दुनिया की नदियां – 12
– डॉ. राजेंद्र सिंह*
टाइबर नदी इटली की 244 मील लंबी एक नदी है। यह ऐपेनाइंज पर्वत के पीव सैन स्टेफानों से 12 मील उत्तर समुद्रतल से 4,160 फुट की ऊँचाई से निकलती है। यह ‘पो’ नदी को छोड़कर इटली की सबसे बड़ी नदी है। इस नदी के जल में मिट्टी के कण अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। अनेक विचित्र कंदराओं तथा दर्रो का निर्माण करती हुई, यह लगभग बोरगो एस० सेपोलक्रो और सिटा डी कास्टिलो से दक्षिण बहती हुई पेरुजिया और टोडी के बीच से आँर्ट को जाती है, जहाँ इससे नेरा नदी मिलती है।
सैबाइन पहाड़ी के निचले किनारे पर यह चौड़ी घाटी बनाती है। इसके अलावा यह रोम नगर में बहती हुई रोमन कैपैग्ना को पार करती है, और अंत में ऑस्ट्रिया और फिउमिसिनो में दो धाराओं में विभक्त होकर टिरीनिऐन सागर में गिरती हैं, जिसमें दूसरी धारा कृत्रिम है। टाइबर नदी की प्रमुख सहायक नदियाँ पैगलिया, नेरा, आन्यो या टेवेरॉन हैं।
टाइबर नदी नेरा के संगम के पश्चात् लगभग 104 मील तक नौपरिवहन के उपयुक्त है, किन्तु तीव्र धारा के कारण रोम से ऊपर की ओर बहुत कम उपयुक्त है। टाइबर के अपवाह क्षेत्र का विस्तार 6,719 वर्ग मील है। यह पो नदी को छोड़कर इटली की सबसे बड़ी नदी है। इस नदी के जल में मिट्टी के कण अधिक मात्रा में होते हैं। मुहाने पर जल का औसत बहाव 230 घन मीटर प्रति सेकंड है। शुष्क ऋतु में बहाव कम हो जाता है।
मैं 21 फरवरी 2017 से 24 फरवरी 2017 तक इटली व वेटिकन सिटी में टाइबर नदी के किनारे ही रुका था। यहाँ रोम में पूरी दुनिया के जलयोद्धाओं व मुझे भी पोप ने बुलाया था। साथ ही साथ वर्ल्ड वाटर काउंसिल के बहुत मेम्बर भी इसमें उपस्थित थे। हमने जब जल के निजीकरण को रोकने की बात कही तो यह बात सभी सदस्यों को स्वीकार नहीं थी, लेकिन जब पोप ने हम सब की बात सुनकर कहा कि, जल पर केवल मानव का ही अधिकार नहीं है, अपितु जीव-जन्तु व नदी का समान अधिकार है; तब पोप के भाषण पर किसी भी सदस्य ने आपत्ति नही की। सभी ने सहमति से स्वीकार कर लिया। मुझे भी बहुत अच्छा लगा। जल तो नदी और मानवता का जीवन है। इस पर नदी, प्रकृति और मानवता का बराबर अधिकार है।
हम पोप के मेहमान थे और उन्होंने मुझे वेटिकन में रखा था। यह सम्मेलन पोप के संस्थान क्षेत्र में ही हो रहा था। इस सम्मेलन के आरंभ में दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए जल पर मानव व प्रकृति का समान हक स्थापित करने की बातें हुइंर्। इस पर किसी ने कोई आपत्ति नहीं की। इन्हें केवल वर्ल्ड वाटर को निजीकरण व व्यापार पर आपत्ति थी। मैंने इस सम्मेलन में चौथी बार बोलते हुए कहा कि अब दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध से बचने के लिए नदी जल साक्षरता हेतु दुनिया की सभी सरकारों, संस्थानों व संगठनों को लगने की जरूरत है। मैंने कहा कि मैंने तो अपनी छोटी-सी औकात से जल नैतिकता, नदी को न्याय की साक्षरता का काम किया है। इन कार्यों को व्यापक रूप से दुनिया में करने के लिए पोप और आप जैसे प्रभावी विद्वान लोगों को एक साथ लगाने की जरूरत है।
इस सम्मेलन के समापन भाषण में पोप का भाषण बहुत अच्छा था। उन्होंने , जो हमने बोला था, उसको समेटकर अच्छा निष्कर्षात्मक भाषण दिया। उनके भाषण का मुख्य आधार जल के निजी व व्यापारिकरण के विरोध में ही था। यह निजीकरण और बाजारीकरण ही प्राकृतिक और नदी प्रेम को कम करता है। जल सभी को जीवन देता है। यह प्रभु का मानव को दिया उपहार है। इसे खरीदना-बेचना उचित नहीं है। इस पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने रोक लगाई है। जल को मानव अधिकार कहकर, यह केवल मानव अधिकार नहीं है। यह प्रभु का उपहार सभी के लिए समान है। जल प्राकृतिक उपहार नदी और मानवता दोनों को बराबर उपलब्ध रहना चाहिए।
इटली यूरोप महाद्वीप के दक्षिण में स्थित एक देश है, जिसकी मुख्यभूमि एक प्रायद्वीप है। इटली के उत्तर में आल्प्स पर्वतमाला है, जिसमें फ्रांस, स्वीट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया तथा स्लोवेनिया की सीमाएँ आकर लगती है। सिसली तथा सार्डिनिया, जो भूमध्य सागर के दो सबसे बडे़ द्वीप है; इटली के अंग है। वेटिकन सिटी तथा सैन मरीनों इटली के अंतर्गत समाहित दो स्वतंत्र देश हैं। पो और टाइबर यही दो प्रमुख नदियाँ है। रोम टाइबर नदी पर स्थित है। इस देश का कुल क्षेत्रफल 301230 वर्ग किलोमीटर है। 2008 में इस देश की जनसंख्या 5 करोड़ 90 लाख थी। इसकी राजधानी रोम है। इस देश का इतिहास 2500 वर्ष पुराना है। देश में पूर्वकाल में राजतंत्र था जिसका अंतिम राजघराना सेवाय था। जून, 1946 से देश एक जनतांत्रिक राज्य में परिवर्तित हो गया। इसे यूरोप का भारत कहा जाता है, परंतु टाइबर नदी को यहाँ गंगा की तरह नहीं देखा जाता।
पोप वेटिकन अब जल को मानवाधिकार मानते हैं। यह निजीकरण को तथा जल व्यापारिकरण रोकने की प्रक्र्रिया है। पोप ने ही मुझे मिलने बुलवाया था। मैंने दो वर्ष पूर्व उनसे कहा था कि ‘‘जल और दुनिया’’ एक ही है, जल ही जलवायु है, जल ही जीवन है, जल के बिना मानवता और प्रकृति का बचना संभव नहीं है।, इसे व्यापार की वस्तु मानना प्रकृति और मानवता दोनों के विरुद्ध ही है। ईसाइयत जल को जीवन की वस्तु मानता है।
ईसाई धर्म ने दुनिया में कहा कि जल मानव के लिए है, इसका अनुशासित होकर उपयोग करें। इसके बिना बाढ़-सुखाड़ दोनों ही बढे़ंगी। इसलिए इसे ईसा मसीह की देन मानकर सम्मान पूर्वक जल का प्रेम से उपयोग करें। आज लोग उपयोग करने के स्थान पर उपभोग करने लगे है। अब यह बाजारू वस्तु बन गई है। बाजार से बहार लाने की शुरुआत भी ईसाईयत से होगी तो दुनिया का शुभ होगा।
जल का बाजारीकरण व नदियों का निजीकरण और मानव का हत्यारा है। दुनिया बचानी है तो जल का सामुदायिकरण करके नदियों को बचाया जा सकता है। नदी का धर्म, मानव धर्म जैसा ही है। यदि नदी बचेगी तो ही धर्म और संस्कृति बचेगी। दुनिया पानी-प्राकृतिक प्यार से आगे बढ़ जायेगी। मेरे इस मन्तव्य के पत्र का पोप ने सम्मान किया। मुझे मिलने बुलाया। मैं मिलने गया। वे प्रकृति और मानवता को बराबर सम्मान करते हैं। उन्होंने मुझे निजीतौर पर प्यार से कहा कि आपकी मंशा का सम्मान करता है। हम आज भी जल को मानवाधिकार रूप में ही देख रहे है। वही संयुक्त राष्ट्र संघ भी मानता है। दुनिया की जल जरूरत मानव की नही है। पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, नदी-समुद्र सभी की जरूरत का ध्यान नहीं रखा जायेगा तो जल व्यापार पूरी दुनिया के जलतंत्र को बाजारू बनाकर एकरूपता प्रदान करेगा। आज ब्रह्माण्ड एकरूपता से नहीं विविधता से समृद्ध बनेगा। दुनिया को एकरूपता देने का काम उद्योग-व्यापार के लाभ हेतु किया जाता हैं। लाभ जीवन की सुरक्षा को कमजोर बनाता है।
जब जीवन की सुरक्षा खत्म होती है, तभी शुभ नष्ट होता है। अर्थात् सभी की भलाई-सुरक्षा समाप्त होती है। यह सुरक्षा की कमी मानवीय और नदी संकट पैदा करती है। जब सभी जीव-जंतु पेड़-पौधों की सुरक्षा नहीं रहती है, तभी पूरा ब्रह्माण्ड कंपमान बन जाती है। ब्रह्माण्ड की सेहत बिगाड़ने से पहले नदी की सेहत बिगड़ेगी। प्राकृतिक सेहत बिगाड़ ही आज के ब्रह्माण्ड की एकरूपता है। सुधार या पुनर्जनन तो विविधता में होता है। पुनर्जनन ही सनातन है। एकरूपता से पुनर्जनन नही हो सकता है। पुनर्जनन तो विविधता से ही संभव है। आज हम एकरूपता करके सभी कुछ जब एक जैसा करना चाहते हैं, तो उसका केवल रूपातंरण किया जाता है। एक रूपांतरण अप्राकृतिक निर्जीव होता है। पुनर्जनन प्राकृतिक और सजीव ही विविध होता है। एकरूपता केवल निर्जीवों में होती है। एकात्मकता और एकरूपता से बचे बिना नदी और प्रकृति को बचाना संभव नहीं है।
1990 में जब वैश्विकरण की एकरूपता का भूत दुनिया को चढ़ा था। तभी हमने इसके विरुद्ध 1991 में पेरिस फ्रांस में आवाज उठाई थी। तब जैव विविधता जल संरक्षण से बढ़ती है; इस अनुभव को बाँटने के लिए मुझे बुलाया था। मैंने वहाँ जाकर जैव विविधता के विरुद्ध एकरूपता है, इस एकरूपता मुक्ति हेतु क्या करें ? मैंने इस अवसर पर भारतीय आस्था पर्यावरण रक्षा के अनुभव बाँटे थे। भारत लौटकर ‘ भारतीय आस्था-पर्यावरण रक्षा’ नामक पुस्तक लिखी थी। उस काल तक भारत और विश्व में विविधता का सम्मान था। आज सभी जगह एकरूपता को सम्मान मिलता है। वैश्विकरण, उदारीकरण, बाजारीकरण ने नदियों की हत्या की है।
इटली की भूमि तीन तरफ (दक्षिण और सूर्यपारगमन की दोनों दिशाओं) से भूमध्य सागर द्वारा जलावृत है। यहाँ की जलवायु मुख्यतः भूमध्सागरीय है, पर इसमें भी बहुत अधिक बदलाव पाया जाता है। आज पूरे इटली को आधुनिक किसानों के फलों, तरकारियों तथा अन्य फसलों से भर दिया है, केवल पहाड़ों पर ही जंगली पेड़ तथा झाड़ियाँ पाई जाती हैं। इटली में खनिज पदार्थ अपर्याप्त हैं, केवल पारा ही यहाँ से निर्यात किया जाता है। इटली ने जलवायु परिवर्तन के विनाशक रूप को पहचानने के बाद यहाँ जलवायु परिवर्तन की पढ़ाई को अनिवार्य कर दिया है।
वेटिकन यूरोप महाद्वीप में स्थित एक देश है। पृथ्वी पर सबसे छोटा, स्वतंत्र राज्य है। इसका क्षेत्रफल केवल 44 हेक्टेयर है। यह इटली के शहर रोम के अंदर स्थित है। यह रोम नगर में आइबर नदी के किनारे, वैटिकन पहाड़ी पर स्थित है तथा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक कारणों से प्रसिद्ध है। यहाँ की जनसंख्या बहुत कम है। यहाँ नदी शहर में बहती तो नहर जैसी लगती है। यूरोप ने अपनी नदियों को बाँधने का प्रयास किया है। नदियों की आजादी खत्म की है। यहाँ नदियाँ जब आजादी से खुलकर बहती थी, तब बहुत व्यापक जमीन पर थी। जमीन बचाने के लिए इन्हें बाँधना शुरु किया था। यूरोप में प्रकृति का प्रवाह की नदी को मानव नियंत्रित प्रवाह दिया है। टाइबर नदी के साथ भी ऐसा ही हुआ।
टाइबर नदी निर्मल तो है, परंतु अविरल नहीं है। इसमें शहरी-औद्योगिक प्रदूषण तो कम है। इसके बेसिन के जंगल व हरियाली घटने से मिट्टी के कण जल प्रवाह में बहुत अधिक है। यही इसमें बाढ़ का कारण भी बनता है।
इस नदी को भी पुनर्जीवित करने की जरूरत है। इसका पुनर्जीवित पाइप से नहीं प्राकृतिक तरीके से करने की जरूरत है। यूरोप सभी समस्याओं का समाधान अभियांत्रिकी-प्रौद्योगिकी में विखंडित करके ही देखते है। संवेदनशील समझदारी पूर्ण अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी को अध्यात्मिक विज्ञान के साथ समग्रता से जोड़कर टाइबर को पुनर्जीवित करना चाहिए।
*लेखक स्टॉकहोल्म वाटर प्राइज से सम्मानित और जलपुरुष के नाम से प्रख्यात पर्यावरणविद हैं। यहां प्रकाशित आलेख उनके निजी विचार हैं।