दुनिया की नदियां – 2
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
सैल्ड नदी फ्रांस से शुरू होकर बेल्जियम होते हुए नीदरलैंड में समुद्र में मिल जाती है। इस नदी की लम्बाई 500 कि.मी. तो बेल्जियम मे बहती है और कुल 60 कि.मी. नीदरलेंड में। फ्रांस के गोई शहर से शुरू होकर नोर्ड राज्य के कंवेरी, डेनियन, बलेंसिन होते हुए 150 कि.मी.लम्बी यात्रा पूरी करके बेल्जियम मे हेन्नोट राज्य टोरनई और वेस्ट फिनंडर्स के एवलिन तथा ईस्ट फिलंडर्स ओडंड गेंट, डेनमोरोड टेम्स उसके बाद एंट्राप राज्य के एंट्राप शहर से नीदरलेंड के बेलहार्स और टेरेंजिम होते हुए बेलिनसिन समुद्र में मिल जाती है। इस नदी की यात्रा 18 अप्रैल 2016 को गेंट शहर से शुरू हुई। गेंट से टिजार्म डेल्डो ड्रम से एंट्रोट तक 18,19 व 20 तारीख को काट्रिक तथा ग्रोंट जेनिंग डील और रूपल की 21 मार्च 2016 को फिर दुबारा से सैल्ड नदी में हो रहे सिगमा प्लान द्वारा सम्पादित विकास कार्यो को वहाँ के सरकारी अधिकारियों के साथ देखा और समझा।
यहाँ का गेंट शहर पहले गाय और मछली मांस का व्यापार केन्द्र था। यहाँ के सामाजिक आंदोलन के स्टेचू चौराहे पर मुझे सबसे पहले ले जाया गया और फिर याकूब ने मुझे शहर दिखाया। शाम को ऐलिन व मिनी जैन मिलने आये थे। 29 मार्च को गेंट में सैल्ड नदी पर दो पब्लिक बैठकों को संबोधित किया। यहाँ हरबरी भकरीस (सुरक्षित) में भाषण दिया। उसके बाद नदी पर नाव यात्रा की। यहाँ के सामुदायिक केन्द्र में भी गया। रुमिंग होकर में एक बडे़ सम्मेलन को संबोंधित किया।
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इस शहर में वाटर वॉक के बाद जॉर्डन क्षेत्र की जनता को गेंट शहर में संबोधित किया। मैंने जलवायु अनुकूलन, उन्मूलन के प्रत्यक्ष अनुभवों को बाँटा। इन्होंने मेरी प्रस्तुति को देख कर बहुत सवाल पूछे। यहाँ यह खुशी की बात थी कि, मेरी यात्रा के वक्त जयपुर के दो ढोल-नंगाडे़ बजाने वाले सताक व मेहबूबा की टीम को मेरी यात्रा की अगुवाई की जिम्मेदारी दी थी। यह यात्रा सुबह शुरू होकर शाम तक सिटी सेंटर पहुँची। यहाँ पर शहरवासियों ने मेरा सम्मान किया और मेरे भाषण के बाद यात्रा का समापन हुआ। सभी ने बड़ी संख्या में हिंदुस्तानी होटल ‘हिमालय‘ में मेरे सम्मान में रात्रि भोज की व्यवस्था की थी। इसमें सभी वॉक आयोजक शामिल हुए हैं। यात्रा में शामिल शहर के लोग भी आये थे।
कोरत्ररिक में वाटर वार संग्रहालय में जाकर प्रदर्शनी देखी और वहांँ पर इकट्ठे हुए लोगों को भाषण दिया। गेंट से कोरत्ररिक ट्रेन से गया। बेल्जियम के सेलेवेले शहर पहुँचा। यह बहुत ही सुन्दर जगह है। इसके बाद बरलारा, कालकन, हेमसवेर्ज में वाटर वार प्रदर्शनी का विजिट किया। यहाँ की समस्या भी देखी और समाधान भी सुझाये। यह सब दिखा कर इन्होंने मेरा भाषण और प्रस्तुति करवाई। ऐलिना ने मेरे भाषण का अनुवाद, विश्लेषण और बाद में प्रशंसा की। मुझे जल संरक्षण का काम सिखाने वाले माँगू मीणा की कहानी और दो दिन में जल संरक्षण की पी.एच.डी. पूरी कराने की कहानी सुनते हुए लोगों ने बार-बार तालियाँ बजायी।
जॉर्डन यूजन होते हुए वापस गेंट डेन्डर मोड तक पहुँचे। गेंट से मेला वेटररिन वेलचीन ओर बेल्जियम होते हुए, डेर्ण्य तक पहुँचे। फिर कार से कोरत्ररिक में सैल्ड नदी के दूसरी तरफ पहुंँचकर, वहांँ से प्रातः 7 बजे डेन्डर मोड पहुँचे। फिर डोमनी ने हमें नाव पार कराई और उसके साथ ही मेलीवेटारिन होते हुए वेलचीन, डेण्डर्म तक पद यात्रा की। यहाँ से कार में बैठकर कोरत्ररिक की यात्रा करके समापन हुआ।
इस यात्रा में तीन बातें साफ-साफ समझ में आयी कि, बेल्जियम सरकार ने 1975 से सिगमाप्लेन के तहत इसे बार-बार बाँधने की कोशिश की, लेकिन बाँध नहीं पाये। अब इन्होंने अपना प्लान बदला है और नदी की जमीन को नदी के लिए छोड़ना शुरू किया है। इन्होंने शुरू में मुझे दिखाया कि इस नदी को आजादी से बहने के लिए इसे बार-बार बाँधना बंद कर दिया है। नदी की आजादी के लिए अब पिछले नौ वर्षो से योजनाबद्ध ढंग से सेल्ड नदी का काम बेल्जियम सरकार ने शुरू किया है। इस नदी की बेल्जियम जैसी समस्या फ्रांस व नीदरलैंड में नहीं है। फ्रांस में इस नदी को बांधने की कोशिश नहीं हुई, इसलिए दोनों तरफ फ्रांस की जमीन पर हरियाली-लहराती फसलें दिखाई देती हैं।
मैं सैल्ड नदी के किनारे-किनारे एक बार फिर पेरिस तक गया और पेरिस से अपनी फ्लाइट लेकर भारत पहुंँचा। यह यात्रा मेरे लिए सीखने-सिखाने वाली रही है। मैंने इस यात्रा को करते हुए जो समूह बनाये उनकी सक्रियता उत्साहवर्धक रही है। गैंट, बैल्जियम फ्रांस, नीदरलैंड़ की नदी सैल्ड की मैंने पूरी पदयात्रा करके यहाँ के लोगों का, जल व नदी के विषय में दृष्टि और दर्शन समझकर इन देशों में आने वाले जलवायु परिवर्तन शरणार्थियों के साथ मिलकर, उनके पुनर्वास से ज्यादा इनके उजाड़ के कारणों को समझा। ये अपनी जमीन पर दुबारा लौटकर जाने को तैयार नहीं हैं। यह सुनकर मैंने ये जहाँ पर शरणार्थी बनकर आये हैं, वहाँ कैसे रहें? क्या नहीं करें? क्या करें? आदि विषयों पर इन्हें सुनाया, समझाया और इनके पुनर्वास करके आगे बढ़ाया। इन्होंने जलवायु परिवर्तन शरणार्थियों के पुनर्वास में योगदान करना शुरू किया।
ये तीनों देश भी अपनी नदियों की बाढ़ से आतंकित है। उससे बचने के जो प्रयास ये कर रहे हैं, उसमें इनकी केवल इंजीनियरिंग और तकनीक ही अधिक दिखाई देती है। नदी को आजादी देकर उसके पर्यावरणीय प्रवाह का दर्शन तथा नदी को अधिकार दिलाने की बात उसमें नहीं दिखाई दे रही है। इसलिए बाढ़ मुक्ति के इनके उपाय सफल नहीं हो रहे हैं। तकनीक और इंजीनियरिंग सभी पर नियंत्रण करने की तकनीक पढ़ाकर ही सबको तैयार करती है। इसलिए ये बाढ़ पर भी नियंत्रण ही करने के उपाय खोज रहे हैं।
यह इंजीनियर नियंत्रण की इंजीनियरिंग के अलावा दूसरी पर्यावरणीय या प्राकृतिक विधि को स्वीकार जल्दी नहीं करते। इस दिशा में बात करने वालों को सरकार से दूर रखने में जुट जाते है। मेरे साथ ऐसा ही हुआ है। मैंने इंजीनियर का क्रोध भी सहन किया है। इस यात्रा के पहले मैं ऐसा भारत में ही देखता था। इस यात्रा में देखा कम-अधिक यही पूरी दुनिया में है। अफ्रीका और मध्य एशिया में ज्यादा है। यूरोप के देशों में भी मुझे इसी का शिकार बनना पड़ा। मैं भी अपनी बातचीत को प्यार से समझाता था। प्रत्यक्ष काम के अनुभवों ने सफलता दिलायी।
प्रकृति का नियंत्रण कभी भी अच्छा नहीं होता है। नियंत्रण करने से बहुत बड़ा विनाश हो जाता है। बाढ़ नियंत्रण से सैल्ड नदी का विनाश इन तीनों देशों ने देखा है। इन्होंने मुझे भी अपना विनाश दिखाया। मैंने कहा कि, नियंत्रण का दबाव जब टूट जाता है, तब उस पर पुनः कब्जा करना या सहवरण करना असंभव बन जाता है। यूरोप में सभी देशों को, नदियों को बाँधने की आदत पड़ गई है। यू. के. ने अपनी नदी को सबसे पहले बाँधा था, फिर सभी बाँधने लगे।
इस यात्रा में मैंने कई लोगों को बताया कि नदी को आजादी देकर, बाढ़ से बचें या बाढ़ का सहवरण करें। सहवरण मारता या विनाश नहीं करता है। नियंत्रण के स्थान पर सहवरण से समृद्धि और शांति कायम होती है। यह बात मैं विस्तार से इन तीनों देशों को समझाने में सफल हुआ। मैंने प्रिंस चार्ल्स के साथ यू.के. और यूरोप के अन्य देशों के साथ अपने देश की बाढ़ के अनुभव भी इन्हें बताये और समझाये – सिखाये हैं। ‘‘तैरने वाला समाज बाढ़ से कैसे बचता है।’’ उसका प्रस्तुतिकरण किया। भारत का बिहार, बंगाल, ओडिशा आदि बाढ़ से कैसे बचते है? बाढ़ के साथ ही जीते और मरते है। उन्हें बाढ़ के साथ जीवन आनंद से जीने हेतु प्राकृतिक प्रेम की जरूरत समझायी।
सैल्ड नदी की यात्रा में यहाँ के कृषि, शिक्षा, इंजीनियरिंग पर्यावरण से संबंधित विश्वविद्यालयों एवं तकनीकी संस्थानों का मुझे बहुत साथ मिला। मेरे प्यार ने उनके अंदर विश्वास पैदा कर दिया था। इसलिए ये मुझे सुनकर भविष्य में बाढ़ सहवरण की परियोजनाओं पर ये काम करेंगे, ऐसा मुझे लगा है। मैंने अपनी यात्रा के बाद इनका व्यवहार बदलते देखा और नियंत्रण के स्थान पर प्रकृतिमय प्रेम के पोषण को निखरते देखकर मैं भी आंनदित हुआ।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। यहां प्रकाशित आलेख उनके निजी विचार हैं।