– डॉ. राजेन्द्र सिंह*
भारत को किसानों का देश कहते थे, तब गुलाम भारत में भी भारत का किसान स्वावलंबी और आजाद था। अब आजाद भारत में किसान, उद्योगपतियों का गुलाम बन रहा है। किसानों ने इस ग़ुलामी को रोकने के लिए आंदोलन शुरू किया है। बातचीत के छः दौर पूरे हो गए लेकिन अभी तक कुछ हल नहीं निकला।
भारत सरकार को यह समझ लेना चाहिए कि, भारत अपनी ग़ुलामी में भी सोने की चिड़िया था, आज नहीं है। क्योंकि भारत का किसान अपनी मिट्टी को अपनी मेहनत से सुधारकर पसीने से सींचता था। स्वावलंबी अपनी मिट्टी में अपना खाद-बीज बोकर सोना जैसा कीमती अन्न उगाता था। भारत की खेती में सभी तरह की मसाले, अन्न, दाल लगभग सभी प्रकार की खाद्य सामग्री उगायी जाती थी। जो दुनिया के दूसरे देशों में उस काल में नहीं उगाई जाती थी।
किसान के अद्भुत ज्ञान ने ही भारत को गुरू व सोने की चिड़िया बनाया था। भारत यदि अपने को फिर से गुरू बनने के सपने देखता है, तो एक ही रास्ता है कि, हम भारत के गाँवों, किसानों, जवानों व पानी को गाँव में अच्छे उत्पादन के अवसर दे।
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गाँव की मिट्टी और गाँव के पानी को किसान ही समझता है। वहीं उसके साथ अच्छे रिश्ते बनाकर रख सकता है। कम्पनी भारत भूमि के साथ वो रिश्ते नहीं बना सकती। वे भारत भूमि को केवल लाभ के लिए शोषण करते है। शोषण से कभी राष्ट्र का भला नहीं होता है।
राष्ट्र पोषण का काम भारत की किसानी ही कर सकती है। आज किसानी को बाजार आधीन बनने से रोकने की सबसे पहली जरूरत है। बाजार का आधार केवल लाभ व शोषण होता है। ‘‘भारत की उत्तम खेती, माध्यम वान, निषेद्ध चाकरी, भीख निदान’’ था। खेती ही भारत की संस्कृति थी। शुभ के लिए होती थी। आज भारत को समृद्ध बनाने के लिए किसानों के प्राकृतिक संरक्षण के काम को सम्मान देने की जरूरत है। इसका साध्य केवल लाभ नहीं है। भारत का शुभ साझे भविष्य हेतु है। यह बिना लिए ही बहुत देता है। गन्ना-गुड़ खेत से निकला, सभी कुछ बिना लिए देता है। उद्योगपति या दुकानदार से लेकर दिखाओ!
हमने बहुत लम्बी ग़ुलामी झेली है। अब और ग़ुलामी न आये इसके लिए सचेत रहने की जरूरत है। हम जिनके गुलाम रहे है, वो हमें व्यापार का लालच देकर ही गुलाम बनाये थे। अभी भी हमारे ही देश के चन्द परिवार लालची व्यापार के सपने दिखाकर करोड़ों किसानों को लूटना चाहते है। ये वो ही परिवार है जो आजाद भारत में सरकारों को धोखा देकर अपनी पूँजी ही बनाते रहे।
भारत सरकार जानती है कि वैश्विक बाजारीकरण के सामने उसने घुटने तक दिए हैं । उसकी सबसे पहली और बड़ी मार किसानों पर शुरू हुई है। इस मार को रोकने के लिए अब किसान अहिंसामय सत्याग्रह कर रहे है। यह आज तक का सबसे बड़ा अहिंसक सत्याग्रह है। अंग्रेज ऐसे ही अहिंसक सत्याग्रह के सामने झुककर भारत छोड़कर गए थे।
किसान आंदोलन सत्य का आग्रह है। सत्य यह है कि, ‘‘तीनों नए कानून बड़ी कम्पनियों के लिए बड़ा बाजार बनाने की साजिश है।’’ इस साजिश को भारत की आत्मा किसान ने समझ लिया है। इस साजिश से देश को बचाने हेतु किसान आंदोलनरत है। हमारी सरकार ने किसानों के विरूद्ध ये कानून जानबूझ कर बनाये होगें? सरकार की मनसा किसानों के हित में नहीं है?
बड़े उद्योगपतियों को मदद करना ही सरकार की इच्छा रहती है, क्योंकि किसान सरकार को केवल वोट देता है। राज चलाने व बनाने के लिए रुपये देने का काम उद्योगपति ही करते है। इसलिए इस सरकार की प्राथमिकता उद्योगपतियों को ही साथ रखने की बन गई है।
कई बार तो ऐसा लगता है कि, उद्योगपति ही देश चला रहे है। भारत को लोकतंत्र कहने की बजाय इसको उद्योगपतितंत्र भी कहा जा सकता है। किसान अपना पसीना बहाकर जो अन्न उत्पादन कर रहा है, उसकी कीमत पाने के लिए ही आज इस सरकार से उसे भीख माँगनी पड़ रही है।
यह सत्याग्रह किसी को छोड़कर भागने की माँग नहीं कर रहा है, यह तो केवल जो कुछ उपलब्ध है, जैसा भी उपलब्ध है, उसको वैसा ही बचाने की माँग कर रहा है। कुछ भी नया करने के लिए नहीं कह रहा। फिर यह कैसी लोकतांत्रिक सरकार है, जो अपने लोक की आवाज को नहीं सुन रही है।
मैं यहाँ पूंजीवाद व समाजवाद की बहस शुरू नहीं करना चाहता हूँ। केवल किसानों की बात ही कह रहा हूँ। यह सरकारी तंत्र किसानों को सुनकर, उनको सम्मान देकर, जल्दी से जल्दी तीनों कानून रद्द करके वापस घर जाने दे। मैं बस यही माँग कर रहा हूँ। इसी हेतु उपवासरत हूँ। महात्मा गांधी के ग्रामस्वराज्य के विरूद्ध ये तीनों कानून है। इनसे ग़ुलामी आयेगी। किसान आजाद रहेगा तो पुनः सोने की चिड़िया भारत को बना सकेंगे।
*लेखक जलपुरुष के नाम से विख्यात पर्यावरणविद है। प्रस्तुत लेख उनके निजी विचार हैं।