संस्मरण
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
टर्की की जलवायु को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है, पहला मैदानी भाग जहाँ की जलवायु भूमध्यसागरीय है और जहाँ जाडे में करीब 20″ वर्षा होती है। दूसरा अर्ध शुष्क पठारी भाग जिसकी अधिकतम वर्ष का औसत 10‘‘‘‘ है। घास के मैदानों में अधिक चरागाही के कारण मिट्टी का कटाव अधिक हुआ है। कुछ स्थलों पर जंगलों के कट जाने से भी मिट्टी का कटाव अधिक हुआ है। यहाँ की गेहूँ तथा जौ मुख्य फसलें है।
मैं 20 अक्टूबर 2015 से 22 अक्टूबर 2015 तक टर्की में रहा था। 20 अक्टूबर को राजधानी अंकारा पहुंचा। वहांँ युएनसीसीडी -12 कनवेशन था। मैं हाईलेविल सेगमेंन्ट का बीज भाषण का वक्ता था। इस भाषण के बाद मैंने अपना अनुभव प्रस्तुत किया। उसमें जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए जल संरक्षण और खेती में बदलाव दिखाया। सभी लोगों ने मेरी प्रस्तुति को देखकर कई बार तालियाँ बजाईं। मेरे इस भाषण के बाद बहुत सारे मंत्रियों ने बहुत सारे सवाल भी पूछे। भाषण खत्म होने के बाद सीरिया के मंत्री का आग्रह था कि मैं टर्की , सीरिया, इराक आदि देशों में बहने वाली युफ्रेटस नदी को जाकर देखूँ। मैंने इस नदी की यात्रा करके जाना की टर्की में युफ्रेटस नदी का प्रवाह रुकने से सीरिया में जल का संकट बढ़ा है। खेती बंद हो गई है। यहाँ के लोग उजड़ने लगे हैं और यहाँ से उजड़कर यूरोप में, खासकर जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन में जाने लगे हैं। जब ये उजड़ना शुरू हुआ तो बगदादियों ने इनकी जमीनों, घरों पर कब्जे करना शुरू किया। यह लड़ाई शिया-सुन्नी की लड़ाई दिखने लगी, जबकि इस लड़ाई की शुरुआत जल की कमी के कारण हुई है। आधुनिक बडे़ बाँधो ने नीचे के देशों को बे-पानी बना दिया है। बे-पानी लोग पानीदार लोगों से लड़े नहीं, बल्कि उनके शरणार्थी बनकर पानीदार यूरोप के देशोंं में जाकर बसने लगे। यह पलायन, भारतीय पलायन से अलग-तरह का पलायन है।
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भाषण के बाद सीरिया के लोगों ने मुझसे बात करनी चाही। मैंने भी उनके साथ बातचीत में रुचि ली। उन्होंने सीरिया में उजड़ने का कारण, एक बंद कमरे में बैठक कर मुझे समझाया। टर्की, सीरिया और इराककी जीवनदायिनी नदी युफ्रेटस पर टर्की के बड़े नेता अतातुर्क ने जो छः बडे़ बांध बनाये हैं, उनके कारण इस नदी का प्रवाह सूख गया है। फलस्वरूप नीचे का देश सीरिया बे-पानी होकर उजड़ गया है। जब यह देश उजड़ने लगा, तो इराक की राजधानी बगदाद के लोगों ने इस देश में खाली पडे़ मकानों पर कब्जा कर लिया। इस हेतु यहाँ अंतर्राष्ट्रीय लड़ाई शुरू हुई।
मैं टर्की, अंकारा में आयोजित युएनसीसीडी -12 में पहुँचकर ही इस लड़ाई को प्रत्यक्ष देख व समझ पाया। मैंने वहां की छोटी-छोटी बैठकों में अपनी नदी गंगा की स्थिति को बताने का अवसर भी प्राप्त किया।
युफ्रेटस नदी टर्की से आरंभ होकर सीरिया होते हुए इराक , शत अलअरब में जाकर के समुद्र में मिलती है। 2880 कि.मी. लम्बी यह नदी भारत की गंगा से 350 कि.मी. अधिक लम्बी है। इसका क्षेत्रफल 5 लाख वर्ग कि.मी. है, जबकि गंगा का क्षेत्रफल इससे 2 गुना है, जो 10 लाख 80 हजार वर्ग कि. मी. में फैला है। गंगा नदी पर टिहरी बाँध है और दो बैराज फरक्का और नरोरा बने हैं। इसके मुकाबले युफ्रेटस नदी पर कुल 12 बाँध बने हैं। हायड्रो पावर जनरेशन स्टेशन की संख्या सैकड़ों से अधिक है। गंगा दो देशों, भारत और बांग्लादेश में बहती है। युफ्रेटस भी टर्की से आरम्भ होकर सीरिया होते हुए, ईराक में जाकर समुद्र में मिल जाती है। भारत की जनता ने गंगा को बचाने और उसकी अविरलता को बचाने के लिए 3 निर्माणाधीन बाँधों को 20 अगस्त 2009 में रद्द करवा दिया था, जबकि युफ्रेटस नदी पर अभी भी बाँध बनते ही जा रहे हैं। युफ्रेटस नदी पर बाँधो के कारण सीरिया और ईराक बड़े रेगिस्तान बन गये हैं। यह नया रेगिस्तान सीरिया, इराक और टर्की पर भी बहुत भारी पड़ता जा रहा है।
गंगा दुनिया की सबसे अच्छी, पवित्रतम नदी थी। उसको वैसा ही बनाकर, आने वाली पीढ़ी को देने के भाव से गंगाजी के ऊपरी हिस्से में 150 कि.मी. लंबाई तक हिमालय में संवेदनशील क्षेत्र घोषित कर दिया है। जिससे कि गंगा मैया उत्तरांचल में अपनी पवित्रता के साथ प्रवाहित हो सके और गंगा जी की अविरलता व निर्मलता बनी रहे। इसी भाव से गंगा के ऊपरी भाग 150 कि.मी. हिमालयी क्षेत्र को संवेदनशील घोषित करके उस पर गंगाजी के विरुद्ध होने वाले विकास कार्यों को रुकवा दिया गया जिससे हमारी गंगा की अविरलता और निर्मलता बराबर बनी रहे।
जब तक युफ्रेटस नदी आज़ादी से बहती थी, तब तक इस नदी क्षेत्र में गंगा, यमुना के क्षेत्र की तरह समृद्ध खेती होती थी। रेगिस्तान का प्रभाव भी उतना अधिक नहीं था। युफ्रेटस नदी को बाँधने के बाद उसकी रेत हवा में उड़कर सीरिया की खेती वाली जमीन पर जाकर बैठने लगी। उस रेत ने सीरिया में रेगिस्तान की वृद्धि दर तेज कर दी और सीरिया के खेती करने वाले किसान लाचार, बेकार और बीमार होकर अपने देश में उजड़ने लगे। इन्हें टर्की के रास्ते ही जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन जाना पड़ा। इसलिए इन तीनों देशों के परस्पर संबंध बिगड़ने लगे और पानी की वास्तविक लड़ाई को शिया सुन्नी की लड़ाई में बदल दिया। यह जीवन जीने की लड़ाई है।
जलवायु परिवर्तन और जीविकोपार्जन की सबसे बड़ी भूमिका अपनी धरती की हरियाली और अपने राष्ट्रप्रेम की होती है। जब तक लोगों का अपनी धरती से और अपने राष्ट्र से सम्बन्ध प्रबल होता है, तब तक कोई दूसरा बाहर से आकर आतंक पैदा नहीं कर सकता। आतंक सदैव राष्ट्रप्रेम की कमी से जन्मता है। सभी आतंकवादी क्षेत्रों में अभी तक ऐसा ही हुआ है। ईराक और टर्की में भी यही हुआ। लेकिन इसका मूल तो वहां का पानी और पानी पर निर्भर जीविका तथा जीवन को चलाने वाले रोजगार की कमी है। यह कमी पैदा करने का काम हमारे विकास की ऊर्जा और पानी पर केन्द्रीय नियंत्रण से पैदा हुआ है। इसको रोकने का एकमात्र उपाय सामुदायिक विकेन्द्रित प्राकृतिक संसाधनों का प्रबन्धन है। प्राकृतिक विकास करने से खतरनाक राक्षस पैदा नहीं होते। सामुदायिक विकेन्द्रित प्राकृतिक संसाधनों में धरती की नमी बढ़ती है, हरियाली आती है और जैव विविधता बढ़ती है। स्नेह समरसता और जैव विविधता से जीवन में समृद्धि आती है, बढ़ती है। जलवायु परिवर्तन के तनाव कम होते हैं। अनुकूलन प्रक्रिया तेज़ होती है। बडे़ बांधो पर नियंत्रण बढ़ता है और धरती की हरियाली और पानी पर चन्द बडे़ लोगां के कब्जे होते हैं। जैव विविधता का संकट पैदा होता है और लोगों के लिए तीर्थ यात्रा जैसे सुख और आनन्द देने वाले क्षेत्र या तो पानी में डूब जाते हैं या नदियों में ऊपर से उड़कर आने वाली रेत में दब जाते हैं, जो वीरान रेगिस्तान का रूप ले लेते हैं। यह टर्की, सीरिया और इराक की युफ्रेटस नदी का आँखो देखा हाल है, युफ्रेटस की हत्या हो गई है, लेकिन गंगा जी अभी इस तरह के विकृत विनाश से बची हुई है। इसमें विकास का प्रदूषण है और भूजल का शोषण है।
अभी भी गंगा यमुना की संस्कृति और सभ्यता का मूल शेष बचा होने के कारण लोगों को अपनी धरती छोड़कर रोजी, रोटी की तलाश में यूरोप जाने की जरूरत नहीं है। अब लोग अपनी स्वेच्छा से लोग यूरोप जा रहे हैं; किसी के दबाव या मजबूरी के कारण नहीं।
गंगा में यदि युफ्रेटस नदी की तरह छेड़छाड़ करके बाँध या बैराज बनाने का काम किया जायेगा तो ठीक वैसा ही होगा, जैसा युफ्रेटस नदी घाटी के तीनों देशोंं में मारकाट व देशों पर नियंत्रण तथा अपने राष्ट्रप्रेम से लोगों को तोड़कर बाहर भगाना। यह सब भले ही राज्य सत्ता की कमियों के कारण होता है। लेकिन भुगतना वहां की जनता को ही पड़ता है। जनता का बलिदान होता है और जनता के जीवन में यह कष्ट मैंने खुली आँखो से देखा है।
गंगा के बेसिन में 520 मिलियन लोग बिना लड़ाई किये शांति से रहते हैं। युफ्रेटस नदी में कुल 20 मिलियन लोग रहते हैं; जिनके बीच जल का युद्ध हर दिन नये-नये रूप में सामने आता है। इसे शांति में बदलने का एकमात्र तरीका है, युफ्रेटस नदी के तीनों देश अपने वर्षाजल का सामुदायिक विकेन्द्रित जल प्रबन्धन करके नदी को बहने की आजादी दें। जिस प्रकार गंगा पर बन रहे तीन बांधों को रद्द करके भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने पूरी दुनिया को गंगा की अविरलता के नाम पर नदियों की आजादी का सन्देश दिया था; उसी प्रकार युफ्रेटस नदी में भी अब आगे बड़े बाँध नहीं बनें। वर्तमान बाँधो पर नदी को प्राकृतिक प्रवाह देने की व्यवस्था तकनीकी और इंजीनियरिंग तौर पर की जा सकती है। इसलिए हम सबको अब भारत की गंगा नदी से मानवता, शांति, सद्भावना और शक्तिभाव का सम्मान करने का सन्देश मिले। मैंने इस बढ़ते मरूस्थल को रोकने की तैयारी में अपना 30 वर्षों का प्रत्यक्ष जलवायु परिवर्तन-अनुकूलन-उन्मूलन को स्पष्ट से दिखाने वाली प्रस्तुति भी की थी। अलग-अलग सत्रों ये मुझे अपनी बातें रखने का अवसर प्राप्त हुआ।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात जल संरक्षक हैं। प्रकाशित लेख उनके निजी विचार हैं।