेवाएं और टीकाकरण आदि के चलते हैं। महिलाओं को कामकाजी बनाने के लिए न सिर्फ अनुकूल नौकरी और काम के अवसर सृजित करने की जरूरत है बल्कि कानूनों में सुधार कर महिला कामगारों को कानूनी संरक्षण देने की भी जरूरत है। भारत में मातृत्व लाभ और सुविधाएं अन्य देशों जैसी नहीं है हालांकि सरकार ने कुछ समय पहले कानून में संशोधन कर 6 महीने का मातृत्व अवकाश का नियम बनाया है। भारत में श्रम कानून महिलाओं को कई काम करने से रोकता है। हमारे यहां महिलाओं के लिए कानून में लचीलापन भी उतना नहीं है।
दक्षिण कोरिया में जिनके बच्चे हैं उन्हें कानून में लचीले या पार्ट टाइम का अधिकार है जबकि भारत में ऐसा नहीं है।
हालांकि कार्यबल में युवा महिलाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ी है लेकिन विवाहित महिलाओं की संख्या घट रही है। माना जा रहा है कि घर, बच्चे और कामकाज को एक साथ संभालने का बोझ बड़ा साबित हो रहा है। यह नया बोझ नहीं है। पीढ़ियों से महिलाएं इन समस्याओं का सामना कर रही हैं।
अगर महिलाएं काम करती हैं तो न केवल लाइफ स्टाइल बल्कि बच्चों की शिक्षा, परिवार के स्वास्थ्य की देखरेख , बुजुर्गों की देखभाल और अपनी और पति के अवकाश प्राप्त होने के बाद की ज़िन्दगी के मोर्चे पर कोई परेशानी नहीं होगी। रिपोर्ट बताती है कि महिला उद्यमी महिलाओं को ज्यादा नौकरी देती हैं लेकिन फिर भी कामगार महिलाओं की संख्या कम है क्योंकि एक तो महिला उद्यमियों की संख्या कम है दूसरा उनका कारोबार छोटा है।
ज़रुरत हैं ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को देश की आर्थिक प्रगति में योगदान करने के लिए कारगर तरीके से प्रोत्साहित करने का।
Great article on Women empowerment…!!